सिक्किम में आई आपदा में कई पुल बह गए. सड़कें धंस गई. मकान जमीनदोज हो गए. बस्ती तीस्ता में समा गई. कितनी बड़ी तबाही हुई, यह तो जाने दीजिए. सैलाब गुजर जाने के बाद अब कुछ ऐसा ना हो, इसकी तैयारी में सिक्किम और पश्चिम बंगाल सरकार जुट गई है. दोनों ही राज्यों में जो पुल अभी बचे रह गए हैं, उन्हें तीस्ता ने कितना प्रभावित किया है, इसका मुआयना किया जा रहा है. ताकि इसके आधार पर पुलों का उपचार किया जा सके.
सिलीगुड़ी को सिक्किम, पहाड़, डुवार्स जैसे माल बाजार, चालसा, कालिमपोंग, पूर्वोत्तर क्षेत्र असम आदि से जोड़ने वाला सेवक में स्थित एकमात्र कोरोनेशन ब्रिज है. इसी से इस ब्रिज के महत्व का पता चलता है. प्रत्येक दिन हजारों गाड़ियां इस ब्रिज से होकर गुजरती है. अभी तक वैकल्पिक ब्रिज का निर्माण नहीं हुआ है. 1941 में बना कोरोनेशन ब्रिज पूर्वोत्तर क्षेत्र के सबसे पुराने ब्रिजों में से है. इसलिए यह आशंका लगी रहती है कि कहीं किसी दिन कोई बड़ा हादसा या दुर्घटना ना हो जाए. कोरोनेशन ब्रिज की नियमित रूप से जांच की जाती है तथा उसके अनुसार ब्रिज की टूट-फूट की मरम्मत होती रहती है. तभी यह ब्रिज अभी तक खड़ा है.
तीस्ता के सैलाब में अच्छे-अच्छे पुल बह गए. ऐसे में स्वाभाविक है कि कोरोनेशन ब्रिज में भी कुछ क्षति पहुंची हो, इसी आशंका को ध्यान में रखकर आज आईआईटी खड़गपुर के इंजीनियरों ने कोरोनेशन ब्रिज की बुनियाद और अन्य ढाचों की जांच पड़ताल की. सेवक के पास तीस्ता में पानी तो कम हुआ है लेकिन पानी का वेग अभी भी तेज है. इसलिए इंजीनियरों को इसकी बुनियाद की जांच करने में थोड़ी परेशानी हो रही है. आज क्रेन के द्वारा कारीगरों को कोरोनेशन ब्रिज के नीचे उतारा गया, जिन्होंने पुल का प्रारंभिक मुआयना किया है.
सूत्रों ने बताया कि कोरोनेशन ब्रिज को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है. हालांकि इंजीनियरों की फाइनल रिपोर्ट में ही इसका पता चलेगा. आपको बताते चलें कि अंग्रेजी राज्य में सूरज डूबता नहीं था. इंग्लैंड से लेकर भारत तक अंग्रेजों की सल्तनत थी. 1937 में जॉर्ज षष्ठम इंग्लैंड का राजा था. जब उसका राज्याभिषेक हो रहा था तो इस खुशी में भारत में कई जगह निर्माण कार्यक्रम की बुनियाद रखी गई थी. उन्हीं में से एक था कोरोनेशन ब्रिज. तब उस समय इस ब्रिज को बनाने में चार लाख रुपए खर्च हुए थे और यह ब्रिज 4 साल में बनकर तैयार हुआ था.
अंग्रेजी काल से ही कोरोनेशन ब्रिज विभिन्न आपदाओं को झेलते आ रहा है. लेकिन यह इतना मजबूत है कि कभी भी आवागमन के लिए इसे बंद नहीं किया गया. हां, 2011 में आए भूकंप में कोरोनेशन ब्रिज को थोड़ी क्षति जरूर पहुंची थी और ब्रिज के पाए में भी दरार आ गयी है. इसलिए यह डर रहता है कि कहीं किसी दिन कोई हादसा ना हो जाए. यहां वैकल्पिक ब्रिज निर्माण के लिए केंद्र सरकार की हरी झंडी तो मिल चुकी है, लेकिन अभी तक वैकल्पिक ब्रिज का निर्माण न होने से कोरोनेशन ब्रिज पूर्वोत्तर और सिलीगुड़ी के लोगों के संपर्क का एक मात्र प्राण आधार है.
समय-समय पर कोरोनेशन ब्रिज के पुनर्निर्माण और वैकल्पिक ब्रिज की मांग में डुवार्स फोरम तथा अन्य सामाजिक संगठनों की ओर से आंदोलन किए जाते रहे हैं. लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुआ है. कोरोनेशन ब्रिज को हेरिटेज का दर्जा देने की बात तो लगभग पक्की है, परंतु इसके लिए ब्रिज को भी नया आयाम देना होगा. अभी तो सिर्फ काम चलाऊ बनाकर यातायात निष्पादन कर दिया जाता है. ज्यादा से ज्यादा भारी वाहनों ट्रक आदि के यहां से गुजरने पर प्रतिबंध है. लेकिन ऐसा कब तक चलेगा. पुराना तो पुराना ही होता है.कब धोखा या झटका दे जाए,पता नहीं चलता. इसलिए वैकल्पिक ब्रिज निर्माण ही संकट का एकमात्र समाधान नजर आ रहा है. वैकल्पिक ब्रिज के निर्माण होने से इस ब्रिज पर भार भी कम होगा, तो इसको पुनर्जीवन भी मिलेगा. बहरहाल हम तो यही प्रार्थना करेंगे कि कोरोनेशन ब्रिज को तीस्ता के सैलाब ने नुकसान न पहुंचाया हो!