भले ही सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को वैधानिक मंजूरी दे दी हो. परंतु सच तो यह है कि इससे देश भर में महिला यौन शोषण की घटनाएं बढ़ रही हैं.आमतौर पर महिलाएं लिव इन रिलेशनशिप से छली जा रही हैं. मीडिया रिपोर्ट तो यही बताते हैं. यह रिश्ता महिलाओं पर काफी भारी पड़ता है. महिलाएं पुरुषों के द्वारा छले जाने के बाद खुद को दोराहे पर खड़ा महसूस करती हैं.
लिव इन रिलेशनशिप महिलाओं के लिए व्यक्तिगत और सामाजिक प्रताड़ना बन गई है. शायद यही कारण है कि लिव इन रिलेशनशिप के जरिए महिलाओं के ठगे जाने की बढ़ती घटनाओं के बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट को कहना पड़ा है कि लिव इन रिलेशनशिप सामाजिक मूल्यों के खिलाफ है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की है, जब कोर्ट को यह पता है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे वैधानिक करार दिया है. इसी से पता चलता है कि कोर्ट ने किन परिस्थितियों में यह बात कही है.
हमारे समाज में लिव इन रिलेशनशिप का कोई स्थान नहीं है. भारत पारंपरिक मूल्यों में विश्वास करता है, जहां शादी से पहले लड़का लड़की को एक साथ रहने की इजाजत नहीं दी जाती. विवाह एक पवित्र धर्म और पति पत्नी के रिश्ते को ऊंचाइयों पर ले जाता है. जबकि लिव इन रिलेशनशिप पश्चिमी सभ्यता से प्रेरित है. कम से कम भारतीय समाज इसे स्वीकार नहीं करता. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शायद स्थितियों को समझते हुए ही इसे सामाजिक मूल्यों के खिलाफ बताया है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने टिप्पणी की है कि लिव इन रिलेशनशिप महिलाओं को अनुपात में अधिक नुकसान पहुंचाते हैं. पुरुष ऐसे रिश्ते खत्म होने के बाद तो आगे बढ़ सकते हैं. परंतु महिलाएं सबसे ज्यादा पीड़ित होती हैं.लिव इन रिलेशनशिप के बाद पुरुष को शादी करने में भी कोई समस्या नहीं आती. लेकिन महिलाओं के लिए ब्रेकअप एक सदमा की तरह होता है. ब्रेकअप के बाद महिलाओं को जीवनसाथी ढूंढना काफी मुश्किल हो जाता है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट में ऐसा ही मामला सामने आया है. शाने आलम नामक एक युवक ने शादी का झूठा आश्वासन देकर एक युवती के साथ शारीरिक संबंध बनाए और बाद में उससे शादी से इंकार कर दिया. इसके बावजूद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहते हुए आरोपी की जमानत मंजूर कर ली कि वह 25 फरवरी से लगातार जेल में रह रहा था. उसके खिलाफ कोई पुराना आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही ऐसे रिश्ते को वैधानिक मंजूरी दे दी है. ऐसे में कोर्ट को ना चाहते हुए भी आरोपी को जमानत देनी पड़ी.
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकल पीठ ने इस प्रकार की बढ़ती घटनाओं पर संवेदनशीलता से विचार किया है और नाराजगी जताई है. जज ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि ऐसे मामले न्यायालय में इसलिए आ रहे हैं, क्योंकि लिव इन रिलेशनशिप की अवधारणा भारतीय मध्यम वर्गीय समाज में स्थापित कानून के विरूध्द है. इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले की काफी तारीफ करनी चाहिए और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ के साहस और संवेदनशीलता का भी, जिन्होंने भारतीय समाज और मध्यम वर्ग के सामाजिक मूल्यों का पक्ष रखा है.
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