पहाड़ में मुख्य रूप से गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट, गोरखा जन मुक्ति मोर्चा, भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा, हाम्रो पार्टी, जन आंदोलन पार्टी, क्रामाकपा इत्यादि अनेक क्षेत्रीय दल हैं. यह सभी छोटे दल किसी न किसी बड़े दल के सहारे उठने की कोशिश कर रहे हैं.जबकि बड़े दल एक खूबसूरत साजिश अथवा रणनीति के तहत छोटे दलों के वजूद को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं? यह बात हम नहीं कह रहे हैं बल्कि पहाड़ के हालात और उत्पन्न पारिस्थितिक राजनीतिक संकेतों से कयास लगाया जा सकता है.
आलोचकों का मानना है कि जल्द ही वह समय आने वाला है, जब दार्जिलिंग पहाड़ में क्षेत्रीय दल अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहे होंगे. चर्चा का विषय यह है कि क्या सचमुच पहाड़ के क्षेत्रीय दल एक-एक करके बड़े दलों की भेंट चढ़ते नहीं जा रहे हैं? क्या पहाड़ में क्षेत्रीय दलों को मिटाने की कोशिश हो रही है? और इस तरह के कई सवाल उठ रहे हैं.
पहाड़ में विनय तमांग कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. अजय एडवर्ड का रुझान भी कांग्रेस की तरफ है. हालांकि उनकी पार्टी हाम्रो पार्टी इंडी एलायंस का एक घटक दल है. परंतु अजय एडवर्ड की कार्य शैली संकेत करती है कि आज नहीं तो कल अजय एडवर्ड भी कांग्रेस का एक हिस्सा हो जाएंगे. अनित थापा की पार्टी भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा तृणमूल कांग्रेस का समर्थन कर रही है. अनित थापा गोरखालैंड को भूलकर टीएमसी के साथ कदमताल कर रहे हैं. जबकि भारतीय जनता पार्टी का समर्थन गोरखा जन मुक्ति मोर्चा और गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा कर रहे हैं. इस तरह से पहाड़ में बड़े दलों का समर्थन अपने आदर्शों और उसूलों से समझौता करके क्षेत्रीय पार्टियों के द्वारा किया जा रहा है.
पहाड़ में लगभग सभी क्षेत्रीय दलों का प्रादुर्भाव गोरखालैंड के मुद्दे पर हुआ है. गोरखालैंड की बुनियाद पर ही क्षेत्रीय दलों के सिद्धांत और आदर्श कायम हैं. लेकिन तृणमूल कांग्रेस से लेकर भाजपा और कांग्रेस कोई भी दल हो, अब तक गोरखालैंड को अपने चुनाव घोषणा पत्र में शामिल करने की बात कौन कहे, गोरखाओं के हित में गोरखालैंड शब्द तक का प्रयोग किसी ने भी नहीं किया है. इसके बावजूद क्षेत्रीय दल बड़े दलों का समर्थन कर रहे हैं.
क्षेत्रीय दलों के बड़े-बड़े नेताओं द्वारा लिए जा रहे एक तरफा फैसला के कारण कार्यकर्ता और छोटे नेता भी नाखुश बताए जा रहे हैं. पिछले दिनों हाम्रो पार्टी के कई कार्यकर्ताओं ने अजय एडवर्ड पर गंभीर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ने तक की घोषणा कर दी. कालिमपोंग और कई स्थानों पर यह देखा भी गया. अब भारतीय जनता पार्टी को पहाड़ में समर्थन देने के मुद्दे पर भी क्षेत्रीय दलों में खींचतान देखी जा रही है. सूत्रों ने बताया कि गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा का एक गुट नीरज जिंबा की कार्य शैली तथा उनके भाजपा के प्रति समर्पण भाव को लेकर नाखुश बताया जा रहा है.
29 मार्च 2024 को गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा की एक बैठक में कुछ ऐसी बातें निकल कर सामने आई है, जिससे इस दल की एकजुटता पर भी सवाल उठने लगा है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा हो अथवा गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, दोनों ही दलों में कुछ अच्छा नहीं चल रहा है. दोनों ही दल पहाड़ में भाजपा का समर्थन कर रहे हैं. गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के वाइस प्रेसिडेंट पी सी अग्रवाल, जो कर्सियांग नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं और दार्जिलिंग के भाजपा विधायक नीरज जिंबा, जो गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के महासचिव भी हैं, के बीच काफी तनातनी हुई थी.
पी सी अग्रवाल का कहना था कि नीरज जिंबा जरूरत से ज्यादा भाजपा के प्रति उत्साहित हैं. जो पार्टी के लिए अच्छी बात नहीं है. पी सी अग्रवाल तथा उनके गुट के सदस्यों का कहना था कि गोरखा जन मुक्ति मोर्चा नेता विमल गुरुंग के साथ नीरज जिंबा की नजदीकियां कार्यकर्ताओं को रास नहीं आ रही है. क्योंकि विमल गुरुंग के इतिहास को अब तक कोई नहीं भूल सका है. यह वही विमल गुरुंग थे, जिनके कारण सुभाष घीसिंग को 2008 में पहाड़ छोड़ना पड़ा था.
यह विमल गुरुंग ही थे, जिनके चलते सुभाष घीसिंग की पत्नी को पहाड़ में नहीं लाया जा सका था. उस व्यक्ति तथा उनकी पार्टी के साथ नीरज जिंबा की नजदीकियां राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा की सेहत के लिए अच्छी नहीं है. इस बैठक में गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के प्रेसिडेंट मन घीसिंग भी उपस्थित थे. पीसी अग्रवाल और नीरज जिंबा के बीच तू तू मैं मैं अत्यधिक बढ़ गई.इसके बाद तैश में आकर नीरज जिंबा मीटिंग छोड़कर चले गए. मन घीसिंग ने उन्हें रोकने की कोशिश भी नहीं की.
इस घटना के सुर्खियों में आने के बाद नीरज जिंबा ने इस घटना पर अपनी सफाई में कहा है कि यह एक सामान्य घटना थी और हर पार्टियों मे ऐसा होता है. इसलिए इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत नहीं है. दूसरी तरफ इस घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कर्सियांग के भाजपा विधायक और बागी भाजपा नेता बी पी बज गई ने कहा है कि उन्हें इस घटना से काफी दुख हुआ है. बड़े दल एक रणनीति के तहत छोटे क्षेत्रीय दलों के वजूद को मिटा देना चाहते हैं. हमें सतर्क रहने की जरूरत है.
इस तरह से देखा जाए तो बड़े दलों के चलते छोटे दलों के बीच एकता का अभाव और मनमुटाव अधिक बढ़ रहा है. पर सवाल तो यह है कि बड़े दलों के प्रलोभन में क्षेत्रीय दल क्यों आ रहे हैं? 2024 के लोकसभा चुनाव में पहाड़ में TMC से लेकर कांग्रेस और भाजपा तीनों ही प्रमुख राष्ट्रीय दल पहाड़ के क्षेत्रीय दलों के कंधे पर सवार होकर अपनी राजनीतिक नैया खेने की कोशिश कर रहे हैं. मौजूदा हालात यह है कि पहाड़ का कोई भी क्षेत्रीय दल अपना स्वतंत्र उम्मीदवार उतारने की स्थिति में नहीं है.
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