कंचनजंगा ट्रेन दुर्घटना में आठ लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है. जिन लोगों को इस हादसे में प्राण गवाने पड़े हैं, उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि मौत इस तरह से चुपके चुपके उन्हें दबोचने वाली है. वह चाहे सिलीगुड़ी नगर निगम के 32 नंबर वार्ड के ट्रेन गार्ड आशीष दे हो अथवा गोरुबथान के निवासी और पश्चिम बंगाल राज्य पुलिस में सब इंस्पेक्टर कालेब सुब्बा. या फिर लोको पायलट अनिल कुमार एनजेपी भक्ति नगर रहे हो अथवा कोलकाता निवासी 54 वर्षीय शंकर मोहन दास. किसी ने भी नियति के चक्र के बारे में सोचा नहीं था. वह बच्चा जिसे दुनिया में अभी बहुत कुछ देखना था, लेकिन नियति के आगे किसका चला है. काल के क्रूर हाथों ने उस बच्चे को भी दबोच लिया.
गोरुबथान के रहने वाले 37 वर्षीय कालेब सुब्बा घर पर छुट्टी बिताने के बाद जॉइनिंग के लिए मालदा जा रहे थे. पश्चिम बंगाल राज्य में पुलिस सब इंस्पेक्टर के पद पर तैनात कालेब सुब्बा जब घर से एनजेपी के लिए रवाना हुए, तब परिवार में उदासी छा गई. घर पर कई काम थे. कुछ अपने पराए लोगों से भी मिलना था. कुछ योजना को परवान चढ़ाना था. घर वालों ने मिलकर योजना बनाई थी. इससे पहले कि घर का सारा काम पूरा होता, छुट्टी पूरी हो चुकी. परिवार ने कहा कि कुछ दिन घर पर रुक जाते. परंतु दूसरी तरफ ड्यूटी भी जरूरी थी. उन्होंने कहा कि भगवान ने चाहा तो इस बार घर लौट कर सारा काम पूरा कर दूंगा.
एनजेपी में कंचनजंगा ट्रेन मिली तो वे उसी में चढ़ गए. एनजेपी से मालदा कोई ज्यादा दूर तो है नहीं.रास्ते में घर परिवार की याद जरूर आ रही थी. लेकिन उन्होंने कभी नहीं सोचा कि उनके साथ कुछ अनहोनी हो सकती है. लेकिन मौत तो घर से ही उनका पीछा कर रही थी. अब उनके परिवार में मातम पसरा है. परिवार वाले उनकी आखिरी बात को याद कर कर विलाप कर रहे हैं.
इसी तरह से सिलीगुड़ी के 32 नंबर वार्ड के ट्रेन गार्ड आशीष दे घर से खुशी-खुशी ड्यूटी के लिए निकले थे. उनके परिवार में पत्नी, मां और एक छोटी बेटी है. बेटी ने कहा पापा जल्दी आना. आशीष दे ने प्यार से बच्ची को गोद में खिलाया और कहा कि उसके लिए गिफ्ट लेकर आऊंगा. जब वह घर से निकल रहे थे तब देर तक बच्ची, अपने परिवार ,मां और उस घर को देखते रहे थे जहां से उनका जज्बाती रिश्ता था. आशीष दे कंचनजंगा एक्सप्रेस में ट्रेन गार्ड थे. अचानक जोरदार धमाका हुआ था और उसके बाद चीखें और चीखों के बाद सब कुछ शून्य रह गया था. जरूर वह बच्ची पापा के लौटने का इंतजार कर रही होगी.
इस हादसे में जिन अन्य लोगों ने अपने प्राण गवाए हैं उनकी भी कुछ ऐसी ही करुण दास्तान रही होगी. परिवार, घर, जिम्मेदारियां, ड्यूटी, व्यापार और अपने लोग. बस यही तो दुनिया है. लेकिन इस दुनिया के आगे भी एक दुनिया है. इंसान जैसा सोचता है. वैसा होता नहीं है. एक सबसे बड़ा सच काल है. इस काल को आज तक कोई नहीं समझ पाया है. ईश्वर की लीला अपरंपार है. मनुष्य की सोच और ईश्वर की सोच अलग-अलग होती है. ऐसी घटनाएं काफी हृदय विदारक होती है. क्योंकि इन घटनाओं में लोगों को पल भर के लिए भी मौका नहीं मिलता और नियति अपना खेल कर जाती है.
कंचनजंगा ट्रेन हादसे में लगभग 50 लोग घायल हुए हैं. इनमें से 47 लोगों के घायल होने की पुष्टि हो चुकी है.घायलों में पार्थ सारथी मंडल, मनोज दास ,छवि मंडल, सुशील मंडल, पवन दास, शिव मंडल, मिट्ठू सिंहा, स्नेहा मंडल, संजय पाल, संजीव बाग इत्यादि के नाम शामिल है. सभी घायलों को सिलीगुड़ी और निकटवर्ती अस्पतालों में भर्ती किया कराया गया है. उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल के सर्जिकल वार्ड में 20 लोग भर्ती हैं.जबकि इमरजेंसी वार्ड आई सी यू में 10 लोगों को रखा गया है. घायल तो आज नहीं तो कल ठीक होकर परिवार में लौट आएंगे. परंतु जो लोग इस दुनिया से रुखसत हो गए, उनके परिवार पर क्या गुजर रहा होगा , इसका दर्द तो वही लोग समझ सकते हैं.
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