कोलकाता हाई कोर्ट के द्वारा जीटीए के तहत नियुक्त 313 शिक्षकों के नियमितीकरण तथा राज्य द्वारा दी गई मंजूरी को रद्द करने के आदेश के बाद विपक्षी पार्टियों खासकर भाजपा ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया है. कल भाजपा सांसद राजू बिष्ट ने राज्य सरकार पर हमला बोला तो आज सिलीगुड़ी के विधायक शंकर घोष ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की जमकर आलोचना की और कहा कि इसके लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी स्वयं जिम्मेदार हैं.
शंकर घोष ने कहा है कि सत्ता भ्रष्ट लोगों के हाथों में चली गई है. इसलिए ऐसा होना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है. शंकर घोष ने कहा कि अगर किसी को गिरफ्तार करना है तो भ्रष्ट लोगों को गिरफ्तार करो, जो टीएमसी से जुड़े हुए हैं. उन्होंने सरकार की औद्योगिक नीति व प्रशासनिक भूमिका की भी आलोचना की और कहा कि सरकार की औद्योगिक नीति के कारण ही उद्योग धंधे नष्ट हो रहे हैं और काफी संख्या में बेरोजगार युवा उत्पन्न हो रहे हैं. उन्होंने ममता बनर्जी पर आरोप लगाते हुए कहा कि ममता बनर्जी उद्योगपतियों को उद्योग लगाने के लिए जमीन नहीं दे रही है.
आपको बता दें कि बुधवार को कोलकाता हाई कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था. उसके बाद से ही पहाड़ की राजनीति गर्म हो गई. जीटीए प्रमुख अनित थापा ने 313 शिक्षकों के प्रति समर्थन व्यक्त किया था और कहा था कि आवश्यकता हुई तो वह सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे. उधर संयुक्त माध्यमिक शिक्षक कल्याण संगठन ने पहाड़ में सभी विद्यालयों को अनिश्चितकाल के लिए बंद रखने की घोषणा कर दी.
संगठन का कहना है कि बीते 25 वर्षों से क्षेत्र में कोई भी स्पष्ट भर्ती नियम लागू नहीं किया गया, जिससे योग्य शिक्षकों के सामने गंभीर संकट खड़ा हो गया है. संगठन के अनुसार 2002 से स्वैच्छिक शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया बहाल हुई. इसमें शिक्षकों का कोई भी दोष नहीं है. इसके लिए जीटीए, राज्य और केंद्र सरकार जिम्मेदार हैं.
आपको बता दें कि यह मामला 2023 में दायर एक रिट याचिका से सामने आया जिसमें दार्जिलिंग और कालिमपोंग क्षेत्र के सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में 313 शिक्षकों की नियुक्तियों की वैधता को चुनौती दी गई थी. याचिकाकर्ता का कहना था कि इन शिक्षकों को भर्ती प्रक्रिया के बिना नियमित किया गया जो स्थापित मानद॔डों और निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है.
अप्रैल 2025 में कोलकाता हाई कोर्ट ने 313 शिक्षकों के वेतन पर रोक लगाने का प्रस्ताव रखा और सरकार से यह स्पष्टीकरण मांगा कि ऐसे शिक्षकों के वेतन का बोझ क्यों उठाना चाहिए, जिनकी नियुक्तियां गलत तरीके से हुई हैं. बेंच ने नियमितीकरण को रद्द करते हुए वैधानिक प्रक्रिया और प्रशासनिक औचित्य के पालन के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि कानूनी स्वीकृति के बिना की गई नियुक्तियों को केवल प्रशासनिक अनुमोदन के आधार पर जायज नहीं ठहराया जा सकता है.

