सिक्किम से बहने वाली तीस्ता नदी बंगाल होते हुए बांग्लादेश में मिल जाती है. भारत में गंगा नदी के बाद तीस्ता नदी दूसरी बड़ी नदी है.यह नदी सिक्किम की जान कही जाती है. लेकिन वर्तमान में तीस्ता नदी के कारण सिक्किम, उत्तर बंगाल और बांग्लादेश को खतरा उत्पन्न हो गया है. यह खतरा लगातार गहरा रहा है.
सिक्किम में तीस्ता नदी का वर्तमान स्वरूप विकृत हो चुका है. हिम क्षेत्र में झील बन रहे हैं. बरफ के पिघलने से पानी झीलो में जमा हो जाता है. यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है. इसके अलावा सिक्किम में ग्लेशियर झीलों की संख्या और आकार में भी वृद्धि हो रही है.भविष्य में इससे भी खतरा बढ़ने वाला है. 2023 में भारी बारिश, जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियर के नुकसान के कारण तीस्ता नदी में बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति गंभीर हुई थी. यह स्थिति लगातार गंभीर हो रही है.
तीस्ता नदी में बांधों का निर्माण करने से स्थिति और गंभीर हुई है. इससे नदी का प्राकृतिक प्रवाह काफी हद तक बाधित हो जाता है. हालांकि यह भी सत्य है कि इन्हीं बांधों के जरिए ही सिक्किम को पन बिजली प्राप्त होती है. पर जो भी हो, इससे तीस्ता को नुकसान जरूर होता है. तीस्ता में चल रही निर्माण गतिविधियों से गाद की समस्या लगातार गंभीर हो रही है. अगर इसे रोका नहीं गया तो एक दिन तीस्ता काफी रौद्र रूप धारण कर सकती है.
पहाड़ से निकलकर मैदानी इलाकों में तीस्ता नदी गंभीर स्वरूप धारण कर लेती है. सेवक के पास इसका पाट चौड़ा होता जाता है. जो उत्तर बंगाल के विभिन्न तटवर्ती क्षेत्रों को छूता हुआ बांग्लादेश में मिल जाता है. अक्टूबर 2023 में यहां जो त्रासदी आई थी, उसके चलते प्राकृतिक तंत्र को खतरा पहुंचा है. जैसे यहां की मिट्टी का नरम होना, इससे बांध टूटने का खतरा बढ़ गया है. भारी बारिश और भूस्खलन के चलते तीस्ता नदी में पानी की मात्रा और उसके प्रवाह में काफी वृद्धि हुई है.
तीस्ता नदी का पानी अप्रैल मई महीने से ही बढ़ना शुरू हो जाता है. उससे पहले बाढ़ की रोकथाम के लिए प्रशासनिक पहल जरूरी है. जिन कारणों से तीस्ता में बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो जाता है, उन्हें दूर करने का यही मुनासिब समय रहता है. तीस्ता नदी में गाद संचय सबसे बड़ी समस्या है. पूर्व के अध्ययन में भी यह स्पष्ट हो चुका है कि पहाड़ से बहती हुई तीस्ता नदी जब समतल क्षेत्र में प्रवेश करती है तो इसके तल में गाद संग्रह होने लगता है, जो बाढ़ का कारण बन जाता है. इसके कारण ही तीस्ता के किनारे बसा लालटंग बस्ती, चमकडांगी,खोलाच॔द फापड़ी क्षेत्र बाढ़ के पानी में डूब जाता है.
इन्हीं सब बिंदुओं पर विचार करते हुए अधिकारियों ने ने बरसात से पूर्व ही तीस्ता नदी की असामान्य स्थिति से निपटने के लिए एक विस्तृत परियोजना तैयार की है. इसके लिए केंद्र सरकार का सहयोग जरूरी है. इस तकनीकी रिपोर्ट के अनुसार मानसून आने से पहले अगर केंद्र सरकार के सहयोग से कार्य किया जाता है तो स्थिति में काफी बदलाव देखने को मिलेगा. दरअसल सेवक रेलवे पुल से जलपाईगुड़ी तक तीस्ता पर कुल 30 spots की पहचान की गई है, जहां काम करने की जरूरत है. इस पर कुल 567 करोड रुपए व्यय होंगे.
तीस्ता नदी में बाढ की विभीषिका से बचाव के लिए फरवरी से लेकर अप्रैल तक ही काम हो सकता है, जब नदी में ग्लेशियर का पानी नहीं आता है. जिस तरह की योजना बनाई गई है, अगर उसके अनुसार कार्य होता है तो इसका पूरा असर सिक्किम से लेकर दार्जिलिंग, कालिमपोंग, सिलीगुड़ी, जलपाईगुड़ी और बांग्लादेश तक होगा. सिलीगुड़ी नगर निगम के मेयर गौतम देव भी इस बात को स्वीकार करते हैं. वह भी मानते हैं कि तीस्ता के स्पॉट को दूर करने के लिए यही उचित समय है.
अधिकारी भी मानते हैं कि अगर इसमें और विलंब किया जाता है तो इस बार तीस्ता की बाढ़ विकराल रूप ले सकती है. इसके कारण मयनागुडी, हल्दीबाड़ी और मैखिली गंज समेत उत्तर बंगाल का एक विशाल क्षेत्र तबाही का कारण बन सकता है. इस बीच पश्चिम बंगाल सिंचाई मंत्री ने सचिव स्तर पर पूर्वोत्तर डिवीजन के अधिकारियों के साथ डीपीआर पर चर्चा शुरू कर दी है. लेकिन यह सब तभी संभव है, जब केंद्र सरकार डीपीआर के लिए धन मंजूर करती है. हालांकि पूर्व में केंद्र सरकार ने सिक्किम को तीस्ता के मद में धन का आवंटन कर दिया है. पर क्या सिक्किम सरकार इस योजना पर काम करने के लिए तैयार है? सवाल यह भी है.
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