नक्सलबाड़ी के चौरंगी बाजार में हुए भीषण अग्निकांड में दुकानदारों का काफी नुकसान हुआ है.दुकान तो जली ही, इसके साथ ही सामान भी खाक हो गया. जो कुछ बचा, उसे पब्लिक लूट ले गई. यह एक हकीकत है. वर्तमान युग में ऐसी घटनाएं कोई आश्चर्जनक नहीं है… लोग मदद के नाम पर अपना उल्लू सीधा करने लगते हैं.
इंसानियत शर्मसार हो रही है. लोगों का ईमान धर्म सब खत्म हो चला है. दुकानदार जमा पूंजी लगाकर और बड़ी मेहनत से कमाते हैं. दुर्गा पूजा से पहले दुकानदारों को कुछ कमाने की उम्मीद रहती है. लेकिन इस तरह के अग्निकांड की घटनाएं उनकी उम्मीदों पर पानी फेर देती है. पब्लिक मदद के लिए आती है लेकिन जब पब्लिक दुकानदार की मदद की आड़ में उसके माल पर हाथ साफ करने लगे तो आप क्या कहेंगे! नक्सलबाड़ी अग्निकांड हादसे में यह सब कुछ हुआ है.
सिलीगुड़ी के निकट स्थित नक्सलबाड़ी का चौरंगी बाजार ऐसा बाजार है, जहां आसपास के ग्रामीण और शहरी लोग शॉपिंग के लिए आते हैं. चौरंगी बाजार में स्थित अधिकांश दुकानों की छत पर टीन चढ़ायी गयी है. हालांकि यह कोई बड़ा बाजार नहीं है. यहां खरीदारी के लिए नेपाल के समीपस्थ क्षेत्र, बिहार और आसपास के क्षेत्र के लोग आते हैं. देर रात यहां अचानक से आग लग जाती है. आग कैसे लगी, हालांकि अभी तक कोई जानकारी नहीं मिली है. परंतु आग लगने के तुरंत बाद सूचना मिलने पर नक्सलबाड़ी थाना की पुलिस और फायर ब्रिगेड के कर्मचारी मौके पर पहुंच गए और आग बुझाने की कोशिश करने लगे.
यह अग्निकांड इतना बड़ा था कि देखते-देखते 50 से ज्यादा दुकाने जल गई. आग शक्तिशाली थी. कल्पना की जा सकती है कि जब आग टीन में फैल जाती है तो उसकी लौ कितनी शक्तिशाली हो जाती है.उसे बुझाने में फायर ब्रिगेड कर्मचारियों के पसीने छूट गए. सुबह तक किसी तरह आग पर काबू पा लिया गया. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अग्निकांड की घटना की सूचना पाकर दुकानदार भी मौके पर पहुंचकर अपना अपना सामान बचाने की चेष्टा में लग गए.
बताया जाता है कि दुकानदारों ने आग से जलने से बचाने के लिए दुकान का सामान बाहर फेंकना शुरू कर दिया. इस समय उनकी मुख्य चिंता अधिक से अधिक सामान समेटने की थी. जब कुछ लोग उनकी सहायता के लिए आगे आए तो उन्हें भी काफी खुशी हुई. एक दुकानदार ने बताया कि वह अपनी दुकान से सामान निकाल निकाल कर बाहर फेंक रहा था, तो कई लोग उसके बचे सामान पर हाथ साफ करने लगे. जब आंख की लपटे उठने लगी तो वह बाहर आया. उस समय तक कई तमाशाबीन उसका बचा सामान लूट कर चले गए. उसने बताया कि उसे काफी धक्का लगा. कहां तो लोगों को ऐसी हालत में मदद करनी चाहिए तो दूसरी ओर लूट का उन्हें अवसर मिल गया तो यह भी नहीं सोचा कि उन पर क्या बीतेगी!
कुछ और दुकानदारों ने बताया कि पब्लिक उनकी सहायता के लिए आगे बढ़ी. दुकानदार तो दुकान से सामान निकालने और आग में जलने से बचाने के लिए हाथ पांव मार रहे थे. तो दूसरी ओर जो उनकी सहायता के लिए आगे आ रहे थे,उन्होंने ही उसकी अमानत में खयानत कर दिया. एक तरफ दुकानदारों पर बड़ी आपदा थी. ऐसे मौके उन्हें सहायता की जरूरत थी. इसके बजाय लोगों ने उनके दर्द को और बढ़ा दिया उनके ही सामान को लूटना शुरू कर दिया.
ऐसी घटनाएं इंसानियत और मानवता को शर्मसार करने वाली है. दुकानदारों का आरोप है कि आसपास के लोगों से सहयोग की उम्मीद थी. लेकिन उन्होंने सहयोग तो नहीं दिया अपितु उनका बचा सामान लूट कर चले गए. दुकानदारों की पीड़ा स्वाभाविक है. जिनके सामान जले हैं, जिनके माल लूटे गए, उनका दर्द बड़ा है.लेकिन वह कर भी क्या सकते हैं. यह गम, यह दर्द उन्हें खुद ही झेलना होगा. उन्हें प्रशासन से भी उम्मीद नहीं है. ना ही नेता अथवा जनप्रतिनिधियों पर भरोसा है. अपना गम भूल कर उन्हें खुद ही एक बार फिर से दुकान खड़ी करनी होगी. यही प्रकृति का भी नियम है.