सिक्किम और बंगाल में आज तीस्ता त्रासदी दिवस को याद किया गया. आज ही के दिन सिक्किम में तीस्ता त्रासदी आई थी, जो एक काल बनकर सिक्किम को निगल गई थी. इस त्रासदी को भुलाना बड़ा कठिन है. लेकिन अतीत की घटनाओं से सबक लेकर ही भविष्य का निर्माण किया जा सकता है. आज सिक्किम जिस स्थिति में खड़ा है, वहां अतीत से सबक लेना और भविष्य का निर्माण करना आवश्यक हो गया है.
तीस्ता त्रासदी की पहली वर्षगांठ पर आज एक तरफ पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्र में तीस्ता संरक्षण मंच तथा अन्य संगठनों ने अपनी विभिन्न मांगों को लेकर तीस्ता बाजार से लेकर एनएचपीसी डैम तक मार्च निकाला, तो दूसरी तरफ आज सिक्किम में मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने चिंतन भवन में स्टेट डिजास्टर रिस्क रिडक्शन डे के रूप में तीस्ता त्रासदी को याद किया. तीस्ता त्रासदी ने सिक्किम के जान माल को भारी क्षति पहुंचाई थी. उसे याद करके लोग कांप उठते हैं. इस त्रासदी में अनेक लोगों की जान चली गई. आज मुख्यमंत्री ने उन सभी मारे गए लोगों को याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी.
मुख्यमंत्री ने सिक्किम के लोगों को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए तैयार रहने को कहा. उन्होंने कहा कि आपदा कोई भी हो, हम मिलकर उसका सामना कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि आपदा छोटी हो या बड़ी, हमें सतर्क रहकर ही उसका मुकाबला करना होगा. क्योंकि हमारा प्रदेश विभिन्न भौगोलिक, प्राकृतिक और आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है. मुख्यमंत्री का मंतव्य कुछ ऐसा ही था. आज तीस्ता त्रासदी की वर्षगांठ पर विद्वानों ने इस बात पर चिंतन किया कि दिया कि आपदा के जोखिम को कम से कम कैसे किया जाए.
सिक्किम में प्राकृतिक आपदा सिक्किम का जैसे अंग बन चुका है. किसी को पता नहीं कि कब कौन सी प्राकृतिक आपदा आ जाए. यही कारण है कि मुख्यमंत्री ने सिक्किम के लोगों को मजबूत बने रहने और पूरे साहस व संकल्प के साथ आपदाओं का मुकाबला करने की बात कही. हालांकि मुख्यमंत्री लगातार प्राकृतिक आपदाओं को कम से कम करने की रणनीति और कौशल पर काम करते रहे हैं.राज्य में जो रणनीतियां तैयार की गई हैं, विद्वानों ने उनका पुनर्मूल्यांकन भी किया.
विद्वानों के अनुसार सामुदायिक सहभागिता जरूरी है. इसके अलावा सिक्किम के लोगों को प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों से जोड़ना भी आवश्यक है, इस पर बल दिया गया. पर यह कैसी विडंबना है कि एक तरफ सिक्किम भविष्य की रणनीति तैयार कर रहा है, तो दूसरी तरफ तीस्ता संरक्षण मंच आज भी मुआवजे और पुनर्वास के लिए संघर्ष कर रहा है. यही कारण है कि तीस्ता संरक्षण मंच ने आज के दिन को एक काला दिवस के रूप में पालन किया और लगभग 10 किलोमीटर की पदयात्रा निकालकर एनएचपीसी डैम तक उसका अवसान किया. इस पदयात्रा में हाम्रो पार्टी के अध्यक्ष अजय एडवर्ड भी शामिल हुए और उनका समर्थन किया.
तीस्ता पीड़ितों को आज तक उनका हक नहीं मिला है. जहां तक मुआवजे की बात है, यह समस्या डीएम, जीटीए और एनएचपीसी के बीच फंस गया है. इन तीनों इकाइयों में तालमेल की कमी के कारण ही आज तक उन्हें मुआवजा अथवा उनके लिए पुनर्वास की व्यवस्था नहीं हो सकी है. बाढ़ पीड़ित चाहते हैं कि एनएचपीसी के डैम के कारण ही उन्हें भारी क्षति पहुंची और वह बेघर हुए. ऐसे में एनएचपीसी को ही आगे बढ़ना चाहिए. लेकिन समस्या यह है कि एनएचपीसी अकेले यह तय नहीं कर सकता. क्योंकि उसके साथ जीटीए भी शामिल है और राज्य सरकार की इकाइयों की सहमति भी आवश्यक है.
बहरहाल सिक्किम त्रासदी की पहली वर्षगांठ पर तीस्ता संरक्षण मंच के अधिकार और उनकी मांगों पर विचार करने के लिए सभी इकाइयों को एक मंच पर आने की जरूरत है. ताकि उनका पुनर्वास और मुआवजे का एक संयुक्त हल निकाला जा सके. अगर ऐसा नहीं होता है तो तीस्ता संरक्षण मंच खुद को ठगा महसूस करेगा.
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