जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार के विभिन्न इलाकों में अनेक चाय बागान हैं. जैसे डिमा टी गार्डन, पानबाड़ी चाय बागान, अटियाबाड़ी चाय बागान, राजभातखावा चाय बागान, मेचपाड़ा चाय बागान इत्यादि अलीपुरद्वार जिले के अंतर्गत आते हैं.इन चाय बागानों के नजदीक ही चाय श्रमिकों की अनेक बस्तियां हैं. पहले से ही गरीब और मजबूर चाय श्रमिकों की परेशानी और व्यथा को काल बैसाखी लगातार बढ़ा रही है. तीन दिन बीत गए. लेकिन अभी तक बस्ती वालों को प्रशासन अथवा राजनीतिक दलों से कोई सहयोग प्राप्त नहीं हुआ है. चुनाव से पूर्व राजनीतिक दल प्राकृतिक आपदा के मारे इन बेचारों पर मेहरबानी लुटा रहे थे. लेकिन चुनाव बीत गया. तब उनकी खोज खबर लेने वाला भी कोई नहीं है. अब तो भगवान ही इनका मालिक है. ईश्वर ने ही कष्ट दिया है तो ईश्वर ही उन्हें मुसीबत से बचाएगा! कुछ ऐसा ही ख्याल इन चाय श्रमिकों का है…
अलीपुरद्वार जिले के अंतर्गत कालचीनी ब्लॉक है. रविवार को यहां काल बैसाखी ने तांडव मचाया था. चाय बागान और चाय बागानों में रहने वाले अनेक श्रमिकों के मकान काल बैसाखी की भेंट चढ़ गए. व्यापक नुकसान हुआ था. चाय श्रमिकों की बस्तियों में पक्के मकान कम ही नजर आएंगे. टीन की छत होती है. टीन ऐसे उड़ रही थी जैसे फुटबॉल. ऊपर से बारिश. कई जगह तो झोंपड़ियों पर ही बड़े-बड़े पेड़ उखड़ कर गिर गए. तूफान इतना जबरदस्त था कि बिजली के पोल भी उखड़ गए. लगभग 20 मिनट तक तूफान कहर बरपाता रहा और जब वहां से तूफान गुजर गया तो सब कुछ शून्य था… ठीक उसी प्रकार से जैसे कुछ दिन पहले जलपाईगुड़ी के मयनागुड़ी इलाके में बस्ती की बस्ती काल बैसाखी की भेंट चढ़ गई थी.
लेकिन तब यहां चुनाव था. इसलिए वोट हासिल करने के लिए तृणमूल कांग्रेस से लेकर भाजपा के नेता उनके हमदर्द बने रहे.उन्हें दिल खोलकर मदद दी थी. कंपटीशन थी. कौन कितना ज्यादा दे सकता है. रातों-रात घर बनवा दिया. लेकिन अलीपुरद्वार में चुनाव बीतने के बाद कालचीनी ब्लॉक के तूफान पीड़ितों के जख्म पर मरहम लगाने अभी तक कोई नहीं आया है. रविवार से ही यहां बिजली गायब है. बिजली विभाग के अधिकारियों ने आश्वासन दिया था कि जल्द ही बिजली व्यवस्था ठीक कर ली जाएगी. पर 3 दिन बीत गए. बिजली विभाग का कोई भी अधिकारी यहां नहीं आया है. एक तो गर्मी, ऊपर से यह प्राकृतिक आपदा. चाय श्रमिकों के सब्र का पैमाना छलक गया. आज यहां के अनेक चाय श्रमिकों ने बिजली विभाग के सामने घंटों धरना प्रदर्शन किया है.
मीडिया स्रोतों के अनुसार कम से कम डेढ़ सौ चाय बागान श्रमिकों के घर उजड़ गए हैं. वे खुले आसमान के नीचे जीवन गुजार रहे हैं. बच्चे गर्मी से परेशान हैं. चाय पत्तियों को भी व्यापक नुकसान पहुंचा है.रास्ते खराब हो चुके हैं. बिजली विभाग ने लाइन काट रखी है. अभी तक पोल को दुरुस्त नहीं किया गया है. ऐसे में यह भी पता नहीं है कि इन बेचारों को कब तक अंधेरे में रहना होगा! उन्हें कब तक भीषण गर्मी की तपिश को झेलना होगा, यह भी ज्ञात नहीं है. रामदीन, सुंदर, भगत, अनीशा बेगम, बुलबुली जैसे चाय श्रमिक इसी चाय बागान में काम करते हैं. इन चाय श्रमिकों ने बताया कि कहने के लिए तो भाजपा, तृणमूल कांग्रेस, माकपा इत्यादि दलों के छोटे बड़े नेता आए थे उनका हाल जानने. मदद का भी आश्वासन दिया था.लेकिन अब तक उनकी तरफ से कोई मदद नहीं मिली है.
तूफान पीड़ितों की परेशानी ऐसी है कि छोटे-छोटे बच्चे हैं. खाने को घर में कुछ नहीं बचा है. मकान ध्वस्त हो चुका है. बिजली गायब है. पानी भी नहीं आ रहा है. ऊपर से जंगली इलाका है. रात में जागकर सुबह करते हैं. पता नहीं कब कौन सा जंगली जानवर आ जाए और उन्हें अपना शिकार बना ले. जंगली जानवरों का डर हमेशा बना रहता है. कम से कम बिजली व्यवस्था दुरुस्त हो जाती तो जंगली जानवरों से वह खुद की रक्षा कर सकते थे. अगर रात में कोई दरिंदा आता है तो उन्हें पता भी नहीं चलेगा. क्योंकि दूर-दूर तक शाम ढलते ही अंधेरा छा जाता है इस इलाके में.
आज के धरना प्रदर्शन के बाद देखना होगा कि बिजली विभाग कब तक मेहरबान होता है. बुलबुली बाई कहती है कि कहां है प्रशासन के लोग… क्या दीदी को उनकी हालत के बारे में पता नहीं है? फिर उन्हें क्यों नहीं सहयोग मिल रहा? पर इसका जवाब शायद किसी के पास नहीं है.
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