हाई कोर्ट को क्यों करनी पड़ी यह टिप्पणी. निजी अस्पताल और नर्सिंग होम की सेवाओं के बारे में तो सभी जानते हैं. पर जब कभी कानून और ऊपरी अदालत ऐसी टिप्पणियां करते हैं, तो स्थिति की गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है. अगर इसका विश्लेषण किया जाए तो यह कहा जा सकता है कि नर्सिंग होम और निजी अस्पताल मरीज की जेब देखकर सेवा करते हैं.
निजी अस्पताल से लेकर नर्सिंग होम तक यह बात मशहूर है कि यहां इलाज के लिए आए मरीज को काफी पैसे खर्च करना पड़ता है. अब तो कोर्ट भी यही मान रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि निजी अस्पताल मरीज को एटीएम की तरह इस्तेमाल कर पैसे निकालते हैं.
अगर पिछले कुछ समय की बात करें तो सिलीगुड़ी और कोलकाता में इस तरह की कई तस्वीर सामने आई. यहां सरकार द्वारा जारी किया गया स्वास्थ्य साथी कार्ड को निजी अस्पताल और नर्सिंग होम मानने के लिए तैयार नहीं. उसके बाद राज्य सरकार को उन्हें फटकार लगानी पड़ी. अब जाकर कुछ नर्सिंग होम और निजी अस्पताल स्वास्थ्य साथी कार्ड का सशर्त उपयोग के लिए तैयार होते हैं. हालांकि मरीज को इसका कोई लाभ नहीं मिलता.
कोर्ट ने यह कितनी बड़ी बात कही है. इसकी गंभीरता को समझा जा सकता है. सरकार से लेकर संगठन तक यह बात स्वीकार करने लगे हैं कि निजी अस्पताल और नर्सिंग होम मरीज का आर्थिक और मानसिक शोषण करते हैं. इलाहाबाद हाई कोर्ट की यह टिप्पणी सिलीगुड़ी समेत देशभर के निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम को सोचने के लिए मजबूर करती है.
निजी अस्पताल और नर्सिंग होम के सताए मरीजों की संख्या अनगिनत होगी. लेकिन समय-समय पर कुछ मामले अदालत में आते हैं, तब पता चलता है कि निजी अस्पताल और नर्सिंग होम किस तरह से मरीज की जेब खंगाल लेते हैं. इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जज प्रशांत कुमार ने यह टिप्पणी की है. उन्होंने यूपी के एक मामले में सर्जरी में देरी और इलाज में लापरवाही के आरोपी चिकित्सक अशोक कुमार राय के मामले में की है, जहां कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि पेशेवर चिकित्सक , जो लगन से मरीज की सेवा करता है, उसकी रक्षा की जानी चाहिए. लेकिन उनकी नहीं, जिन्होंने सुविधाओं, डॉक्टर और बुनियादी ढांचे के बिना नर्सिंग होम खोल रखे हैं और मरीजों को पैसे ऐंठने के लिए लुभा रहे हैं.
हालांकि आधुनिक समय में शहरों में खुल रहे नए निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में समस्त सुविधाएं और बुनियादी ढांचे मौजूद हैं. यहां तक कि निजी अस्पताल और नर्सिंग होम प्रबंधन बड़े-बड़े डॉक्टर को भी नियुक्त करते हैं. लेकिन अध्ययन बताते हैं कि डॉक्टर से लेकर कर्मचारी और प्रबंधन तक की नजर सिर्फ एक ही बात पर टिकी रहती है कि मरीज से अधिक से अधिक पैसे वसूल किया जा सके. वह मरीज के रोग पर कम ज्यादा मरीज की जेब पर ध्यान देते हैं. अस्पताल प्रबंधन खासकर महंगे वेतन पर नियुक्त डॉक्टर को निर्देश और प्रशिक्षण देते हैं.
सवाल है कि इस स्थिति को कैसे बदला जा सकता है. केवल सरकार के भरोसे नहीं हो सकता है. अदालतों को भी ऐसे निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम के लिए गाइडलाइंस जारी करने की जरूरत है.अगर सरकार पारदर्शी व्यवस्था पर जोर देती है और हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट मरीज की चिकित्सा को लेकर मूल्यवान गाइडलाइंस जारी करते हैं, तो स्थिति में परिवर्तन देखा जा सकता है. अगर ऐसा नहीं होता है तो कल को सुप्रीम कोर्ट निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम के लिए इससे भी बड़ी टिप्पणी दे सकता है.