एक बार फिर से पहाड़ को धक्का लगा है. क्षेत्रीय दलों के नेता बगले झांकने लगे हैं. केंद्र सरकार ने उनकी उम्मीदों का गला घोट दिया है. जम्मू कश्मीर को तो सब कुछ दे दिया, लेकिन दार्जिलिंग, कालिमपोंग और सिक्किम के साथ क्यों भेदभाव किया? किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा है. इस बीच अनित थापा 12 फरवरी से सड़कों पर उतर रहे हैं…
संसद में चल रहे बजट सत्र का आज समापन हो गया. पहाड़ की क्षेत्रीय पार्टियों और छोटे दलों को इस बजट सत्र से काफी उम्मीदें थीं. भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा के अनित थापा तो पूरे विश्वास से भरे थे. उनकी पार्टी ही क्यों, स्वयं भाजपा समर्थित संगठन और दल भी पूरी तरह आश्वस्त थे कि जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार ने बजट सत्र के पांचवें दिन जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जाति और जनजाति सूची संशोधन विधेयक पारित करके जम्मू कश्मीर के लोगों की मांग को पूरा कर दिया, उसके बाद दार्जिलिंग और सिक्किम के लोगों को भी लग रहा था कि केंद्र सरकार उनकी वर्षों पुरानी मांग को मान लेगी और कुछ जम्मू कश्मीर की तर्ज पर ही पहाड़ के लोगों के हक में घोषणा करेगी, परंतु बजट सत्र का समापन हो गया, पहाड़ के लोगों के लिए कोई ऐलान नहीं किया गया है.
पहाड़ में क्षेत्रीय दलों और स्थानीय लोगों में मायूसी छाई है. तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं. कई दलों के नेता भाजपा को छलने वाली पार्टी बता रहे हैं, तो कुछ नेता आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को घेरने की बात बता रहे हैं. स्थानीय लोग भी कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं. लोगों का मानना है कि जिस तरह से गोरखा समाज ने देश के लिए बड़ी-बड़ी कुर्बानियां दी हैं, इन्हें देखते हुए केंद्र सरकार को उनके हित में वर्षों पुरानी मांग को लेकर अपना वादा पूरा करना चाहिए. दरअसल पहाड़ के छूटे हुए 11 जनजाति गोष्ठी को जनजाति के अंतर्गत लाने की मांग वर्षों से की जा रही है. इस मुद्दे पर पहाड़ के सभी क्षेत्रीय दल एकमत हैं.
भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा ने तो अब आंदोलन करने का फैसला कर लिया है. अनित थापा ने कहा है कि 12 फरवरी से उनकी पार्टी के कार्यकर्ता दार्जिलिंग, मिरिक, कर्सियांग और कालिमपोंग में धरना कार्यक्रम शुरू करेंगे. उन्होंने यह बात पिंटेल विलेज के एक संवाददाता कार्यक्रम में कही थी. इस अवसर पर उन्होंने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी ने गोरखा बिरादरी को न्याय देने की बात कही थी और संकल्प भी किया था.
बहरहाल सभी को निराशा हाथ लगी है. अब पहाड़ में विपक्षी पार्टियां भाजपा के खिलाफ रणनीति तैयार कर रही हैं. इनमें से एक रणनीति यह भी है कि केंद्र सरकार गोरखा लोगों को गंभीरता से लेती ही नहीं है और सिर्फ वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती है. आने वाले समय में इस मुद्दे को तेजी से हवा दिया जाएगा और भाजपा को घेरने की कोशिश की जाएगी. अनित थापा 12 फरवरी से भाजपा के खिलाफ धरना प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं. आपको बताते चलें कि अनित थापा राज्य सरकार के साथ मिलकर पहाड़ में लोकसभा के लिए अपना उम्मीदवार उतार रहे हैं.
पर्वतीय क्षेत्रों में आम से लेकर खास तक इस मुद्दे पर क्षेत्रीय दलों के साथ हैं. उनकी प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं. भाजपा पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया जा रहा है. पहाड़ के लोगों का कहना है कि जिस तरह से केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर में छूटे हुए चार जातियों को जनजाति की मान्यता देने का विधेयक पारित कर दिया, उससे पहाड़ के लोगों की उम्मीदें बढ़ गई थी. लेकिन संसद सत्र समाप्त होने के बाद पहाड़ के लोग निराश हो गए हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में यह एक बड़ा मुद्दा बनेगा.
सिक्किम से लेकर दार्जिलिंग, कालिमपोंग और कर्सियांग तक यह मुद्दा प्रबल बनता जा रहा है. क्षेत्रीय दलों के नेता स्थानीय लोगों को भाजपा के खिलाफ भड़काने की कोशिश कर रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी की पहाड़ इकाई भी असमंजस में है. स्थानीय पार्टी नेताओं को भी फिलहाल कुछ समझ में नहीं आ रहा है. इसलिए अभी वे शांत हैं और वर्तमान संकट से निपटने की रणनीति तलाश रहे हैं. बहरहाल 12 तारीख से भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा का भाजपा के खिलाफ धरना प्रदर्शन पहाड़ की राजनीति में क्या भूचाल लाता है, इस पर रहेगी हमारी नजर!
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