मौसम विभाग की भविष्यवाणी को धत्ता बताते हुए सूरज आसमान का कलेजा चीर कर धरती के जल, जीवन, जन्तु और संपदा को जलाने लगा है. मानव ही क्यों, पशु, पक्षी ,वनस्पति पानी के लिए तरस रहे हैं. जब आसमान में उड़ते हुए पक्षी पानी की तलाश में महानंदा नदी में भटक रहे होते हैं, तो उन्हें पानी कम और ज्यादा चांदी ही नजर आती है. कम से कम नौका घाट स्थित महानंदा नदी की हालत देखकर ऐसा कहना कोई गलत नहीं होगा.
नौका घाट के पास दो नदियों का संगम है. महानंदा और पंचनई नदी. किसी समय दोनों ही नदियां कलरव करती हुई बहती थीं तो आसपास की प्राकृतिक संपदा भी संजीव हो उठती थी. यह वही महानंदा नदी है, जो बरसात के समय बाढ़ का रूप धारण कर लेती है. जब पहाड़ से बड़े-बड़े पत्थर, वृक्ष नदी की जलधारा में बहते हुए आगे बढ़ते हैं तो उनकी गति को नापना और उसे अवरुद्ध करना आसान नहीं होता. लेकिन आज इन नदियों को देखकर रोना आता है. ऐसा लगता है कि यहां कभी नदी ही नहीं थी.
चिंताजनक बात तो यह है कि अभी गर्मी की शुरुआत हुई है. चैत्र का महीना जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा, गर्मी का सितम भी बढ़ता जाएगा. मौसम वैज्ञानिकों ने पहले भी चेता दिया है. इस बार गर्मी पिछला रिकॉर्ड भी तोड़ देगी. ऐसे में जब मौसम क्लाइमेक्स पर होगा तो शायद इस नदी के बारे में यही कहा जा सकता है कि कभी यहां एक नदी होती थी!
अप्रैल का महीना है. कुछ ही दिनों पहले ठंड की विदाई हो चुकी है. उसके बाद गर्मी की तपिश धीरे-धीरे बढ़ती है, जो मई महीने में झुलसाने लगती है. अब तक तो ऐसा ही देखा गया है. यह पहला मौका है, जब ठंड के बाद एकाएक ही गर्मी और तपिश ने सितम ढाना शुरू कर दिया. सूरज की किरणों में इतना तीखापन आ गया है कि लोग कयास लगाने लगे है कि मई जून के महीने में आलम क्या होगा!
नौकाघाट स्थित महानंदा नदी की हालत ऐसी है कि दोपहर के समय नदी के वक्षस्थल पर चांदी ही चांदी नजर आती है. तीखी धूप में सफेद चमकती रेत मानो चांदी की तरह चमकने लगती है. सबसे ज्यादा संकट मवेशियों के लिए है, जो महानंदा नदी में चारे की तलाश कर रहे होते हैं. बहुत कम चारागाह बच गया है. शेष भाग में रेत और रेत नजर आती है. जहां तक नदी की जलधारा की बात है, तो यह महज एक नाले के रूप में ही नजर आती है. इसी नाले से पशु पक्षी और जानवर अपनी प्यास बुझा पाते हैं.
चैत्र महीने की छठ पूजा भी शुरू होने वाली है. छठ व्रती भी चिंतित है कि जब नदी में पानी ही नहीं होगा, तब छठ पूजा कैसे होगी. छठ पूजा नदी और तालाब में ही संपन्न होती है. इस बार पड़ रही कडाके की धूप और तपिश ने छठ व्रतियों की भी चिंता बढ़ा दी है. बरसात का नहीं होना और दिन पर दिन बढ़ती तीखी धूप से नदी सूखने लगी है.
यूं तो सिलीगुड़ी शहर में पेय जल समस्या हमेशा बनी रहती है. पर इस समय तो स्थिति और ज्यादा कष्ट दायक है. ऐसे भी सिलीगुड़ी शहर को दूसरे मौसम में आधा पानी मिलता रहा है. गर्मियों में तो स्थिति और ज्यादा भयंकर हो जाती है. गर्मी की शुरुआत में ही सिलीगुड़ी शहर पेयजल संकट से जूझने लगा है. सिलीगुड़ी नगर निगम के कई वार्डों में लोगों को पेयजल उपलब्ध नहीं है. सिलीगुड़ी नगर निगम ने भी हाथ खड़े कर लिए हैं. महानंदा में पानी नहीं है. इसलिए गाजोलडोबा जल परियोजना से पानी लेने की बात की जा रही है.
कुल मिलाकर स्थिति चिंताजनक है. कहते हैं कि शहर के विकास में नदियों का प्रमुख योगदान होता है. लेकिन जब नदी में पानी ही नहीं हो तब उस शहर के विकास की क्या बात की जा सकती है. सिलीगुड़ी शहर इस अभिशाप से मुक्त नहीं है. चलिए पानी नहीं है तो क्या, महानंदा नदी के वक्षस्थल पर चांदी तो जरूर बिखरी है. दोपहर के समय नौकाघाट पर यह नजारा आप जरूर देख सकते हैं.
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