भारत में नौकरी के नाम पर बड़े-बड़े सपने दिखाकर किस तरह नेपाल के भोले भाले लोगों को बहला फुसला कर भारत लाया जाता है और उन्हें जबरन अंधेरी कोठियों में बंद करके किस तरह उनकी जिंदगी को नर्क बना दिया जाता है, जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. इस डिजिटल युग में भी मानव के साथ पशुओं का व्यवहार किया जाए तो आश्चर्य भी होता है. भारत में मानव तस्कर और ऐसी ऐसी एजेंसियां सक्रिय हैं, जो भारत की पुरातन संस्कृति को नष्ट कर रही हैं. सरकार को जल्द ही ऐसी एजेंसियों की पहचान करके कार्रवाई करनी चाहिए. चाहे आप नेपाल के नागरिक हो या भारत के, अगर कोई आपको नौकरी के बड़े-बड़े सपने दिखाता है तो एक बार जरूर सोचिएगा…
मीडिया खबरों में जो कुछ भी सामने आ रहा है, वह वह भारत की संवेदनशीलता पर चोट करता है. नेपाली नागरिकों को भारत में बंधुआ मजदूर बनाया गया था. उन्हें इतना कम भोजन दिया जाता था, जिससे कि वह सांस तो ले सके और आजीवन मालिक की सेवा कर सकें. विडंबना तो यह भी है कि ऐसे बंधुआ मजदूर नेपाली नागरिकों को मजबूर किया जाता था कि वह अपने यार दोस्तों को भी ला सके, ताकि एजेंटों की दाल रोटी चलती रहे…
नेपाली नागरिकों के शोषण और उत्पीड़न की यह कहानी रोंगटे खड़ी कर देती है. विभिन्न समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनल की सुर्खियां बनी नेपाली नागरिकों की बंधुआ मजदूरी की दास्तान जानकर नेपाल सरकार ने एक एडवाइजरी जारी की है और अपने नागरिकों से कहा है कि अगर वे भारत में नौकरी करने जा रहे हैं तो सतर्क रहें और धोखेबाज एजेंसियों और अपराधियों के चंगुल में न फ॔से.
कदाचित यह कहानी एक गुमनाम कहानी बनकर रह जाती, अगर इस दलदल से निकलकर एक बंधुआ मजदूर भाग कर नेपाल नहीं पहुंचा होता. जब उसने पुलिस को सारी कहानी बताई तो पुलिस भी हैरान रह गई. उत्तराखंड के काशीपुर में बनाए गए नेपाली बंधकों में से यह युवा भी शामिल था, जो किसी तरह भागकर नेपाल पहुंच गया था. उसने अपने बंधक बनाए गए साथियों को छुड़ाने में नेपाली पुलिस, NGO और उत्तराखंड की पुलिस को काफी सहयोग किया. पुलिस ने एक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया और काशीपुर के एक मकान में छापा मार कर 35 नेपाली नागरिकों को मुक्त कराया. ये नेपाली युवा जिस कमरे में बंधक बनाए गए थे, उस कमरे की सभी खिड़कियों और दरवाजों को बंद कर दिया गया था ताकि बाहरी दुनिया से उनका कोई संपर्क नहीं रहे.
पुलिस सूत्रों ने बताया कि जब पुलिस कमरे में पहुंची तो कमरे में एक कोने में प्लास्टिक की प्लेटों का ढेर लगा हुआ था, जहां बासी चावल पड़ा था और वह सड़ गया था. बंधुआ मजदूर इस कदर डरे हुए थे कि पहले तो किसी ने भी कोई जवाब नहीं दिया. लेकिन जब पुलिस ने बताया कि उन्हें मुक्त कराने आई है तो कुछ नेपाली बंधुआ मजदूर फूट-फूट कर रोने लगे. नेपाल एक गरीब देश है. नेपाल में रोजगार का संकट है. वहां के पढ़े-लिखे युवाओं को रोजी रोजगार के लिए भारत और दूसरे देशों में जाना पड़ता है.
भारत में सक्रिय कुछ एजेंसियां और मानव तस्कर के एजेंट ऐसे नेपाली नागरिकों को अच्छी नौकरी के प्रलोभन देकर भारत लाते हैं. उत्तराखंड पुलिस ने बताया कि मार्केटिंग फर्म में काम करने के लिए इन नेपाली नागरिकों को यहां लाया गया था. उनसे कहा गया था कि पैकेजिंग अथवा एकाउंट के काम के लिए उन्हें ले जाया जा रहा है. लेकिन जब उन्हें रुद्रपुर और काशीपुर में कमरे में रखा गया और उनके साथ मारपीट की गई, तो सच्चाई सामने आई.
पुलिस ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार से कम से कम 60 नेपाली नागरिकों को रेस्क्यू किया है. यह सभी नागरिक विभिन्न प्रदेशों में नारकीय यातना भोग रहे थे. उनसे बंधुआ मजदूरी कराई जा रही थी. इन नेपाली नागरिकों को रेस्क्यू करने में भारतीय अधिकारियों, एनजीओ के कर्मचारी और भारत स्थित नेपाल एंबेसी के अधिकारियों ने पूरा सहयोग किया. नेपाल के सुनसारी के रहने वाले एक 18 वर्षीय बंधुआ नेपाली मजदूर ने बताया कि उससे प्रोसेसिंग फीस के नाम पर ₹15000 भी वसूले गए थे. भुक्तभोगी के अनुसार उसे यहां कैद करके माड़ भात खिलाया जाता था. कभी-कभी आलू भी दिया जाता था. उसे जमीन पर सोने के लिए कहा जाता था और धमकाया जाता था कि वह यह बात किसी को ना बताए.
नेपाल के धरान के रहने वाले 19 वर्षीय एक अन्य बंधक युवक ने बताया कि उन लोगों ने उसे सात महीने तक कमरे में बंद रखा. उसे पीटा जाता था. उससे कहा जाता था कि मैं अपने दोस्तों को फोन करके यहां बुलाऊं.. मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं कभी घर नहीं लौट पाऊंगा. उत्तराखंड से पिछले हफ्ते ही 57 नेपाली नागरिकों को रेस्क्यू कराया गया था. इनमें 12 नाबालिग भी शामिल थे. ऐसा माना जा रहा है कि अभी भी हजारों की तादाद में नेपाली नागरिक भारत के विभिन्न प्रदेशों में फंसे हुए हैं. पुलिस इसकी जांच कर रही है.अधिकारियों ने बताया कि जल्द ही बाकी लोगों को भी रेस्क्यू करा लिया जाएगा.
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