पहाड़ का संतरा सिलीगुड़ी में कितना आता है, यह तो पता नहीं परंतु हम और आप जो संतरा खरीदते हैं,वह संतरा कम और कीनू ज्यादा होता है. नागपुर से काफी मात्रा में सिलीगुड़ी के रेगुलेटेड मार्केट में कीनू आ रहा है. संतरा खरीदते समय लोग दुकानदारों से पूछ रहे हैं कि क्या यह दार्जिलिंग का संतरा है? दुकानदार बिक्री के लिए कीनू को ही दार्जिलिंग का संतरा बता रहे हैं.
कहने का मतलब यह है कि पहाड़ का संतरा काफी प्रसिद्ध है और बच्चे बच्चे की जुबान पर दार्जिलिंग का संतरा रहता है. किसी समय दार्जिलिंग और सभी पर्वतीय क्षेत्रों में संतरे की खूब खेती होती थी. सिक्किम में पेलिंग के निकट एक स्थान है सुनताले, जो संतरे के लिए ही प्रसिद्ध है. इस गांव में सिर्फ और सिर्फ संतरे की ही खेती होती है. पहाड़ में संतरे की खेती मिरिक, दार्जिलिंग, कालिमपोंग इत्यादि क्षेत्रों में की जाती है. इसके अलावा सिक्किम में भी भरपूर स॔तरे का उत्पादन होता था.
पहाड़ में संतरे की कितनी बड़ी खेती होती है, यह इसी बात से समझा जा सकता है कि पूरे बंगाल में लगभग 4150 हेक्टेयर भूमि में संतरे की खेती होती है. इनमें से अकेले पहाड़ यानी दार्जिलिंग, कालिमपोंग इत्यादि को मिला दिया जाए तो चार हजार हेक्टेयर भूमि में संतरे का उत्पादन होता है. लेकिन मौजूदा हालात यह है कि सिर्फ नाम के लिए ही दार्जिलिंग यानी पहाड़ का संतरा रह गया है. संतरे की खेती लगातार कम होती जा रही है.
पिछले कुछ सालों से संतरे का उत्पादन लगातार घटता जा रहा है. सिलीगुड़ी के रेगुलेटेड मार्केट में दार्जिलिंग का संतरा एक तरह से नदारद हो चुका है.क्योंकि इस बार संतरे की खेती करने वाले किसान फसल नहीं होने को लेकर काफी परेशान हैं. रेगुलेटेड मार्केट में सिर्फ 20% ही दार्जिलिंग का संतरा बिक रहा है. संतरे की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि सरकारी उदासीनता और मदद नहीं मिलने के कारण उनकी फसल लगातार घट रही है. अगर सरकार का यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब पहाड़ का संतरा विलुप्त हो जाएगा.
पहाड़ के किसान राज्य सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से आस लगाए बैठे हैं. पिछले दिनों मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने किसी रिश्तेदार की शादी में पहाड़ में आई थी.उन्होंने यहां के चाय बागान में भी भ्रमण किया था. संतरा किसानो की शिकायत है कि मुख्यमंत्री को एक बार संतरे के बाग में भी आना चाहिए था और किसानों से कम उत्पादन की पीड़ा भी समझनी चाहिए था. पहाड़ में नौकरी तो नहीं है, लेकिन अधिकांश लोगों की रोजी-रोटी खेती किसानी पर ही निर्भर करती है. ऐसे में जब उत्पादन नहीं होगा तो किसानो की आजीविका कैसे चलेगी.
हाल ही में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहाड़ के विकास के लिए जीटीए को करोड़ों रुपए दिए हैं. पहाड़ के संतरा किसान उम्मीद कर रहे हैं कि जीटीए किसानो की माली हालत सुधारने तथा संतरे की खेती में योगदान के लिए किसानों को सभी सुविधाएं उपलब्ध कराएगी. समय का तकाजा भी है. पहाड़ के संतरा को बचाया जाए और किसानों के चेहरे पर मुस्कान लौटाई जाए.