अपनी ही सरकार के कुछ मंत्री और नेता ममता बनर्जी से खफा, सोनागाछी की सेक्स वर्कर्स ने दुर्गा पूजा के लिए प्रतिमा निर्माण हेतु मिट्टी देने से किया मना… कुछ पूजा क्लबों के द्वारा सरकार के द्वारा हर साल पूजा क्लबो को दी जाने वाली आर्थिक सहायता को ठुकरा दिया जाना और इस तरह से आम से लेकर खास द्वारा बंगाल सरकार का विरोध, आरजीकर कांड का विरोध प्रदर्शन, यह कुछ ऐसी बातें हैं जिसने ममता बनर्जी की सरकार को बैक फुट पर ला खड़ा किया है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की शैली और उनकी आक्रामक छवि की हमेशा चर्चा होती है. बंगाल के लोग उन्हें काफी पसंद भी करते हैं. ममता बनर्जी उस शख्सियत का नाम है, जिसने कभी हारना सीखा नहीं. पिछले 13 सालों में ना तो उन्हें कभी मजबूर देखा गया और ना ही इतना शान्त, जो वर्तमान में नजर आ रही है. जानकारो के अनुसार ममता बनर्जी पिछले 13 सालों में पहली बार सियासी भंवर में बुरी तरह फंस चुकी है. इस भंवर से निकलने का फिलहाल उनके पास कोई रास्ता अथवा तरकीब नजर नहीं आ रही है.
ममता बनर्जी और उनकी सरकार के लिए संकट कितना बड़ा है, यह इसी बात से समझा जा सकता है कि उनके ही मंत्रिमंडल के कुछ मंत्री भी बागी तेवर अपनाने लगे हैं. कुछ उनकी कार्य शैली का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से विरोध कर रहे हैं. आरजीकर कांड के विरोध में कोलकाता की कुछ दुर्गा पूजा कमेटियों तथा क्लबो ने सरकार द्वारा हर साल दुर्गा पूजा क्लबो को दी जाने वाली सरकारी मदद लेने से भी इंकार कर दिया है. इस बार ममता बनर्जी ने राज्य भर में दुर्गा पूजा क्लबो को 85000 रू प्रति क्लब देने का फैसला किया है. लेकिन जानकारी मिल रही है कि इस कांड को लेकर बंगाल के दुर्गा पूजा क्लब इतने दुखी हो गए हैं कि उन्होंने सरकारी सहायता लेने से मना कर दिया है. उत्तरपारा के शक्ति संघ तथा दक्षिण कोलकाता के द हाइलैंड पार्क उत्सव कमेटी ने सरकारी सहायता लेने से इनकार कर दिया है.
सूत्र बता रहे हैं कि आने वाले समय में दक्षिण से लेकर उत्तर तक दुर्गा पूजा के क्लबो द्वारा उत्तरपारा के शक्ति संघ और दि हाइलैंड पार्क उत्सव कमेटी का अनुसरण किया जा सकता है. आरजीकर घटना के विरोध में डॉक्टर से लेकर विभिन्न व्यवसाय और रोजगार से जुड़े संगठनों की रैली निकाली जा रही है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ममता बनर्जी के इस्तीफे की मांग की जा रही है. ऐसा कोई भी क्षेत्र बाकी नहीं है, जहां आरजीकर कांड की गूंज सुनाई ना पड़ती हो. इसके लिए प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से पश्चिम बंगाल सरकार को कोसा जा रहा है.
इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने संकट से बचाव के लिए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के नेतृत्व में वकीलों की फौज उतार दी है ताकि उनकी सरकार के दामन पर कोई दाग न लगे. आरजी कर कांड में पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से जिन 21 वकीलों को पैरवी सौंपी गई है, वे सभी एक से बढ़कर एक वकील है. और काफी तेज तर्रार हैं.बंगाल सरकार ने बचाव के लिए आधे से ज्यादा महिला वकीलों को रखा है. इन सभी के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार को जबरदस्त फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से ही पता चलता है जिसमें कोर्ट ने कहा कि 30 सालों में ऐसा मामला कभी नहीं देखा, जहां सरकार से लेकर पुलिस और प्रशासन सब लापरवाह नजर आए.
ममता बनर्जी के शासनकाल में कभी इतना बड़ा आंदोलन नहीं हुआ था. सोशल मीडिया पर उनसे इस्तीफे की मांग की जा रही है और कहा जा रहा है कि अगर 26 अगस्त तक ममता बनर्जी इस्तीफा नहीं देती है तो 27 अगस्त को सचिवालय का घेराव किया जाएगा. ममता बनर्जी की सरकार चाह कर भी प्रदर्शनकारियों को रोक नहीं सकती क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में कहा है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले लोगों को रोका नहीं जाना चाहिए. आरंभ में ममता बनर्जी ने इस मामले को डाइवर्ट करने की काफी कोशिश की लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. जैसे उन्होंने खुद सड़क पर उतरकर दुष्कर्मी को फांसी की सजा देने की मांग के अलावा सीबीआई जांच, सीबीआई के खिलाफ धरना प्रदर्शन की धमकी इत्यादि बहुत कुछ किया. लेकिन इस केस और सीबीआई की जांच ने उनकी सारी कोशिशों पर पानी फेर दिया.
अब चारों तरफ से मिली निराशा के बाद ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ही कुछ सहयोग की उम्मीद कर रही है. इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है और कहा है कि केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री कुछ ऐसा करें कि दुष्कर्म के दोषियों को 50 दिनों मे ही फांसी पर लटका दिया जाए. ममता बनर्जी ने पत्र में लिखा है कि देश में दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ रही हैं और मैं चाहती हूं कि आप ऐसा कानून बनाएं जिसमें आरोपियों को 50 दिन के भीतर सजा मिल सके.
फिलहाल बंगाल की स्थिति अच्छी नहीं है और आरजीकर कांड को लेकर बंगाल भाजपा और वाम मोर्चा एक साथ हो गए हैं. ऊपर से बंगाल की जनता सरकार के प्रति तीव्र गुस्से में है. देखना होगा कि ममता बनर्जी इस सियासी भंवर से निकल पाती है या नहीं और यदि वह निकल पाती है तो कब तक?
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