November 14, 2024
Sevoke Road, Siliguri
उत्तर बंगाल लाइफस्टाइल सिलीगुड़ी

देश की शान और गोरखा के अभिमान मेजर धनसिंह थापा की प्रतिमा हिलकार्ट रोड पर स्थापित होगी!

सिलीगुड़ी के वक्ष स्थल हिल कार्ट रोड पर मेजर धन सिंह थापा की प्रतिमा स्थापित होने जा रही है. इस खबर के बाद सिलीगुड़ी, पहाड़ और Dooars के गोरखा समुदाय में खुशी की लहर फैल गई है. केवल उत्तर बंगाल ही नहीं, सिक्किम और उत्तर भारत के पर्वतीय क्षेत्रों के गोरखा समुदाय भी काफी खुश हैं. काफी समय से सिलीगुड़ी में उनकी प्रतिमा स्थापित करने के लिए प्रयास हो रहा था.

मेजर धन सिंह थापा एक ऐसे भारतीय गोरखा सैनिक थे, जिन्होंने 1962 के भारत चीन युद्ध में चीनी सैनिकों के होश फाखता कर दिए थे.हालांकि भारत यह युद्ध हार गया था, लेकिन मेजर धन सिंह थापा ने अपने पराक्रम, वीरता और सूझबूझ से चीन को यह एहसास कर दिया था कि भारतीय गोरखा सैनिक अपने देश के लिए हमेशा मर मिटने को तैयार रहते हैं.

सिलीगुड़ी में परमवीर चक्र मेजर धन सिंह थापा सालिग निर्माण समिति की आश्रम पाड़ा में गोरखा शिव मंदिर परिचालन समिति के सभागृह में एक सभा हुई थी. इस सभा में परमवीर चक्र मेजर धन सिंह थापा की प्रतिमा को मूर्त रूप देने के लिए कर्नल पीके शर्मा और केशव राई को दायित्व दिया गया है. जबकि मूर्ति परिसर के सौंदर्यीकरण की जिम्मेदारी अभियंता दास,पूर्ण छेत्री और रोशन छेत्री को दी गई है.

मेजर धन सिंह थापा का जन्म 10 अप्रैल 1928 को हिमाचल प्रदेश के शिमला में हुआ था. उनके पिता श्री पद्म सिंह थापा क्षेत्री थे. श्री थापा को आठ गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन में 28 अगस्त 1949 को शामिल किया गया था. भारत द्वारा अधिकृत क्षेत्र में बढ़ती चीनी घुसपैठ के जवाब में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीन का मुकाबला करने के लिए फॉरवर्ड पॉलिसी को लागू किया था. योजना यह बनी थी कि चीन के सामने कई छोटी-छोटी पोस्टों की स्थापना की जाए.

सिरिजैप 1, पोंग॔ग झील के उत्तरी किनारे पर 8 गोरखा राइफल्स की प्रथम बटालियन द्वारा स्थापित एक पोस्ट थी, जो मेजर धन सिंह थापा की कमान में थी. 21 अक्टूबर 1962 को चीनी सेना ने इस पोस्ट को चारों तरफ से घेर लिया. मेजर थापा तथा उनके सैनिकों ने पूरी वीरता के साथ चीनी सैनिकों का मुकाबला किया. उन्होंने तीन-तीन बार चीनी सैनिकों को पीठ दिखाने पर मजबूर कर दिया. लेकिन कई कारणों से भारत यह युद्ध हार गया. इसके साथ ही चीन ने मेजर धन सिंह थापा को बंदी बना लिया.

चीनी सेना ने बंदी मेजर थापा के साथ बुरा सलूक किया. उन्हें भारी यातनाएं भी दी गई. इसलिए कि उन्होंने कई चीनी सैनिकों को मार गिराया था. चीन चाहता था कि मेजर थापा भारतीय सेना और भारत सरकार के खिलाफ बयान दें. लेकिन मेजर धन सिंह थापा ने स्पष्ट कर दिया कि भारत उनकी मां है और मां के साथ वह कभी गद्दारी नहीं करेंगे. युद्ध की समाप्ति के बाद मेजर थापा को चीन ने रिहा कर दिया.

भारत सरकार ने मेजर धन सिंह थापा की बहादुरी, उनकी दृढता, महान कृति और अपने सैनिकों को युद्ध के दौरान प्रेरित करने के उनके प्रयासों के कारण उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया. मेजर धन सिंह थापा की वीरता के अनेक किस्से हैं. उनकी एक बार दिवंगत होने की भी झूठी खबर आई थी. 10 मई 1963 को भारत लौटने पर मेजर थापा का सेना मुख्यालय में भव्य स्वागत किया गया था. लेकिन जब वह दो दिन बाद अपने घर देहरादून पहुंचे तो पता चला कि उनका अंतिम संस्कार हो चुका था और उनकी पत्नी विधवा की तरह रह रही थी.

गोरखा की धार्मिक परंपरा के अनुसार उनके कुल पुरोहित ने उनका मुंडन करवाया और उनका फिर से विवाह करवाया गया. 5 सितंबर 2005 को 77 साल की आयु में उनका निधन हो गया. अपने जीवन में अनेक उतार-चढाव और भारत के लिए जीने और मरने वाले मेजर धन सिंह थापा की सिलीगुड़ी में प्रतिमा स्थापित करने के लिए सिलीगुड़ी नगर निगम और पीडब्ल्यूडी ने जमीन उपलब्ध करा दी है. उनकी प्रतिमा हिलकार्ट रोड पर स्थित हनुमान मंदिर के निकट मल्लागुरी में 12 फीट ऊंची बनने जा रही है. इससे गोरखा ही नहीं बल्कि सभी समुदायों में काफी खुशी व्याप्त है.

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