सुरक्षित भारत के दावों के बीच NARI 2025 की रिपोर्ट ने महिलाओं की सुरक्षा पर चुभते सवाल खड़े कर दिए हैं। 12,770 महिलाओं से 31 शहरों में किए गए सर्वे पर आधारित नेशनल एनुअल रिपोर्ट एंड इंडेक्स ऑन विमेन्स सेफ्टी (NARI 2025) बताती है कि देश का औसत सुरक्षा स्कोर 65% है। यानी कागज़ों पर हम इसे ‘above average’ लिख सकते हैं, लेकिन असलियत ये है कि 40% महिलाएँ अब भी अपने ही शहर में खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं। NCRB के महिलाओं के साथ हुए अपराध के आधिकारिक आँकड़े इस रिपोर्ट से मेल नहीं खाते , NARI रिपोर्ट ने यह कड़वी सच्चाई उजागर की है कि 2024 में हर 100 में से 7 महिलाओं ने सार्वजनिक स्थानों पर छेड़छाड़, फब्तियों, अश्लील टिप्पणियों और छूने जैसी घटनाओं का सामना किया। सबसे ज्यादा खतरे में 18 से 24 साल की युवतियाँ रहीं, जिनमें यह आंकड़ा दोगुना होकर 14% तक पहुँच गया। ये सभी आंकड़े NCRB के आधिकारिक’ आंकड़े से 100 गुना ज़्यदा है।
रिपोर्ट ने यह भी साफ किया कि महिलाएँ सबसे ज्यादा असुरक्षित अपने मोहल्लों और सार्वजनिक परिवहन में महसूस करती हैं। पड़ोस को 38% महिलाओं ने डर की जगह बताया, जबकि बसों और ट्रेनों को 29% ने छेड़छाड़ का हॉटस्पॉट माना। लेकिन असली समस्या यह है कि दो में से तीन महिलाएँ शिकायत ही नहीं करतीं। यानी जो आंकड़े NCRB के पास हैं, वे सिर्फ सतह पर तैरते बुलबुले हैं, असली समंदर नीचे छुपा हुआ है। इस रिपोर्ट में बताया गया है की गंगटोक, कोहिमा, आइज़ोल और भुवनेश्वर जैसे छोटे शहर सुरक्षा की मिसाल पेश कर रहे हैं, वहीं दिल्ली, पटना, जयपुर और कोलकाता जैसे बड़े शहर शर्मनाक तरीके से सबसे नीचे खिसक गए हैं । रिपोर्ट ने साफ कहा कि जहां लिंग समानता, नागरिक भागीदारी और महिला-हितैषी ढांचा मजबूत है, वहां महिलाएँ सुरक्षित महसूस करती हैं, जबकि जहां patriarchal सोंच यानी की पितृसत्तात्मक सोच और कमजोर संस्थागत प्रतिक्रिया है, वहां हालात बदतर बने हुए हैं। नेशनल कमीशन फॉर वुमन की चेयरपर्सन विजया राहतकर ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि सुरक्षा को सिर्फ कानून-व्यवस्था से जोड़कर नहीं देखा जा सकता, बल्कि यह एक ऐसा मुद्दा है जो महिलाओं के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है, चाहे वह उनकी शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, काम के अवसर हों या फिर आने-जाने, चलने फिरने की आज़ादी हो । उन्होंने चेतावनी दी कि जब महिलाएँ खुद को असुरक्षित मानने लगती हैं तो वे खुद को सीमित कर लेती हैं, और यह सीमित होना सिर्फ उनके लिए नहीं बल्कि देश के विकास के लिए भी रुकावट बन जाता है।
हालांकि कुछ सकारात्मक तस्वीर भी उभर कर आई। 91% महिलाओं ने कार्यस्थलों को सुरक्षित बताया ज़रूर है , लेकिन आधी से ज्यादा महिलाओं को यह तक नहीं पता था कि उनके दफ्तर में POSH नीति है या नहीं। POSH नीति यानी की Prevention of Sexual Harassment policy, यानी सुरक्षा की दीवार खड़ी की गई है, लेकिन भरोसे की ईंटें अब भी गायब हैं। राहतकर ने इस मौके पर महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ने, महिला बस ड्राइवरों, स्मार्ट सिटीज़ में सीसीटीवी और रेलवे/बस अड्डों पर बेहतर नेटवर्क जैसी पहलों की सराहना ज़रूर की है , लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठाया कि समाज खुद कितना जिम्मेदार है। रिपोर्ट के अंत में सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा होता है कि क्या 65% सुरक्षा स्कोर को हासिल कर लेना वाकई गर्व की बात है? जब दो में से एक महिला कहती है कि उसे अपने ही शहर पर भरोसा नहीं है, तो फिर हम किस सुरक्षा की बात कर रहे हैं? यह विडंबना ही है कि छोटे शहर महिलाओँ के लिए सुरक्षित माहौल बना पा रहे हैं, लेकिन राजधानी दिल्ली और बड़े महानगर अब भी महिलाओं के लिए डर का दूसरा नाम बने हुए हैं।
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महिलाओं की सुरक्षा पर खुल गई पोल,गंगटोक-मुंबई सुरक्षित, दिल्ली-कोलकाता में खतरे की घंटी !
- by Ryanshi
- September 4, 2025
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- 5 hours ago
