फर्जी वर्दी में ‘हीरो’ बनने चला था युवक, निकला धोखे का सौदागर!
‘वो जब कंधे पर सितारे और सीने पर नाम की प्लेट लगा कर निकलता था, तो लगता था जैसे पूरे कानून की ताक़त उसके कदमों में हो।
गांव की गलियों में उसकी चाल किसी मूवी के हीरो जैसी होती। लोग रास्ता छोड़ देते, महिलाएं आंखों से सलाम करतीं और बुज़ुर्ग गदगद होकर कहते—”देखो, अपने गांव का बेटा पुलिस में है!”
लेकिन जो दिखता है, वही सच नहीं होता।
22 साल का अंकित घोष, उत्तर 24 परगना के गाइघाटा इलाके के शिमुलपुर चौरंगी का रहने वाला, पिछले एक साल से पूरे गांव को, पूरे समाज को और यहां तक कि अपने परिवार को भी धोखे में रखे था।
वो पुलिस की वर्दी पहनकर निकलता, लोगों को बताता कि वो अब पुलिस कांस्टेबल है, और उसकी पोस्टिंग विकास भवन में हुई है।
सोशल मीडिया पर उसकी तस्वीरें देख कर लोग हैरान रह जाते। कहीं वो सड़क किनारे खड़ा होता, तो कहीं गाड़ी के पास, और कहीं-कहीं तो असली पुलिसकर्मियों के साथ भी खड़ा नजर आता।
लोगों को यकीन हो गया कि अंकित अब ‘सरकारी आदमी’ बन गया है, लेकिन असली कहानी तो कुछ और ही थी…
गाइघाटा पुलिस को मिली एक गुप्त जानकारी ने इस नकली नाटक का पर्दाफाश कर दिया। जब पुलिस ने उस पर नजर रखनी शुरू की, तब खुलने लगे राज़ के दरवाज़े।
एक दिन मौके पर रोका गया अंकित, और जब उससे पूछताछ हुई—तो उसकी जुबान लड़खड़ाने लगी।
कागज़ दिखाने को कहा गया, तो कुछ भी नहीं था। न कोई नियुक्तिपत्र, न कोई आईडी कार्ड।
पुलिस को शक हुआ, और उसके घर पर छापा मारा गया।
जो मिला, उसने सबके होश उड़ा दिए—पुलिस की वर्दियां, नकली नेमप्लेट, फर्जी दस्तावेज, और वो सबकुछ जो एक असली पुलिसवाले के पास होना चाहिए—बस ‘सच’ छोड़कर।
सबसे बड़ी हैरानी की बात? उसका परिवार भी इस झूठ से अंजान था। मां-बाप और बहन को पूरा भरोसा था कि, बेटा अब नौकरी में है, हर दिन वो नाश्ता करके, वर्दी पहनकर ‘ड्यूटी’ पर निकलता था। किसी को भनक तक नहीं लगी, कि, असल में वो समाज को ठग रहा है। अब पुलिस ये जांच कर रही है कि क्या अंकित सिर्फ शोहरत का भूखा था, या इसके पीछे किसी बड़ी साजिश की पटकथा छुपी है? गाइघाटा थाने में उस पर कई धाराओं में मामला दर्ज हो चुका है। इस घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है— क्या हम सोशल मीडिया के दिखावे में सच और झूठ का फर्क भूलते जा रहे हैं?वर्दी पहन लेना आसान है, लेकिन उस वर्दी की मर्यादा को निभाना सबके बस की बात नहीं। और जो मर्यादा का मज़ाक उड़ाते हैं… कानून उन्हें उनकी असली जगह ज़रूर दिखाता है—सलाखों के पीछे!
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