September 16, 2024
Sevoke Road, Siliguri
उत्तर बंगाल दार्जिलिंग लाइफस्टाइल सिलीगुड़ी

15 अगस्त से पहले पहाड़ में गोरखा क्यों लगा रहे काले झंडे?

इस समय अगर आप दार्जिलिंग अथवा पहाड़ के किसी भी हिस्से में जाते हैं तो आप जगह-जगह लगे काले झंडों को जरूर देख सकते हैं. इन काले झंडों को देखकर मन में कौतूहल जरूर उठ रहा होगा. क्योंकि 15 अगस्त करीब है. ऐसे में तिरंगे झंडे लगे होने चाहिए. जबकि यहां काले झंडे लगे नजर आ रहे हैं. इन काले झंडो का राज जानना जरूरी है. दरअसल इन काले झंडो को गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा ने केंद्र सरकार के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए ही लगाया है. गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा केंद्र में भाजपा की सहयोगी पार्टी है.

गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा को लगता है कि हर बार केंद्र गोरखाओं को ठगता रहा है. भाजपा ने अभी तक अपना कोई वादा पूरा नहीं किया. इसलिए गोरामुमो के नेता खफा हैं. गाहे बगाहे अपने बयानों से अपनी भड़ास भी निकाल रहे हैं. गोरामुमो के ही नेता हैं भाजपा की ओर से अधिकृत विधायक नीरज जिंबा, जो लोकसभा चुनाव के दौरान राजू बिष्ट के साथ कदमताल कर रहे थे और खुद को भाजपा सांसद राजू बिष्ट के साथ दोस्ती का दम भरते थे. उनका राज्य विधानसभा में दिया गया बयान काफी कुछ कहता है. उन्होंने अपने बयानों के जरिए केंद्र सरकार, भाजपा और राज्य सरकार पर परोक्ष रूप से हमला बोला है.

दरअसल यह सभी स्थितियां बंगाल विभाजन विरोधी प्रस्ताव के राज्य विधानसभा में पारित होने के बाद उत्पन्न हुई है. खासकर भाजपा द्वारा इस पर मुहर लगाने के बाद पहाड़ के विभिन्न संगठनों के नेताओं को खुलकर कहने का मौका मिल गया है. 5 अगस्त 2024 को राज्य विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस के द्वारा बंगाल विभाजन विरोधी प्रस्ताव लाया गया था. इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया था. भाजपा के इस कदम से पहाड़ के कुछ नेता खुश नहीं थे.

कर्सियांग के भाजपा विधायक बीपी बजगई ने इसे गोरखाओं के लिए अन्याय बताया और कहा कि एक तरफ भाजपा पहाड़ में गोरखाओं को सपने दिखाती है तो दूसरी तरफ राज्य विधानसभा में बंगाल विभाजन विरोधी प्रस्ताव का समर्थन करके गोरखाओं से छल कर रही है.हालांकि बीपी बजगई को राज्य विधानसभा में बोलने का मौका नहीं दिया गया था. लेकिन भाजपा विधायक नीरज जिंबा ने खुलकर कहा. नीरज जिंबा दार्जिलिंग से भाजपा के विधायक हैं और स्वयं गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के नेता भी हैं.

अपने एक हाथ में संविधान और दूसरे हाथ में तिरंगा रखकर नीरज जिंबा ने कहा था कि मैं डेढ़ करोड़ भारतीय गोरखाओं के एक प्रतिनिधि के रूप में अपनी बात रख रहा हूं. मैं किसी पार्टी के सदस्य की हैसियत से या किसी अन्य विचारधारा के अंतर्गत यह बात नहीं कर रहा हूं. उन्होंने कहा कि भारतीय गोरखाओं को राजनीतिक और संवैधानिक न्याय से वंचित रखा गया है. जब दार्जिलिंग और आसपास के इलाके 1947 में पश्चिम बंगाल में विलय किए गए, तब दार्जिलिंग के गोरखाओं के न्याय और विविधता का ध्यान रखने की बात कही गई थी.

उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से ही दार्जिलिंग के गोरखाओं को भुला दिया गया. ना तो राज्य सरकार ने और ना ही केंद्र सरकार ने उनके हक और न्याय की बात की है. केंद्र सरकार ने उनके लिए कुछ नहीं किया जिसके प्रति गोरखा हमेशा वफादार रहे हैं. अब तो विरोध प्रदर्शन के लिए हमारे हाथ में केवल गणतांत्रिक अधिकार ही रह गया है, जिनका हम प्रयोग कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि हम विभाजन नहीं चाहते हैं लेकिन भारतीय गोरखाओं ने जो त्याग किया है, जिसके लिए लड़ाइयां लड़ी है, संघर्ष किया है, उन्हें अब न्याय दिलाने का समय आ गया है. उन्होंने कहा कि जो ऐतिहासिक भूल हुई है, उसमें सुधार की जरूरत है. नीरज जिंबा ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के इस कोट को पटल पर रखा, जब उन्होंने कहा था कि जहां विलय वांछनीय हो, वहां तलाक हो जाना चाहिए.

पहाड़ का कोई भी नेता राजू बिष्ट और केंद्र सरकार के खिलाफ हालांकि खुलकर कुछ नहीं कह रहा है. परंतु जिस तरह से पहाड़ में सभी जगह काले झंडे लगाने की जो हवा बह रही है, वह काफी कुछ कहती है. गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के नेता मन घीसिंग ने पहाड़ में अपने सभी कार्यकर्ताओं को काले झंडे उठाने का निर्देश दे दिया है. बुधवार को मन घीसिंग ने म॔गपू में पार्टी नेता और कार्यकर्ताओं के साथ एक बैठक की. उन्होंने दार्जिलिंग, कर्सियांग, मिरिक और कालिमपोंग में अपने नेताओं से केंद्र के खिलाफ शांतिपूर्ण और गण तांत्रिक तरीके से विरोध प्रदर्शन की बात कही है.

पर्दे के पीछे से ही सही, परंतु धीरे-धीरे केंद्र सरकार के खिलाफ उनकी ही सहयोगी पार्टियों के तेवर बदलते जा रहे हैं. राजू बिष्ट की तारीफ करने वाले जीएनएलएफ दार्जिलिंग ब्रांच कमेटी के प्रेसिडेंट एमजी सुब्बा ने अब उन्हें गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला इंसान कह दिया है तो इसी से समझा जा सकता है कि पहाड़ की राजनीति किस करवट ले रही है. भाजपा के लिए तो यही कहा जा सकता है कि हमें तो अपनों ने ही मारा, गैरों में कहां दम था…हमारी किश्ती वहीं डूबी, जहां पानी भी कम था…

(अस्वीकरण : सभी फ़ोटो सिर्फ खबर में दिए जा रहे तथ्यों को सांकेतिक रूप से दर्शाने के लिए दिए गए है । इन फोटोज का इस खबर से कोई संबंध नहीं है। सभी फोटोज इंटरनेट से लिये गए है।)

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