April 27, 2024
Sevoke Road, Siliguri
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पहाड़ में क्यों गायब होता जा रहा गोरखालैंड का मुद्दा?

2024 के लोकसभा चुनाव में दार्जिलिंग संसदीय सीट के लिए पहाड़ में गोरखालैंड का मुद्दा न होकर विकास का मुद्दा उठाया जा रहा है. ऐसा पहली बार हो रहा है, जब पहाड़ में गोरखालैंड कम और विकास का मुद्दा प्रबल है. अगर इस सीट का इतिहास देखा जाए तो दार्जिलिंग संसदीय सीट के लिए गोरखालैंड ही प्रबल रहा है. पहाड़ में लगभग हर पार्टी खुद को गोरखालैंड के लिए समर्पित बताती है. भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा भले ही गोरखालैंड की बात करता हो, परंतु इस चुनाव में गोरखालैंड कम और विकास के मुद्दे की बात ज्यादा कर रहा है. अनित थापा कहते हैं कि पहले पहाड़ का विकास होना चाहिए. फिर गोरखालैंड. चुनाव प्रचार के क्रम में तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार गोपाल लामा भी यह बात कबूल करते हैं.

1980 के दशक में सर्वप्रथम गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के नेता सुभाष घीसिंग ने गोरखालैंड नामक एक अलग राज्य की मांग उठाई थी. जब गोरखालैंड का मुद्दा उठा था तो, सुभाष घीसिंग का मानना था कि गोरखाओं की सांस्कृतिक और जातीय पहचान बंगाल से अलग है. इसलिए गोरखालैंड को अलग राज्य की मान्यता दी जानी चाहिए. गोरखालैंड के अंतर्गत जिन क्षेत्रों को शामिल करने की बात कही गई थी, उनमें पहाड़, डुआर्स और सिलीगुड़ी के तराई क्षेत्र शामिल हैं.

सुभाष घीसिंग ने जिस आंदोलन को शुरू किया था, उनके विश्वासपात्र सहयोगी विमल गुरुंग ने उसे आगे बढ़ाया. 2007 में गोरखा जन मुक्ति मोर्चा का गठन गोरखालैंड के लिए हुआ था. विमल गुरुंग और सुभाष घीसिंग ये दो ऐसे चेहरे हैं, जिन्होंने गोरखालैंड के लिए सब कुछ किया. परंतु बाद में विमल गुरुंग और सुभाष घीसिंग के बीच दूरियां बढ़ने लगी. विमल गुरुंग गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट से अलग हो गये. बाद के हालात कुछ ऐसे मोड़ पर ले आए कि विमल गुरुंग ने पहाड़ के गोरखा लोगों की भावनाओं का फायदा उठाया और सुभाष घीसिंग को सत्ता से उखाड़ फेंकने में सफल रहे. इसके बाद ही गोरखा जनमुक्ति मोर्चा विमल गुरुंग के साथ अस्तित्व में आया.

पहाड़ में इस समय शांति है और विकास की बात हर गोरखा चाहता है. राज्य सरकार की ओर से जीटीए को पहाड़ के विकास के लिए फंड उपलब्ध कराए जाते हैं. हाल में ही पहाड़ में पंचायत चुनाव हुए थे, जिसमें पहाड़ के लोगों ने भारी मतदान किया था. यह मतदान पहाड़ के विकास के नाम पर ही हुआ. पंचायत चुनाव में भी गोरखालैंड कोई मुद्दा नहीं था. पंचायत चुनाव में अनित थापा को भारी सफलता मिली थी. आज भले ही गोरखालैंड गौण रहा हो, लेकिन यह एक ऐसा मुद्दा रहा, जिसने कई पार्टियों को जन्म दिया और पहाड़ी जनमानस को इस मुद्दे पर उनका वोट हासिल किया. पहाड़ के कई बुद्धिजीवी बताते हैं कि 2011 में गोरखा जन मुक्ति मोर्चा के तीन कार्यकर्ता पुलिस की गोली में मारे गए. इसके विरोध में दार्जिलिंग पहाड़ में आंदोलन हुआ था . देखा जाए तो दार्जिलिंग में जब-जब गोरखालैंड का मुद्दा प्रबल रहा है, जान माल का काफी नुकसान हुआ है.

दार्जिलिंग के बुद्धिजीवी राजेन छेत्री बताते हैं कि कुछ समय तक विमल गुरुंग की पार्टी गोरखा जन मुक्ति मोर्चा गोरखा लैंड के लिए पूरी तरह समर्पित रहा. विमल गुरुंग की कोई भी कार्य नीति और भाषण गोरखालैंड के बगैर अधूरा समझा जाता था. 2016-17 में गोरखालैंड की मांग में पहाड़ में व्यापक आंदोलन हुआ था. बाद में विमल गुरुंग अंडरग्राउंड हो गए. समय के साथ गोरखालैंड कमजोर पडता रहा. हाल के बरसों में पहाड़ में कई क्षेत्रीय दल बन गए हैं. इनमें हाम्रो पार्टी भी एक ऐसा दल है, जो यह दावा करता है कि गोरखालैंड ही उनका मकसद है.

दार्जिलिंग के बुद्धिजीवियों के अनुसार गोरखालैंड एक ऐसा मुद्दा है, जो हर गोरखा का एक सपना है. यह मुद्दा गोरखा भावना को उद्वेलित करता है. यही कारण है कि पहाड़ की क्षेत्रीय पार्टियां गोरखालैंड के बगैर अपनी राजनीति नहीं कर सकती हैं. कई छोटे क्षेत्रीय दलों का गोरखालैंड एक वोट बैंक रहा है. भारतीय जनता पार्टी ने दार्जिलिंग संसदीय सीट पर एक लंबे समय तक अपनी पकड़ बनाई है तो इसके पीछे गोरखालैंड ही है. पहाड़ के गोरखा लोगों ने भाजपा को हमेशा इसलिए वोट दिया है कि उन्हें यह समझाया गया था कि एकमात्र भाजपा ही उनके सपने को साकार कर सकती है.

अब एक बार फिर से लोकसभा का चुनाव है. इस चुनाव में जीटीए के प्रमुख और भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा के अध्यक्ष अनित थापा ने तृणमूल के साथ साझेदारी में गोपाल लामा को मैदान में उतारा है.

तृणमूल कांग्रेस बंगाल विभाजन के विरोध में रही है. यही कारण है कि अनित थापा इस चुनाव में गोरखालैंड का मुद्दा नहीं उठा रहे हैं और विकास के मुद्दे पर उनके उम्मीदवार चुनाव मैदान में है. तृणमूल कांग्रेस से सीधा मुकाबला करने वाली पार्टी बीजेपी ने अभी तक अपना उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा है. लेकिन जाहिर है कि जो भी कैंडिडेट मैदान में आएगा, कम से कम गोरखालैंड की बात वह भी नहीं कर पाएगा. वर्तमान में पहाड़ के क्षेत्रीय दलों की सच्चाई यह है कि उनकी ओर से गोरखालैंड को आगे नहीं बढ़ाया जा रहा है. आखिर कारण क्या है?

बुद्धिजीवियों ने कहा कि विमल गुरुंग भी अब उत्तर बंगाल में अलग राज्य की मांग कर रहे हैं. छोटे-छोटे क्षेत्रीय दलों को अब पता चल गया है कि गोरखालैंड एक पेचीदा मुद्दा है, जिसे साकार करना भौगोलिक, व्यवहारिक और तकनीकी कारणों से फिलहाल संभव नहीं लगता है. यही कारण है कि पहाड़ में शांति है और पहाड़ के विकास और उत्थान की बात ही की जा रही है. गोरखालैंड पर कम फोकस किया जा रहा है.क्षेत्रीय दल भी दाएं बाएं अन्य मुद्दों को तलाश रहे हैं.

(अस्वीकरण : सभी फ़ोटो सिर्फ खबर में दिए जा रहे तथ्यों को सांकेतिक रूप से दर्शाने के लिए दिए गए है । इन फोटोज का इस खबर से कोई संबंध नहीं है। सभी फोटोज इंटरनेट से लिये गए है।)

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