नेपाल में एक बार फिर से राजनीतिक अस्थिरता देखी जा रही है. नेपाल की ओली सरकार कभी भी गिर सकती है. क्योंकि सरकार के पास बहुमत नहीं रहा. इसी राजनीतिक अस्थिरता के बीच राजनीतिक गहमागहमी तेज हो गई है. नेपाल में जनता भी राजनीतिक अस्थिरता से परेशान हो गई है. इसका नेपाल के विकास और रोजगार पर भारी असर पड़ रहा है.
किसी समय भारत में गठबंधन सरकारों का युग था. तब कई छोटे बड़े दलों की मिली जुली सरकार होती थी. लेकिन स्वार्थ पूर्ति नहीं होने के चलते सरकार लंबे समय तक नहीं चल सकती थी. पिछले 11 वर्षों से केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की मजबूत सरकार है. यह सरकार इतनी मजबूत है कि किसी भी छोटे दल के समर्थन वापस लेने से सरकार पर कोई असर नहीं होगा.
अगर नेपाल की राजनीति का अध्ययन किया जाए तो कमोवेश भारत जैसी स्थिति ही नजर आती है. जब भारत में छोटे-छोटे दलों का प्रभुत्व देखा जाता था. नेपाल में राजशाही खत्म होने के बाद लोकतंत्र की स्थापना हुई थी. लेकिन नेपाल का राजनीतिक इतिहास ऐसा रहा है कि यहां बनी अधिकांश सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई. यहां कब कौन सा दल समर्थन वापसी की घोषणा कर दे, यह कहा नहीं जा सकता है. एक बार फिर से नेपाल में चल रही केपी शर्मा ओली की गठबंधन सरकार अल्पमत में आ गई है. क्योंकि इस सरकार को समर्थन देने वाली मधेशी पार्टी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है.
नेपाल के राजनीतिक इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि नेपाल में राजनीतिक संकट हमेशा हावी रहा है. यहां अस्थिर सरकार, सत्ता संघर्ष और संवैधानिक संकट ज्यादा है. हाल के वर्षों में नेपाल ने कई राजनीतिक दलों के बीच सत्ता के लिए संघर्ष देखा है, जिसके परिणाम स्वरूप यहां की सरकार गिरती और बनती रही है. 2015 के संविधान को लेकर भी यहां विवाद रहता है. इसमें संघीयता , नागरिकता और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व जैसे मुद्दे शामिल हैं.
हालांकि जानकार मानते हैं कि नेपाल की राजनीति में बाहरी ताकतों का हस्तक्षेप भी राजनीतिक संकट का एक बड़ा कारण है. यह राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा देता है. और भी बहुत से कारण है जिससे नेपाल में कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती है.
वर्तमान में नेपाल के उच्च सदन में दलों और उनके प्रतिनिधियों की संख्या इस प्रकार से है. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के 18 सदस्य हैं और यह पार्टी सबसे बड़ी पार्टी है. दूसरे नंबर पर नेपाली कांग्रेस है, जिनके 16 सदस्य हैं. इसी तरह से ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के 11 सदस्य हैं. जबकि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के पास कुल 8 सदस्य हैं, वहीं जेएसपी नेपाल तीन, राष्ट्रीय जन मोर्चा और लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी एक-एक सीट,जबकि एक निर्दलीय भी है. इस प्रकार से सत्तारूढ गठबंधन में कुल 59 सदस्य हैं. लेकिन समर्थन वापसी के बाद अब केवल 27 सदस्य ही रह गए हैं.
नेपाल की राजनीति में फिर से भूचाल आने की संभावना व्यक्त की जा रही है.यह सुर्खियों में है कि नेपाल की ओली सरकार अल्पमत में आ गई है और वह कभी भी गिर सकती है. परंतु ओली की पार्टी के प्रवक्ता के अनुसार सरकार पर कोई संकट नहीं है. उनके अनुसार मधेशी पार्टी जेपीसी भला उनकी पार्टी से समर्थन वापस क्यों लेगी? पूर्व पर्यावरण मंत्री और सीपीएन माओवादी सेंटर के केंद्रीय सदस्य सुनील मन॔धर ने कहा है कि जेपीसी नेपाल के फैसले से गठबंधन सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा और ना ही ओली की सरकार गिरेगी. उन्होंने दावा किया है कि गठबंधन के पास प्रतिनिधि सभा में पर्याप्त संख्या बल है. इसलिए फिलहाल सरकार पर कोई खतरा नहीं है.
हालांकि दूसरी ओर सच्चाई कुछ और है. मधेश पार्टी जेपीसी नेपाल के उपाध्यक्ष शिवलाल थापा बताते हैं कि प्रधानमंत्री ओली ने सत्ता संभालने के बाद भ्रष्टाचार खत्म करने सुशासन राज ,आर्थिक प्रगति और संविधान में संशोधन करने का वादा किया था. इसलिए हमने उनकी सरकार को समर्थन दिया.लेकिन सरकार बनने के बाद उन्होंने इस दिशा में कोई भी कार्य नहीं किया है.इसलिए मजबूरन ओली के नेतृत्व वाली सरकार से समर्थन वापस लेना पड़ा है.
अब प्रधानमंत्री ओली और उनकी पार्टी को यह देखना होगा कि नाराज दल को कैसे मनाया जाए, ताकि उनकी सरकार फिर से बहुमत हासिल कर सके. क्योंकि अल्पमत में आने के बाद ओली सरकार को सरकार चलाने के लिए दोबारा अपना बहुमत सिद्ध करना ही होगा.
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