आपने ऐसे लोगों को जरूर देखा होगा, जो मृत्यु शैया पर पड़े रहते हैं.लेकिन उन्हें मौत नहीं आती. ऐसे गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति अथवा उनके परिवार के लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें जल्द भगवान बुला ले.परंतु प्रार्थना के बावजूद भी उन्हें मौत नहीं आती. जबकि रोगी अपने जीवन के अंतिम समय में काफी कष्ट भोग रहा होता है.
कभी-कभी तो रोगी का कष्ट देखकर देखकर परिजनों का कलेजा मुंह को आने लगता है.हालांकि हमारे कानून में लिविंग विल यानी इच्छा मृत्यु का कानून तो है, पर उसके दिशा निर्देश बोझिल हैं. इच्छा मृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट के 2018 के आदेश में सम्मान से मरने के अधिकार को मौलिक अधिकार और अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार के 1 पहलू के रूप में मान्यता दी गई थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश अत्यंत बोझिल थे. जिसमें जिसमें लिविंग बिल पंजीकृत कराने के इच्छुक लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था.
अब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे रोगियों की पीड़ा को समझा है तथा लिविंग बिल की प्रक्रिया को आसान कर दिया है.इसके अनुसार एक गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति का लाइफ सपोर्ट हटाने अथवा बनाए रखने के लिए किसी मजिस्ट्रेट की मंजूरी अनिवार्य नहीं है. लिविंग विल किसी गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति के अंतिम समय तक किए जाने वाले उपचार पर अग्रिम चिकित्सा दिशानिर्देश होता है.
संविधान पीठ ने कहा है कि अब दस्तावेज पर लिविंग बिल को लागू करने वाले व्यक्ति को दो चश्मदीद की मौजूदगी में दस्तक करने होंगे. तथा इसे किसी नोटरी की उपस्थिति में सत्यापित करना होगा. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इच्छा मृत्यु के कानून की जटिलता समाप्त हो गई है. समझा जाता है कि मृत्यु शैया पर कष्ट भोग रहे रोगियों तथा उनके परिजनों को इच्छा मृत्यु का रास्ता चुनने में आसानी होगी!