उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल उत्तर बंगाल का सबसे बड़ा अस्पताल है. यहां इलाज के लिए दूर-दूर से रोगी आते हैं. ओपीडी में सुबह से लेकर दोपहर तक लाइन लगी रहती है. पर्ची बनवाने के बाद जब मरीज अपने पसंदीदा डॉक्टर से इलाज का सपना लेकर लाइन में धक्के खाते हुए जब डॉक्टर के चेंबर में पहुंचता है तो पता चलता है कि डॉक्टर साहब तो छुट्टी पर हैं. पर मेडिकल स्टूडेंट जरूर रोगी के उपचार के लिए होते हैं. जो सिर्फ सीख रहे होते हैं. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि वह मरीज का डायग्नोसिस क्या कर सकते हैं!
नौका घाट की फुलवा देवी तथा एनजेपी के पास साउथ कॉलोनी के रहने वाले महेश्वर सिंह उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल में अपना ट्रीटमेंट करवा रहे हैं. पिछले 4 महीनो में केवल दो बार ही मुख्य डॉक्टर से उनका उपचार हो सका है. बाकी समय मेडिकल स्टूडेंट ही दवा दारू लिखते हैं. जब वे डॉक्टर बाबू के बारे में पूछते हैं तो उत्तर मिलता है, डॉक्टर बाबू छुट्टी पर है! कई बार मेडिकल स्टूडेंट भी रोगियों को यही सलाह देते हैं कि जब डॉक्टर साहब आएंगे तो आप उन्हें दिखा लीजिएगा. फिलहाल मैं दवाई लिख देता हूं. आराम मिलेगा…
उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल का मौजूदा यही परिदृश्य है. सूत्रों ने बताया कि उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल में अधिकतर विशेषज्ञ डॉक्टर कोलकाता से यहां आए हैं. शुक्रवार को वे कोलकाता रवाना हो जाते हैं. शनिवार और रविवार को छुट्टी रहती है. सोमवार को कोलकाता से चलते हैं और शाम तक या फिर मंगलवार की सुबह तक अस्पताल पहुंचते हैं. यानी विशेषज्ञ डॉक्टर सिर्फ तीन या चार दिनों के लिए ही अस्पताल में उपलब्ध रहते हैं. कभी-कभी तो स्पेशलिस्ट डॉक्टर महीनो गायब रहते हैं. आश्चर्य की बात तो यह है कि वह छुट्टी भी नहीं लेते. इसके बारे में अस्पताल प्रशासन को कोई जानकारी नहीं होती और ना ही विभाग के अधिकारी कुछ बता पाने की स्थिति में होते हैं.
कई बार मरीज अथवा उनके रिश्तेदारों के द्वारा हंगामा करने के बाद रोगी कल्याण समिति की बैठक होती है. इस बैठक में बड़े-बड़े अधिकारी शामिल होते हैं. विभागाध्यक्ष होते हैं. लगातार अनुपस्थित डॉक्टर्स के खिलाफ कार्रवाई की बात की जाती है. उन्हें कारण बताओ नोटिस भी भेजा जाता है. लेकिन इसके बाद सब कुछ ठंडा पड़ जाता है. उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक डॉक्टर संजय मलिक कहते हैं कि लगातार अस्पताल में अनुपस्थित रहने वाले डॉक्टर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा की जाती है लेकिन आगे की कार्रवाई तो स्वास्थ्य विभाग को ही करना होता है सवाल यह है कि आखिर उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग डॉक्टरो के खिलाफ कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं कर पाता?
इसके कई कारण है. सबसे प्रमुख कारण तो यह है कि केवल उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ही नहीं बल्कि पूरे बंगाल और देशभर में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है. बड़े-बड़े डॉक्टर और विशेषज्ञ या तो निजी अस्पतालों में कार्यरत हैं या फिर विदेशो में अपना करियर सवार रहे हैं. सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टर्स को अच्छा पैकेज नहीं मिलता. इसके अलावा उन्हें निजी अस्पतालों की तरह ना तो अच्छा वेतन मिलता है और ना ही सुविधाएं. इस बात को स्वास्थ्य विभाग तथा प्रशासनिक विभाग भी समझता है.
अगर उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल की बात करें तो यहां काफी समय से डॉक्टरों की भारी कमी है. और तो और, तीन-चार विभागों में तो विभाग अध्यक्ष भी नहीं है. विभाग अध्यक्ष नहीं रहने से मेडिकल के छात्रों की पढ़ाई भी बाधित हो रही है. साथ ही चिकित्सा सेवा पर भी इसका भारी असर पड़ता है. सूत्रों ने बताया कि विभाग अध्यक्ष नहीं होने से कई विभागों का काम कार्यकारी विभाग अध्यक्ष करते हैं. नियम के अनुसार एक प्रोफेसर को एक विभाग को संभालना चाहिए. फॉरेंसिक मेडिसिन तथा त्वचा रोग विभाग में काफी दिनों से विभाग अध्यक्ष का पद खाली है. वर्तमान में एसोसिएट प्रोफेसर अथवा सहायक प्रोफेसर काम संभाल रहे हैं.
फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ प्रवीर कुमार देव का 2021 में यहां से ट्रांसफर हो गया था. उन्हें जलपाईगुड़ी गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज का प्राचार्य बनाया गया. उनके जाने के बाद यहां उनकी जगह नया विभाग अध्यक्ष आना चाहिए था. जो अब तक खाली ही है. वर्तमान में एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर जगदीश विश्वास विभाग को अस्थाई रूप से देख रहे हैं. कुछ समय पहले मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कोलकाता से कुछ डॉक्टरो के यहां आने की बात थी. लेकिन अभी तक यह अस्पताल उनकी बाट जोह ही रहा है.
हालांकि उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक डॉ संजय मलिक का कहना है कि जो डॉक्टर लगातार अनुपस्थित रहते हैं,उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए स्वास्थ्य विभाग को सूचना दी जाती है. स्वास्थ्य विभाग अपने हिसाब से यह कार्रवाई करता है.
ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. लेकिन प्रशासन भी कहीं ना कहीं खुद को मजबूर मान रहा है.