सिलीगुड़ी शहर में क्या नहीं है! दोस्ती, भाईचारा, सांप्रदायिक सद्भाव, प्रेम, हंसी-खुशी… इस शहर में सभी तरह के लोग मिल जाएंगे. छोटे से छोटे और बड़े से बड़े काम करने वाले लोग. ऐसे लोगों की भी तादाद कम नहीं है, जो आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया की नीति पर चलते हुए हमेशा परेशान रहते हैं. फिर भी उनके चेहरे पर कोई तनाव या परेशानी नजर नहीं आती. यू तो सिलीगुड़ी शहर में अधिकतर स्थानीय निवासी है,जिनके अपने निजी मकान है. लेकिन इस शहर में ऐसे लोगों की भी आबादी कम नहीं है जो शहर अथवा शहर के बाहर विभिन्न हिस्सों में मह॔गे किराए के मकान में रहते हैं और अपना पेट पाल रहे हैं. फिर भी वे खुश हैं.
सिलीगुड़ी शहर में शांति है. यहां लोग मिल जुल कर रहते हैं. नौजवानों की दोस्ती और आपसी मेलजोल की शुरुआत शराब के प्यालो से शुरू होती है और धीरे-धीरे रंग जमाने लगती है. यहां दोस्ती भी होती है और दुश्मनी भी. यह सिलीगुड़ी शहर है, जहां की पुलिस देश के दूसरे शहरों के मुकाबले काफी रहम दिल होती है. यहां के लोग देश के दूसरे शहरों के मुकाबले कानून का अधिक पालन करने वाले होते हैं. अगर यह कहा जाए तो कोई गलत नहीं होगा कि सिलीगुड़ी और बंगाल के लोग देश के दूसरे शहरों और प्रांतों से कहीं ज्यादा सभ्य हैं!
सिलीगुड़ी शहर में हाल के दिनों में आर्थिक तंगी बढी है. कोरोना काल के बाद यहां रोजी रोजगार और नौकरी के क्षेत्र में अवसर घटे हैं. इसके बावजूद लोग यहां से पलायन करना नहीं चाहते. क्योंकि इस शहर से उन्हें खासा लगाव हो गया है. लाख परेशानियों के बावजूद वे इसी शहर का अंग होकर रहना चाहते हैं. हाल के दिनों में मकान किराया बढ जाने से अनेक लोग पाई पाई जोड़ कर अपना बसेरा खड़ा करना चाहते हैं. धीरे-धीरे उन्हें अपने मकसद में सफलता मिल जाती है.
सिलीगुड़ी शहर में कोई बड़ी इंडस्ट्री नहीं है. यहां अधिकतर दुकाने हैं. छोटे-छोटे ऑफिस हैं. जहां श्रमिक और कर्मचारी न्यूनतम वेतन पर काम करके अपना गुजारा करते हैं. एक श्रमिक अथवा कर्मचारी की तनख्वाह उसकी ड्यूटी अवधि के मुकाबले इतना कम है कि वह अपने लिए कोई बड़ा सपना नहीं देख सकता. उसे सपना देखने का हक भी नहीं है. क्योंकि यहां कोई बड़ा स्कोप नहीं है. जबकि दूसरी ओर इस शहर में पश्चिम बंगाल के दूसरे शहरों के मुकाबले महंगाई सबसे ज्यादा है. यहां तक कि महंगाई के मामले में सिलीगुड़ी शहर कोलकाता और दिल्ली को भी पीछे छोड़ रहा है. फिर भी सिलीगुड़ी शहर का आभामंडल ऐसा है कि महंगाई के बावजूद यहां से लोग पलायन करना नहीं चाहते.
सिलीगुड़ी शहर चाय बागान, पर्यटन और लकड़ी के लिए प्रसिद्ध है. चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों की दिहाड़ी मजदूरी इतनी कम है कि उससे उनके अपने परिवार का खर्चा भी नहीं चलता. फिर भी उन्हें किसी से कोई शिकवा- गिला नहीं है. सिलीगुड़ी शहर में अतिक्रमण बहुत है. यह बरसों की समस्या है.प्रशासन इतना लचीला है कि अतिक्रमण के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठा रहा है. हालांकि वर्तमान में सिलीगुड़ी नगर निगम ने अतिक्रमण के खिलाफ अभियान छेड़ रखा है. फिर भी लोगों को कोई गिला शिकवा नहीं है.
इतनी लाख परेशानियों के बावजूद सिलीगुड़ी शहर का आभामंडल ऐसा है कि दूरदराज के क्षेत्रों से आए लोग यहीं के होकर रह गए और यहां के वातावरण में ढल गए. सीमित महत्वकांक्षा, सीमित आमदनी और कठोर परिश्रम यहां के लोगों की कुल पूंजी है. दिल्ली और मुंबई जैसे ना तो यहां स्कोप है और ना ही लोगों के इतने बड़े सपने हैं. शायद यही कारण है कि सीमित संसाधनों में ही लोग यहां असली खुशी महसूस करते हैं. तभी तो जन-जन की जुबान पर एक ही वाक्य रहता है कि मेरा सिलीगुड़ी शहर महान है!