सिलीगुड़ी के कई अभिभावकों ने प्रश्न किए हैं. जब वे किसी अच्छे स्कूल में अपने बच्चों का दाखिला कराते हैं तो स्कूल की महंगी फीस देनी पड़ती है. मोटी रकम देकर ही बच्चों को दाखिला मिल पाता है. अभिभावकों को लगता है कि जब वे अपने बच्चों की पढ़ाई पर स्कूल के हिसाब से पूरा पैसा चुका देते हैं, तो ऐसे में बच्चों को अलग से ट्यूशन पढ़ाने की जरूरत ही क्या है? उन्होंने सवाल किया है कि जब स्कूल दाखिले और फीस के मामले में कोई समझौता नहीं करता, तो ऐसे में स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई की ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि उन्हें अलग से ट्यूशन देने की जरूरत नहीं पड़े.
अभिभावकों ने पूछा है कि जब वे अच्छे स्कूल में बच्चों का दाखिला करा रहे हैं तो वहां पढ़ाई की भी अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि बच्चों के लिए अलग से ट्यूशन देने की जरूरत ना पड़े. यह स्कूल का ही दायित्व होना चाहिए. स्कूल वालों को सोचना चाहिए कि अनेक गरीब अभिभावक किसी तरह से पैसे का जुगाड़ करके अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते हैं. स्कूल प्रबंधन को यह भरोसा देना चाहिए कि उनके बच्चे को अलग से ट्यूशन लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी और स्कूल में शिक्षकों के द्वारा की जाने वाली पढ़ाई ही बच्चों के लिए पर्याप्त होगी. पर क्या ऐसा होता भी है? और जो होता है, ठीक इसके उल्टा. बच्चों को प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए उन्हें अलग से ट्यूशन लेने की जरूरत होती है.
सिलीगुड़ी में बच्चों का दाखिला हो रहा है. नई कक्षा में अभिभावकों को स्कूल प्रबंधन की ओर से एक भारी भरकम रसीद थमाई जा रही है. अगर आप अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं तो मासिक फीस और ट्रांसपोर्ट फीस के अलावा आपको एक साथ पूरे साल की विविध मदों की फीस जमा करनी होगी. इन शुल्कों में विकास शुल्क, भवन शुल्क, स्पोर्ट्स शुल्क, स्वास्थ्य और ऐसे ऐसे मदों के शुल्क, जिनका बच्चे शायद ही उपयोग करते हैं और अभिभावकों को भी इसकी जरूरत नहीं होती. लेकिन स्कूल अभिभावकों से यह सभी फीस भी वसूल करते हैं. अगर आप सवाल खड़ा करेंगे तो आपके बच्चों का दाखिला नहीं होगा.
सिलीगुड़ी के अलग-अलग निजी स्कूलों की दाखिले की फीस भी अलग-अलग है. अगर आप महंगे स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं तो महंगी फीस देने के लिए तैयार रहिए. फीस तो फीस होती है, ऊपर से महंगी पुस्तक, कॉपियां, ड्रेस जूते तथा अन्य उपकरण भी आपको उनसे ही लेना होगा. स्कूल की ओर से बच्चों को पुस्तक और कॉपियां दी जाती है. स्कूल प्रबंधन उन पुस्तकों को सीधे प्रकाशको से लगभग आधी कीमत पर प्राप्त करते हैं. परंतु यह अभिभावकों को पूरी कीमत पर ही देते हैं. इसी तरह से कॉपियां भी स्कूल को सस्ती दरों पर मिल जाती है. लेकिन यह बच्चों को महंगी दर पर ही देते हैं. अगर यह कहा जाए तो कोई गलत नहीं होगा कि स्कूलवाले एक ही झटके में अमीर बन जाते हैं. मार्च अप्रैल का महीना हर निजी स्कूल के लिए सोने की अशर्फी पाने जैसा होता है.
निजी स्कूलों की मनमानी से केवल सिलीगुड़ी के अभिभावक ही दुखी नहीं है, बल्कि पूरे देश में अभिभावकों का ऐसा ही हाल है, जो बड़ी मुश्किल से अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं. जब इतना कुछ करने के बावजूद बच्चों को अलग से ट्यूशन पढ़ाने की जरूरत पड़े तो एक गरीब माता-पिता पर नागवार गुजरता है और धीरे-धीरे उनका धैर्य जवाब देने लगता है. दिल्ली का उदाहरण सामने है,जहां कुछ ही दिनों पहले दिल्ली और एनसीआर के अभिभावकों ने निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया था. वहां मनमाने तरीके से फीस वृद्धि के खिलाफ छात्रों और अभिभावकों के द्वारा आंदोलन किया गया था. दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने इसे संज्ञान में लिया और कुछ स्कूलों को चिन्हित करके उनका लेखा-जोखा लेने का फैसला किया है.
सिलीगुड़ी में फिलहाल ऊपर से सब ठीक लगता है, परंतु अंदर ही अंदर अभिभावकों का दुख और पीड़ा बढ़ती जा रही है. अगर भविष्य में दिल्ली जैसी घटनाएं यहां भी घटे तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं होगी. पश्चिम बंगाल में निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए कोई सशक्त मंच नहीं है. सरकार सीधा उन पर हमला नहीं कर सकती. ऐसे में अभिभावकों को ही आगे आने की जरूरत है. निजी स्कूलों को भी मानवता के आधार पर कुछ ठोस निर्णय लेने की जरूरत है. उन्हें यह देखने की जरूरत है कि बच्चों के अभिभावकों की जेब पर ज्यादा बोझ ना पड़े. सिलीगुड़ी में 10% समर्थ अभिभावकों को छोड़ दिया जाए तो 90% अभिभावक गरीब हैं, जिन्हें राहत देने की जरूरत है.
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