माटीगाड़ा स्थित बालासन से लेकर सालूगाड़ा तक राष्ट्रीय राजमार्ग को फोरलेन व सिक्स लेन बनाने के लिए सड़क को चौड़ा करना आवश्यक है. सड़क के किनारे बड़े-बड़े पेड़ उग आए हैं. इन पेड़ों को काटे बगैर सड़क चौड़ी नहीं हो सकती और ना ही फोरलेन व सिक्स लेन का काम पूरा हो सकता है. यही कारण है कि वर्तमान में यहां सड़क के किनारे लगे पेड़ों को काटा जा रहा है. इस पर कई संगठनों के लोग नाराजगी भी दिखा चुके हैं.
ऐसे में यह सवाल उठता है कि बगैर पेड़ काटे क्या सड़क को चौड़ा करना संभव है? फोरलेन तथा सिक्स लेन में बाधक बने पेड़ो को तो काटना ही होगा. अन्यथा यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सकता. पर्यावरणविद हरियाली को लेकर चिंतित हैं तो सरकार अपना प्रोजेक्ट पूरा करने को लेकर गंभीर है. उक्त राष्ट्रीय राजमार्ग का जो रोड मैप तैयार किया गया है, उसे पूरा करने के लिए सड़क के किनारे लगे पेड़ों को काटना ही होगा. अब पर्यावरण संगठनों को ही सरकार के समक्ष विकल्प रखने होंगे. ऐसा क्या फार्मूला होगा कि पेड़ भी बच जाए और प्रोजेक्ट का काम भी पूरा हो सके.
यह सच है कि पेड़ पौधे और हरियाली मानव जीवन के लिए आवश्यक है.पेड़ पौधे ही मनुष्य और जीवो को जलवायु परिवर्तन से बचा सकते हैं. आज सिलीगुड़ी समेत पूरा देश ग्लोबल वार्मिंग का शिकार हो चुका है. जिस तरह से समतल से लेकर पहाड़ तक तापमान और गर्मी का रिकॉर्ड हर दिन टूट रहा है, निश्चित रूप से वह ग्लोबल वार्मिंग का ही नतीजा है. उत्तर बंगाल के पर्यावरणविद तथा नेफ संगठन के एनजीओ पदाधिकारी अनिमेष बोस मानते भी हैं कि मौसम में अचानक परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही हो रहा है.
अनिमेष बोस तथा दूसरे पर्यावरणविदो का भी यही कहना है कि ऐसी स्थिति में इस संकट से बचने के लिए धरती पर हरियाली लाना जरूरी हो गया है. उन्होंने कहा कि मानव को जल बचाने तथा धरती पर हरियाली लाने का प्रयास करने की जरूरत है. लेकिन सवाल यह है कि जब विकास में हरियाली बाधक हो तो क्या करना चाहिए? वर्तमान समय में विकास और शहरीकरण की होड़ में पेड़ पौधों को बलि चलाया जा रहा है. प्रकृति से खिलवाड़ हो रहा है. पहाड़ को विस्फोट से गिराया जा रहा है. नदी का मुंह मोड़ा जा रहा है. क्योंकि विकास के लिए कहीं ना कहीं कुर्बानी तो देनी ही होगी.
माटीगाड़ा से लेकर सालूगाड़ा और सेवक तक सड़क विस्तार करने के लिए वर्तमान में वही हो रहा है जो इससे पहले भी होता आया है. यानी पेड़ पौधों को काटना. अब इसकी भरपाई भी किया जाना जरूरी है. समस्या का समाधान तब ही हो सकता है जब प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद सरकार और संबंधित विभाग सड़क के किनारे फिर से पेड़ पौधे लगाए तथा उसका संरक्षण करें. इसके अलावा अन्य कोई विकल्प वर्तमान में नहीं दिख रहा है.