सिलीगुड़ी और आसपास के इलाकों में आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. बड़े तो बड़े, अब तो बच्चे भी खुदकुशी जैसे कदम उठा रहे हैं. एक अध्ययन से यह पता चलता है कि आजकल कम उम्र के स्कूली बच्चे आत्महत्या ज्यादा कर रहे हैं. सिलीगुड़ी और आसपास के इलाकों में इसी महीने दो स्कूली छात्राओं ने खुदकुशी कर ली या उनकी अस्वाभाविक मौत हो गई. इससे पता चलता है कि कम उम्र के बच्चों में आत्महत्या या खुदकुशी के मामले किस कदर बढ़ रहे हैं.
आपको याद होगा कि 6 सितंबर को 15 साल की एक छात्रा ने कदमतला इलाके में खुदकुशी कर ली थी. छात्रा कदमतला बीएसएफ स्कूल में नवी कक्षा में पढ़ती थी. छात्र ने आत्महत्या करने से पहले एक नोट तैयार किया, जिसमें उसने अपनी आत्महत्या के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया था. उसने लिखा था कि मैं पढ़ाई में अच्छी नहीं कर रही थी, इसलिए खुद को मिटा रही हूं. इसके बाद उसने आठवीं मंजिल की छत से कूद कर जान दे दी.
इस घटना के बीते 15 दिन भी नहीं हुए कि सिलीगुड़ी के एक अन्य निजी स्कूल की एक और छात्रा की रहस्यमय मौत हो गई है. छात्रा की उम्र 11 साल है और वह एक स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ती थी. छात्र का नाम श्रेयसी भौमिक है. वह ज्योति नगर इलाके की रहने वाली थी. घर वालों के अनुसार बच्ची बाथरूम में अचेत पाई गई थी. उसे आनन फानन में सेवक रोड स्थित एक निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां प्राथमिक जांच के दौरान ही डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
भक्ति नगर थाने की पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद शव को उसके परिजनों को सौंप दिया गया. हालांकि पुलिस ने अब तक बच्ची की मौत को लेकर कोई अधिकृत कारण नहीं बताया है. यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि बच्ची मानसिक दबाव में थी. लेकिन यह मानसिक दबाव कैसा था? क्या उस पर पढ़ाई या किसी और चीज का दबाव था? पुलिस इसकी छानबीन कर रही है.
कुछ साल पहले सिलीगुड़ी के झंकार मोड इलाके में एक स्कूली छात्रा ने इसलिए खुद को मिटा डाला था, क्योंकि उसकी मां ने उसे नया मोबाइल फोन नहीं दिया था. स्कूली बच्चों के अलावा सामान्य और बड़ी उम्र के लोगों के द्वारा भी आत्महत्या की गई है. आज सिलीगुड़ी के एक चर्चित वकील की रंगापानी इलाके में संदिग्ध मौत हो गई. जिस पर रेलवे पुलिस का प्रारंभिक बयान आया था कि संभवत: वकील के द्वारा आत्महत्या की गई थी. इससे पहले प्रधान नगर और भक्ति नगर पुलिस थाने के अंतर्गत भी मौत के कुछ ऐसे मामले सामने आए, जो संदिग्ध हैं और जिनकी पुलिस जांच पड़ताल कर रही है कि क्या वे खुदकुशी के मामले हैं या कुछ और?
यह सिलीगुड़ी के कुछ पुष्ट और अपुष्ट आंकड़े हैं. लेकिन इससे पता चलता है कि हमारे देश में छोटी उम्र के बच्चों से लेकर बड़ी उम्र के लोगों में आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूली बच्चों में इंटरनेट की बढ़ती लत और पढ़ाई का दबाव उन्हें आत्महत्या की ओर धकेल रहा है. कुछ मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बदलती और आधुनिक होती तकनीक बच्चों की आत्महत्या के प्रमुख कारणों में से एक हैं.
कुछ मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बच्चों का मानसिक विकास नहीं हो पा रहा है. सोशल मीडिया पर दिखाई गई नकारात्मक बातें उन्हें जल्द प्रभावित करती है. इसके अलावा खान-पान में बदलाव भी बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन ला रहा है. वंशानुगत और पारिवारिक पृष्ठभूमि भी खुदकुशी की एक वजह हो सकती है. आजकल स्कूलों में प्रतियोगितात्मक कक्षाएं चल रही हैं. इसमें एक बच्चा दूसरे से आगे निकल जाने के लिए मेहनत करता है और इससे उसका मानसिक दबाव और तनाव बढ़ जाता है.
लेकिन इतनी मेहनत करने के बावजूद भी जब बच्चे का परिणाम अनुकूल नहीं आता तो बच्चा खुद को दोष देने लगता है. उसमें मानसिक कुंठा, तनाव और निराशा घर करने लग जाती है. जब ये भावनाएं बेकाबू हो जाती हैं तो बच्चा आत्महत्या जैसी प्रवृत्तियों की ओर आकर्षित होने लगता है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों में अवसाद, चिंता, अकेलापन, तनाव, कुंठा, दोस्तों या घर परिवार से किसी तरह का समर्थन न मिलना भी उन्हें आत्महत्या का रास्ता चुनने पर मजबूर कर रहा है.
बहरहाल छोटी उम्र के स्कूली बच्चों में आत्महत्या के बढ़ रहे मामले चिंताजनक हैं. वक्त आ गया है कि सिलीगुड़ी प्रशासन, सरकार और स्कूल प्रबंधन मिलकर समस्या के निराकरण के लिए उपयुक्त कदम उठाए. स्कूलों में काउंसलिंग आज समय की जरूरत है. इसके अलावा प्रत्येक बच्चे पर उचित ध्यान देने के अलावा उनकी व्यक्तिगत समस्याओं के बारे में भी पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए और समस्या जटिल होने से पहले ही उसका समाधान किया जाना चाहिए. तभी इस तरह के मामले कम हो सकते हैं. या इस पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है.