सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्मो पर इन दिनों स्त्री पुरुषों के लापता होने की घटनाएं बढ़ गई हैं. स्कूली छात्राओं से लेकर पढ़े लिखे लोगों के गायब होने की खबर पुलिस स्टेशन से लेकर मीडिया और व्हाट्सएप के द्वारा पहुंचाई जाती है. पुलिस थानों में नियमानुसार मिसिंग की रिपोर्ट दर्ज कर ली जाती है और कई मामलों में पुलिस लापता व्यक्ति की तलाश में जुट भी जाती है. पर ऐसा भी होता है कि लापता व्यक्ति खुद ही घर वापस आ जाता है, परंतु इसकी सूचना पुलिस को नहीं दी जाती है. यहां तक कि पड़ोसियों को भी जानकारी नहीं होती है.
पुलिस के पास मिसिंग का रिकॉर्ड होता है. पुलिस का यह रिकॉर्ड मीडिया के जरिए आम लोगों तक फैल जाता है.एक पर एक मिसिंग की बढ़ती घटनाओं से लोगों में दहशत फैल जाती है. ऐसे मामलों में घर से भागा व्यक्ति खुद ही घर वापस आ जाता है तो जब तक पुलिस को इसकी जानकारी नहीं दे दी जाती, तब तक पुलिस उस व्यक्ति को मिसिंग के रूप में ही देखती रहती है और इस तरह से मिसिंग के मामले एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक जाते रहते हैं. अगर पुलिस को खोए व्यक्ति के मिलने की जानकारी दे दी जाती है तो पुलिस के पास मिसिंग के आंकड़ों में कमी दिखने लगेगी.
एक अध्ययन और सिलीगुड़ी के कुछ खास विद्वानों से बातचीत के बाद सिलीगुड़ी से गायब होते लोगों की सच्चाई सामने आ रही है. विद्वानों का मानना है कि जो लोग गायब हो रहे हैं, उनमें से अधिकांश वे कहीं ना कहीं घर की परिस्थिति, टेंशन और व्यक्तिगत कारणो से ही घर छोड़कर भाग रहे हैं. घर के लोग 2 दिनों तक इधर-उधर उन्हें ढूंढते रहते हैं. इसके बाद यह मामला पुलिस थानों में पहुंच जाता है. पुलिस को मजबूरन मिसिंग रिपोर्ट दर्ज करनी पड़ती है.
इधर पुलिस थानों में मिसिंग रिपोर्ट दर्ज कर ली जाती है, उधर घर से गायब हुआ व्यक्ति वापस घर लौट आता है. लेकिन इसकी जानकारी पुलिस को नहीं दी जाती है. यही कारण है कि वर्तमान में सिलीगुड़ी में ‘गायब’ की संख्या अधिक दिखती है. अधिकतर गायब होते लोग खुद ही घर लौट आते हैं. अगर उनके बारे में पुलिस को जानकारी दे दी जाती है तो एक तरफ पुलिस की जिम्मेदारी और परेशानी में कमी आएगी और पुलिस दूसरे महत्वपूर्ण मामलों में अपनी एनर्जी खर्च करेगी. दूसरी तरफ खोए व्यक्तियों के मिल जाने से समाज में भय अथवा आतंक का वातावरण भी नहीं बन सकेगा.
पिछले एक डेढ़ महीने में सिलीगुड़ी अथवा आसपास के क्षेत्रों से दर्जनों लोग गायब हुए हैं. इनमें स्कूली छात्राओं से लेकर युवा, बड़े बुजुर्ग भी शामिल हैं. यह देखा गया है कि गायब होने वाले कुछ दिनों के बाद खुद ही घर लौट आते हैं. लेकिन तब तक मीडिया अथवा अन्य प्रचार माध्यमों से समाज में तरह-तरह की अफवाह फैला दी जाती है. जैसे किडनैपिंग, असामाजिक तत्वों के शिकार आदि की बात भी सामने आने लगती है. इनमें से कुछ ही मामले सच होते हैं. जबकि अधिकतर मामलों में लोगों की घर वापसी हो जाती है. अगर इनके बारे में प्रशासन को जानकारी दी जाती है तो समाज में एक स्वस्थ वातावरण कायम करने में मदद मिलेगी.
पुलिस को भी किसी व्यक्ति के बारे में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करने से पहले परिवार के लोगों से एक लिखित संकल्प भरवा लेना चाहिए कि अगर खोए हुए व्यक्ति की घर वापसी होती है तो उसके बारे में सर्वप्रथम पुलिस को सूचना दी जाए. ताकि पुलिस मिसिंग रिपोर्ट की संख्या में कमी कर सके.दूसरा अगर कोई व्यक्ति सचमुच गायब हो जाता है तो उसकी जानकारी के बारे में पुलिस थाना का नंबर जरूर दिया जाना चाहिए.जबकि ऐसा बहुत कम होता है. मिसिंग व्यक्ति के परिवार वालों का ही नंबर सोशल मीडिया में देखा जाता है.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जो लोग गायब होते हैं, आखिर इसके पीछे कारण क्या होता है. अध्ययन में यह बात भी निकल कर सामने आई है कि अधिकतर मामलों में प्रेम प्रसंग, आर्थिक चिंता, व्यापार में घाटा, घर का क्लेश आदि स्थितियां जिम्मेवार होती हैं. इसलिए परिवार में एक स्वस्थ वातावरण कायम रहना भी जरूरी है. स्थिति को बिगड़ने से पहले ही कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए ताकि नकारात्मकता को दूर किया जा सके. कुछ लोग डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. ऐसे लोगों की काउंसलिंग भी जरूरी है. अगर पुलिस और पब्लिक का आपसी सहयोग और विश्वास का वातावरण बने तो सोशल मीडिया में मिसिंग को लेकर फैलाई जा रही नकारात्मकता को दूर करने में अवश्य सफलता मिलेगी.
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