पश्चिम बंगाल के सरकारी स्कूलों की दुर्दशा तथा पढ़ाई नहीं होने से एक गरीब से गरीब व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसके बच्चे किसी निजी स्कूल में पढ़ें. सिलीगुड़ी में अनेक परिवार ऐसे हैं, जिन्हें दो जून रोटी की चिंता रहती है. परंतु वह अपने बच्चों को किसी अंग्रेजी माध्यम स्कूल में ही भेजना पसंद करते हैं. लोगों तथा बच्चों का निजी स्कूलों के प्रति बढ़ते आकर्षण ने सिलीगुड़ी तथा राज्य के दूसरे शहरों में अनेक निजी स्कूलों को फलने फूलने का मौका दिया है.
इसमें कोई गलत बात नहीं है कि निजी स्कूलों में पढ़ाई, अनुशासन से लेकर सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध रहती है. जहां बच्चों का बेहतर मार्गदर्शन होता है. इसके साथ ही उनके कैरियर का भी ध्यान रखा जाता है. हाल के वर्षों में निजी स्कूलों में शिक्षा गौण हो गई. लगभग सभी स्कूलों में व्यवसायिकता हावी हो गई है. निजी स्कूलों पर आरोप यह भी लगाए जा रहे हैं कि वे कमाई का जरिया बन गये हैं.
इसका प्रमाण भी सामने आने लगा है. नौकरी के क्षेत्र में तनख्वाह में बढ़ोतरी हो या ना हो, व्यापार में कमाई हो या ना हो,लेकिन निजी स्कूल हर साल मनमानी फीस बढ़ोतरी करते रहते हैं.इसके अलावा आरोप यह भी है कि बच्चों को महंगी ड्रेस तथा मह॔गी पुस्तकें खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है. सिलीगुड़ी में इसका प्रमाण मिल भी चुका है ऐसे में गरीब और मध्यमवर्गीय सभी वर्गों के लोगों की जेब पर भारी बोझ बढ़ जाता है. गरीब अभिभावक तो खर्च झेलने की स्थिति में नहीं होते हैं जबकि मध्यम वर्गीय परिवार भी इस बोझ को उठाने के लिए तैयार नहीं होता.
निजी स्कूलों द्वारा शिक्षा को बिकाऊ वस्तु बनाने की इस व्यवसायिक नीति को अब कोलकाता हाई कोर्ट ने भी संज्ञान में लिया है. निजी स्कूलों में मनमानी फीस वृद्धि को लेकर कोलकाता हाईकोर्ट में एक मामला दायर किया गया है. इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश विश्वजीत बोस ने निजी स्कूलों को कड़ी फटकार लगाई है. उन्होंने अपनी टिप्पणी में कहा है कि शिक्षा छात्रों के लिए एक विक्रय वस्तु नहीं है. उन्होंने निजी स्कूलों पर राज्य सरकार के नियंत्रण की भी बात कही है. यह सच है कि राज्य सरकार फीस निर्धारण के मामले में निजी स्कूलों का ढांचा तय नहीं कर सकती, परंतु निजी स्कूलों पर नियंत्रण तो रख ही सकती है.
फीस बढ़ोतरी में निजी स्कूलों की मनमानी का एक बड़ा कारण यह भी है कि कोई ऐसा तर्कसंगत कानून नहीं है, जहां प्रशासन उन पर अंकुश लगा सके. परंतु 2012 में राज्य में कानून लाया गया था कि निजी स्कूलों को फीस वृद्धि समेत किसी भी चीज के लिए राज्य की मंजूरी आवश्यक है. मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश महोदय ने निजी स्कूलों की फीस में बढ़ोतरी पर राज्य की स्थिति और राय जानने की कोशिश की.
न्यायाधीश महोदय ने राज्य सरकार को 2 हफ्ते का समय दिया है. अगली सुनवाई 21 जून को होगी. आपको बताते चलें कि इससे पहले विभिन्न स्कूलों के संगठनों ने निजी स्कूलों में मनमाने तरीके से फीस बढ़ाए जाने को लेकर शिकायत की थी. उसके बाद कोर्ट में याचिका लाई गई थी. उसी याचिका पर सुनवाई करते हुए कोलकाता हाई कोर्ट ने नाराजगी जताई है!