इस खबर से कि देश में खुदरा महंगाई दर 25 महीने में सबसे कम दर्ज की गई है, लोगों को खुशी तो हुई होगी पर जमीनी स्तर पर परिदृश्य कुछ अलग ही है. खुदरा मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति घटकर 4.25% पर आ गई है जबकि अप्रैल महीने में यह 4.7% थी. मई 2023 में खाद्य महंगाई दर 2.91% थी जो अप्रैल में 3.48% दर्ज की गई थी. पहले सरकारी आंकड़ो पर एक नजर डाल लेते हैं.
सरकारी एजेंसियों के अनुसार पिछले 3 माह से खुदरा मुद्रास्फीति 6% की सीमा से नीचे बनी हुई है. स्टैटिसटिक्स एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की ओर से खुदरा महंगाई के प्रारंभिक आंकड़े जारी किए गए हैं. इसके अनुसार मई 2023 में खुदरा मूल्य सूचकांक 177.1 अंक जबकि अप्रैल के संशोधित आंकड़े में खुदरा मूल्य सूचकांक का 175.9 अंक था. मई में ग्रामीण क्षेत्र की खुदरा मुद्रास्फीति 4.17% तथा शहरी क्षेत्र की 4.27% थी.
अगर अनाजों की बात करें तो मई महीने में अनाज और अनाज उत्पादों के खुदरा भाव वार्षिक स्तर पर 12.65% ऊपर थे.जबकि सब्जियों का मूल्य स्तर 8.81% नीचे था. खाद्य तेल ,वनस्पति आदि के भाव में 16% की कमी आई है. महंगाई में आई गिरावट को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत है. यह तो सरकारी आंकड़े की बात रही. इसको जमीनी स्तर से भी देखना जरूरी है.
भले ही सरकारी आंकड़े में देशभर में अनाज और सब्जियां सस्ती होने की खबर से लोगों को राहत मिली है, पर अगर हम सिलीगुड़ी तथा आसपास के क्षेत्रों के बाजार की बात करें तो की बात करें तो हालांकि साग सब्जियों के भाव में कोई विशेष नरमी नहीं आई है. ₹30 से लेकर ₹40 किलो तक साग सब्जियां बाजार में बिक रही है. जबकि करैला, शिमला मिर्च का भाव अभी भी ₹50 से लेकर ₹60 किलो तक बना हुआ है. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि साग सब्जियों के रेट में गिरावट आई है. दूसरी ओर भिंडी की बाजार में आवक इतनी ज्यादा देखी जा रही है कि भिंडी उत्पादक किसान परेशान हैं.उन्हें लागत निकालने के लिए ओने पौने दाम में भिंडी को बेचना पड़ रहा है.
सिलीगुड़ी के बाजार में भले ही भिंडी का भाव ₹30 किलो से ज्यादा हो, परंतु सिलीगुड़ी से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित धुपगुरी रेगुलेटर बाजार में भिंडी का ₹2 किलो तक खरीददार नहीं मिल रहा है. पिछले दिनों यह नजारा धुपगुरी रेगुलेटेड बाजार में देखा गया,जब भिंडी उत्पादक किसानों ने वाजिब दाम नहीं मिलने से भिंडी को सड़क पर ही फेंकना शुरू कर दिया. बड़ी उम्मीद से किसान बाजार में आए थे लेकिन भाव ऐसा गिरा कि ₹2 किलो तक भिंडी के भाव गिर गए. ऐसे में अधिक पूंजी और अधिक श्रम के साथ सब्जियों की खेती करने वाले किसानों ने भिंडी को बेचने के बजाय उसे सड़क पर फेंक दिया.
सिलीगुड़ी और उत्तर बंगाल में कदाचित यह पहली घटना थी. आज यह खबर सुर्खियों में है. धुपगुरी रेगुलेटेड मार्केट में सब्जी बेचने के लिए दूर-दूर के क्षेत्रों से किसान आते हैं. जब सब्जी बिकती है तो उनके चेहरे पर चमक आ जाती है. लेकिन जब सब्जी का भाव उनकी लागत तक वसूल नहीं कर पाता, तब उनमें निराशा घिर आती है. हमारा सिस्टम ऐसा नहीं है कि किसानों की माली हालत को सुधारने के लिए कोई विशेष प्रयास कर सके.परंतु ऐसी घटनाओं से किसानों में निराशा जरूर आती है और इसका असर फसल उत्पादन पर भी पड़ता है.