रात के सन्नाटे को चीरती हुई एक एंबुलेंस सिलीगुड़ी की सड़कों पर तेजी से दौड़ रही थी. एंबुलेंस के अंदर कुछ लोग सफेद रंग के एक ताबूत को घेर कर बैठे थे.चेहरे पर उदासी और आंखों में आंसू. पिछली सीट पर एक महिला बैठी थी. एंबुलेंस तेजी से फुलबारी की ओर जा रही थी. आमतौर पर एंबुलेंस को देखकर यही समझा जाता है कि इसमें कोई मरीज होगा, जिसे तुरंत चिकित्सा की जरूरत होती है. इसलिए पुलिस एंबुलेंस को नहीं रोकती और सड़क पर दौड़ रहे अन्य वाहन भी एंबुलेंस को रास्ता दे देते हैं.
सिलीगुड़ी में शायद यह पहली घटना होगी, जब पुलिस ने एंबुलेंस को रोका. दरअसल पुलिस को अपने विश्वस्त सूत्रों से पता चला था कि एंबुलेंस का उपयोग आपराधिक कार्यों के लिए किया जा रहा है. पुलिस को यह भी जानकारी मिल गई थी कि एंबुलेंस में कोई मरीज नहीं है. इस जानकारी के बाद सिलीगुड़ी मेट्रोपॉलिटन पुलिस के आला अधिकारियों ने एंबुलेंस को घेरने की आनन-फानन में योजना तैयार कर ली. उच्च अधिकारियों के नेतृत्व में स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया गया.
सारी तैयारी पूरी होने के बाद एसटीएफ ने एंबुलेंस का पीछा करते हुए उसे फुलबारी के इलाके में धर दबोचा. एसटीएफ के अधिकारियों ने एंबुलेंस के ड्राइवर को गाड़ी रोकने का इशारा किया, तो गाड़ी में बैठे लोगों के चेहरे पीले पड़ने लगे. आखिरकार ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी. पुलिस अधिकारियों ने एंबुलेंस के अंदर बैठे लोगों के चेहरे पर एक नजर डाल पर पूछा, क्या है इसके अंदर? उन्होंने कांपते शब्दों में जवाब दिया, हुजूर ताबूत में लाश रखी हुई है… जब ताबूत की बात की जाती है, तो अनायास व्यक्ति का मन उदास हो जाता है.क्योंकि ताबूत का सीधा संबंध मृतक की लाश से होता है. मृतक की लाश को ताबूत में रखकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है.
एसटीएफ के अधिकारियों ने एंबुलेंस में सवार लोगों को नीचे उतारा और स्वयं सच्चाई का पता करने के लिए एंबुलेंस के अंदर घुस गए. उन्होंने ताबूत को हिला डुला कर देखा. उनका शक और पुख्ता होता चला गया. उन्होंने सफेद रंग के ताबूत को कुछ ही देर में खोल दिया. जैसा कि पुलिस को बयान दिया गया था. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से ताबूत में कोई लाश नहीं थी. लेकिन लाश की जगह पर जो कुछ नजर आया, वह रूह क॔पक॔पा देने के लिए पर्याप्त था. ताबूत में लाश की जगह निकला ‘जिन्न’…यह जिन्न कोई और नहीं बल्कि गांजा था. जिसकी तस्करी करने के लिए तस्करों ने यह स्वांग रचा था.
पुलिस अधिकारियों का शक यकीन में तब्दील हो गया. इसके साथ ही एंबुलेंस में सवार लोगों के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी. पुलिस अधिकारियों ने उनसे पूछताछ की. बचने का कोई रास्ता ना देख कर उन तीनों ने सरेंडर कर दिया. उनके नाम समीर दास, अपूर्व दे और पप्पू मोदक है. जबकि महिला का नाम सरस्वती दास बताया जाता है.
पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर सिलीगुड़ी अदालत में पेशकर विस्तृत पूछताछ के लिए रिमांड में लिया है. पुलिस ने एंबुलेंस के अंदर ताबूत से लगभग 64 किलो गांजा बरामद किया है. जिसे बिहार ले जाकर बेचने की अपराधियों की योजना थी. सिलीगुड़ी की यह घटना किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है. फिल्मों में आप ऐसी घटनाएं जरूर देखते होंगे. लेकिन यथार्थ में ऐसी घटनाएं बहुत कम देखी जाती है. कदाचित सिलीगुड़ी में यह पहली घटना होगी, जब शातिर गांजा के तस्करों ने पुलिस की आंखों में धूल झोंकने की फूल प्रूफ योजना तैयार कर ली थी. परंतु सिलीगुड़ी मेट्रोपॉलिटन की पुलिस ने उनकी योजना की हवा निकाल दी तथा उनके नापाक इरादों पर पानी फेर दिया!