जादवपुर यूनिवर्सिटी के छात्र स्वप्नदीप कुंडू की मौत ने न केवल बंगाल को ही बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. आरंभिक जानकारी निकल कर सामने आ रही है. उसमें यह पता चला है कि मौत से पहले स्वप्नदीप कुंडू को नंगा करके दौड़ाया गया था. वह काफी परेशान था और अपने घर वालों को अपनी मानसिक स्थिति के बारे में बता रहा था. घरवालों ने सीधा सीधा रैगिंग और हत्या का आरोप लगाया है. पुलिस मामले की तफ्तीश में जुटी है.
कॉलेज और विश्वविद्यालयों में रैगिंग की घटनाएं सामान्य बात है. यह कोई पहली घटना नहीं है. इससे पहले भी जलपाईगुड़ी, कूचबिहार और यहां तक कि सिलीगुड़ी के कई शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की छोटी बड़ी घटनाएं देखी जा चुकी है. लेकिन बंगाल में इतनी बड़ी घटना शायद इससे पहले नहीं घटी थी. हालांकि रैगिंग की घटनाएं केवल शिक्षण संस्थानों में ही होती है, ऐसी बात नहीं. बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी देखी जाती है. पर यह जरूर है कि शिक्षण संस्थानों में सीनियर और जूनियर के बीच काफी फर्क देखा जाता है. पूर्व में इस पर कई फिल्में भी आ चुकी है.
महाविद्यालय जीवन में हर विद्यार्थी को कुछ इसी तरह के अनुभव होते हैं, जहां वरिष्ठ छात्रों के द्वारा जूनियर छात्रों को किसी न किसी बात पर परेशान किया जाता है. ऐसे पीड़ित छात्र किसी से शिकायत भी नहीं कर पाते. प्रिंसिपल और प्रोफेसर भी ऐसे मामलों में चुप्पी साध लेते हैं.जिससे सीनियर्स का रैगिंग का मनोबल बढ़ता जाता है. आमतौर पर कॉलेज और विश्वविद्यालय में अनुशासन की कमी होती है.यहां अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र में भी खुलकर राजनीति की जाती है.शिक्षकों और प्रिंसिपल की भी मजबूरी होती है. अतः चाह कर भी वे कोई बड़ा कदम नहीं उठा सकते.
माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे खूब पढ़ाई करें. अभिभावक अपने बच्चों को उच्चतर शिक्षा दिलाने के लिए देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में भेजते हैं. अपने माता-पिता से दूर ऐसे बच्चे हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करते हैं. बच्चों का हॉस्टल में अपना कोई नहीं होता. दोस्त और सहपाठी होते हैं. देखा गया है कि हॉस्टल में भी सीनियर लड़के जूनियर लड़कों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करते. कई बार सीनियर लड़कों के गलत बर्ताव के कारण बच्चों को काफी शारीरिक और मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है. ऐसे में कई बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं या फिर बीच में ही पढ़ाई छोड़कर घर लौट आते हैं.
कुछ बच्चे संवेदनशील स्वभाव के होते हैं. वे पढ़ने में तेज भी होते हैं. ऐसे बच्चों से माता पिता की उम्मीद बढ़ जाती है. माता-पिता के सपनों को पूरा करने के लिए ही ऐसे बच्चे कोटा अथवा प्रख्यात विश्वविद्यालयों व शिक्षण संस्थानों में जाते हैं और वहां के हॉस्टल में रहते हैं.उनके साथ भी रैगिंग की घटनाएं घटती हैं. इन बच्चों की मजबूरी यह होती है कि उन्हें माता-पिता के सपने पूरे करने होते हैं. इसलिए वे चाह कर भी घर नहीं लौट सकते. जब उनके साथ अत्याचार की घटनाएं बढ़ती हैं तब इनसे मुक्ति पाने के लिए वे इच्छा मृत्यु करने पर मजबूर हो जाते हैं.
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि रैगिंग करने वाले छात्र मनोविकृति के शिकार रहते हैं. वे डिप्रेशन में रहते हैं. ऐसे में जब कोई नवागत छात्र उनके संपर्क में आता है तब ऐसे सीनियर छात्र अपनी भड़ास नवागत के साथ साझा करते हैं. इसी क्रम में रैगिंग की घटनाएं मूर्त रूप लेती है. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि विश्वविद्यालय अथवा कॉलेज प्रशासन को ऐसे छात्रों को समय-समय पर काउंसलिंग कराने की जरूरत है. तभी ऐसी घटनाओं में कमी आएगी.