November 23, 2024
Sevoke Road, Siliguri
उत्तर बंगाल लाइफस्टाइल सिलीगुड़ी

डॉक्टरों के द्वारा पर्ची पर सस्ती दवाएं न लिखे जाने को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर माना!

बीमार होने अथवा किसी रोग के इलाज के क्रम में जब आप डॉक्टर के पास जाते हैं, तो डॉक्टर प्रारंभिक टेस्ट करने के बाद एक पर्ची तैयार करता है जिसे प्रिसक्रिप्शन कहा जाता है. इसमें अधिकांश डॉक्टरों के द्वारा रोगी के इलाज के क्रम में अक्सर महंगी दवाएं लिखी जाती है. रोगी के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं होता कि वह डॉक्टर के बताए अनुसार मेडिकल स्टोर से दवाइयां खरीद सके. लेकिन रोगी की जेब पर यह भारी पड़ता है.

अक्सर आपने रोगियों के मुंह से सुना होगा कि एक साधारण सी बीमारी के इलाज में उनकी जमा पूंजी खत्म हो गई. या फिर उन्हें दूसरों से कर्ज लेकर इलाज कराना पड़ा. आधुनिक जीवन शैली के दौर में मनुष्य कई बीमारियों से जकड़ता जा रहा है. ऐसे में भांति भांति के रोगों के इलाज में व्यक्ति को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. बाजार में महंगी और सस्ती दवाएं दोनों उपलब्ध है. लेकिन अधिक कमीशन के लालच में कुछ डॉक्टर जानबूझकर रोगी के लिए महंगी दवाई लिखते हैं.

जेनेरिक दवाएं सस्ती दवाएं होती है. लेकिन अधिकांश डॉक्टर जानबूझकर पर्ची पर सस्ती दवाएं नहीं लिखते. क्योंकि इसमें उनका कमीशन नहीं के बराबर होता है. ब्रांडेड दवा और जेनेरिक दवा के गुणसूत्र लगभग एक से होते हैं. लेकिन ब्रांडेड दवाएं मार्केट में खूब चलती हैं. जबकि जेनेरिक दवाओ की मांग ज्यादा नहीं है.जेनेरिक दवाओं की कीमतें ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 50% से 90% तक कम हो सकती हैं. अगर डॉक्टर जेनेरिक दवाओं को लिखते हैं तो इससे मरीजों का उपचार तो होगा ही. इसके साथ ही इलाज पर उनका काफी पैसा बच जाएगा.

अब इस बात को सुप्रीम कोर्ट ने भी समझा है और इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है. डॉक्टरों के जेनेरिक दवा न लिखने संबंधी एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया है और केंद्र तथा राज्यों से जवाब मांगा है. जनहित याचिका में महंगी दवाई लिखने वाले डॉक्टर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की गई है. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदी वाला तथा मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, एथिक्स एंड मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड तथा संबंधित विभागों से जवाब मांगा है.

याचिकाकर्ता एक अधिवक्ता है के सी जैन, जिन्होंने पीठ को अवगत कराया है कि जेनेरिक दवाओं को निर्धारित करने के महत्व पर जोर देने वाले नियम जिन्हें 2002 में ही अधिसूचित किया गया था, अब व्यवहार में बड़े पैमाने पर लागू नहीं किये जा रहे हैं. उन्होंने कहा है कि भारतीय चिकित्सा परिषद विनियम 2002 जो दवाओं को उनके जेनेरिक नाम से लिखने के महत्व पर प्रकाश डालते हैं, पूरी तरह से कानूनी ढांचे के भीतर मौजूद हैं.

इस याचिका में कहा गया है कि गैर अनुसूचित फॉर्मूलेशन तथा ऑफ पेटेंट जेनेरिक दवाओ के अधिकतम खुदरा मूल्य तय करने के लिए राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल्स मूल्य निर्धारण प्राधिकरण को निर्देश दिया जाए. याचिकाकर्ता ने कहा है कि जेनेरिक दवाएं लिखकर, स्वास्थ्य देखभाल, पेशेवर मरीजों पर वित्तीय बोझ को कम करने तथा महत्वपूर्ण दवाओं तक उनकी पहुंच को सुविधाजनक बनाने में मदद की जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *