उत्तर बंगाल चाय की खेती के लिए प्रसिद्ध है. यहां अनेक चाय बागान हैं, जो उत्तर बंगाल के विभिन्न जिलों जैसे दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, उत्तर दिनाजपुर, कूचबिहार आदि जिलों में स्थित है. इन चाय बागानों में काम करके स्थानीय लोगों का गुजारा होता है. किसी समय उत्तर बंगाल में 90 से ज्यादा चाय बागान थे. इनमें से कई चाय बागान बंद हो गए. कुछ बंद होने के कगार पर पहुंच गए हैं. इसके अनेक कारण हैं.
बहरहाल चाय बागानों के बंद हो जाने से सबसे ज्यादा चाय श्रमिक प्रभावित होते हैं. उनकी दो जून रोटी की चिंता बढ़ जाती है. चाय श्रमिकों को सबसे कम वेतन मिलता है. इसी से उनके घर का खर्च चलता है. लेकिन समय-समय पर सरकार की नीतियां और चाय बोर्ड की मनमानी के चलते चाय श्रमिकों पर सबसे ज्यादा गाज गिरती है. चाय बोर्ड ने 15 जुलाई 2024 को ही चाय की तुड़ाई 30 नवंबर तक बंद करने का आदेश जारी कर दिया था. इसको लेकर एक तरफ छोटे चाय उत्पादकों में हड़कंप मचा हुआ है तो दूसरी तरफ चाय श्रमिक चिंतित और काफी परेशान हैं.
अगर चाय बोर्ड के आदेश का पालन किया जाता है, तो इसका यह मतलब है कि अगले 4 महीने दिसंबर से लेकर मार्च तक छोटे चाय उत्पादकों को बिना किसी आय के अपने बागानों का संचालन करना होगा. सवाल है कि कितने चाय उत्पादक बिना किसी आय के अपने बागान का संचालन कर सकेंगे? ऐसे में जब उनकी कमाई नहीं होगी तो चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों का वेतन कैसे मिलेगा? जब उन्हें वेतन नहीं मिलेगा तो वे काम कैसे करेंगे? उनका घर कैसे चलेगा? इत्यादि कई ज्वलंत सवाल उठ खड़े हुए हैं. इस बात की पूरी संभावना है कि छोटे चाय उत्पादक गायब हो जाएंगे.
एक अनुमान के अनुसार चाय उद्योग से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 20 लाख लोग रोजी-रोटी कमाते हैं. उनका जीवन अंधकारमय हो गया है. ऐसा लगता है कि चाय बोर्ड ने चाय श्रमिकों की नौकरी जाने का पूरा सामान तैयार कर लिया है. उनका परिवार भुखमरी का शिकार हो सकता है. अगर चाय बोर्ड के आदेश को लागू किया जाता है तो एक तरफ उत्तर बंगाल के चाय उत्पादक ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वित्तीय अराजकता पैदा होगी. जिससे कानून और व्यवस्था की स्थिति खराब हो सकती है. वहीं दूसरी तरफ सरकार का भी भारी नुकसान जीएसटी की बड़ी राशि प्राप्त नहीं होने से होगा.
पश्चिम बंगाल संयुक्त लघु चाय उत्पादक संघ WBUFSTA ने अब राज्य खासकर उत्तर बंगाल के लघु चाय उत्पादकों और श्रमिकों को कठिनाइयों से बचाने के लिए सामने आया है और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक चिट्ठी लिखी है, जिसमें चाय बोर्ड के आदेश के मद्देनजर होने वाले चाय उत्पादकों तथा चाय श्रमिकों पर प्रभाव का उल्लेख किया गया है.पश्चिम बंगाल संयुक्त लघु चाय उत्पादक संघ में जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग, उत्तर दिनाजपुर और कूचबिहार के जिला संघ शामिल है. संघ ने मुख्यमंत्री से अपील की है कि इस मामले में दखलअंदाजी करके चाय उत्पादकों और श्रमिकों पर गिरने वाली गाज से उन्हें बचाएं.
आपको बताते चलें कि लघु चाय उत्पादक संघ के मंच ने चाय बोर्ड के अधिकारी को पत्र लिखा था और उनसे उनका आदेश वापस लेने की अपील की थी. चाय बोर्ड ने पिछले 8 वर्षों से असम और पश्चिम बंगाल के लिए यह आदेश शुरू किया है. जबकि दक्षिण भारत के लिए यह आदेश लागू नहीं होता.वहां चाय बागानों में पूरे साल चाय की तुड़ाई और उत्पादन होता रहता है. चाय उत्पादकों के संघ के मंच ने चाय बोर्ड के फैसले पर उंगली उठाते हुए कहा है कि चाय बोर्ड ने असम और बंगाल में चाय की तुड़ाई को लेकर भी भेदभाव किया है. विज्ञप्ति में कहा गया है कि 2023 में असम में अंतिम चाय पत्ती की तुड़ाई 5 दिसंबर और पश्चिम बंगाल में 23 दिसंबर तय की गई थी. लेकिन इस साल अचानक ही एक ही तारीख में दोनों राज्यों को निपटा दिया गया है.
चाय उत्पादक समूह के मंच ने कहा है कि बंगाल में चाय का अच्छा और पर्याप्त उत्पादन होता है. यह चाय बोर्ड के आंकडों में भी परिलक्षित हो रहा है. दिसंबर 2023 में बंगाल ने करोड़ों रुपए मूल्य की चाय का उत्पादन किया था. इससे चाय श्रमिकों और सरकार को भी काफी फायदा हुआ. अब चाय बोर्ड का आदेश आने के बाद छोटे चाय उत्पादकों को औने पौने दाम में चाय पत्तियां तुड़वाकर बेचनी पड़ रही है. इससे उनका भारी नुकसान हो रहा है. चाय की उत्पादन लागत ₹21 प्रति किलोग्राम है जबकि उसकी बिक्री 12 से 14 रुपए प्रति किलोग्राम हो रही है. ऐसे में आसानी से समझा जा सकता है कि छोटे चाय उत्पादक काफी परेशान है. अगर सरकार ने समय रहते कदम नहीं उठाया तो उत्तर बंगाल में अराजक स्थिति उत्पन्न हो सकती है.
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