सिलीगुड़ी के अरुण ने बताया कि उसकी बुआ का सीटी स्कैन कराया जाना था. वह अपनी बुआ का इलाज उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल में करा रहा था. डॉक्टर ने कुछ जरूरी टेस्ट लिखे थे. उनमें से सीटी स्कैन भी था. वह सीटी स्कैन कराने के लिए लाइन में खड़ा था. तभी उसकी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई, जो उसकी परेशानी को अच्छी तरह समझता था. अजनबी बातों ही बातों में उनके साथ काफी घुल मिल गया. उस अजनबी के कारण व्यक्ति का सिटी स्कैन बड़ी आसानी से हो गया.
लेकिन इसके बाद दूसरे टेस्ट भी किए जाने थे. अजनबी व्यक्ति ने सलाह दी, मेडिकल में यह सारे टेस्ट अच्छे नहीं होते हैं. फिर जरूरी नहीं है कि जल्द ही नंबर मिल जाए.किंतु नजदीक में एक निजी लैब है, जहां कम पैसे में अच्छा टेस्ट हो जाता है.उस व्यक्ति की सलाह मानकर अरुण ने दूसरे टेस्ट निजी लैब में कराए. अगर आप उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल अथवा सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में इलाज के लिए जाते हैं और ऐसे व्यक्ति आपको मिले तो सावधान हो जाइए. आम बोलचाल की भाषा में इन्हें दलाल कहा जाता है, जो निजी अस्पतालों के लिए कमीशन पर काम करते हैं. इनकी पहुंच डॉक्टर से लेकर चिकित्सा कर्मी, स्वास्थ्य कर्मी सभी तक है. सबके साथ उनकी सांठगांठ है.
यह दलाल अस्पताल में रोगी को बेड दिलाने, टेस्ट कराने, ऑपरेशन इत्यादि के लिए डॉक्टर से जल्दी समय लेने आदि में रोगी की मदद करते हैं. रोगी के परिवार से इस सेवा के बदले ₹200 से लेकर ₹500 तक मिल जाता है. रोगी भी यही समझता है कि यहां वहां चक्कर काटने से अच्छा है कि कुछ पैसे देकर अपना काम आसानी से करा लिया जाए. लेकिन दलालों का एक वर्ग ऐसा है, जो केवल सिलीगुड़ी के निजी अस्पतालों के एजेंट की तरह काम करते हैं. इन दलालों का एकमात्र उद्देश्य रोगी को भ्रमित करना और उन्हे निजी अस्पतालों में जाने की सलाह देना है. प्रत्येक रोगी पर उनका कमीशन बंधा रहता है.
कुछ समय पहले तक सिलीगुड़ी जिला अस्पताल दलालों से सुरक्षित माना जाता था. किंतु अब वहां भी दलाल सक्रिय हो गए हैं. पहाड़ और दूर से आने वाले मरीजों को ये दलाल आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं. मालदार रोगियों पर उनकी विशेष नजर रहती है. उन्हें निजी अस्पतालों में पहुंचाने से लेकर डॉक्टर से संपर्क कराने की कोशिश करते हैं. दूसरे किस्म के दलाल वे होते हैं जो सरकारी अस्पताल में ही चिकित्सा कर्मियों से सांठगांठ करके रोगी का बेहतर और शीघ्र इलाज के बदले उनसे पैसे वसूल करते हैं. बाहर का रोगी जल्दी ही उनके झांसे में आ जाता है. एक तो रोगी पहले ही मुसीबत का मारा होता है. ऐसे में अगर उसका कोई मददगार मिल जाए तो उसके लिए यह अच्छी बात होती है. रोगी भी यही सोचता है कि कुछ पैसे खर्च करके अगर काम बन जाए तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है.