एक समय ऐसा था जब मोहल्ले के बच्चे अपनी टोलियों के साथ लुकाछिपी, कबड्डी, फुटबॉल, क्रिकेट, बैडमिंटन जैसे खेलों को खेलते थे | शाम होते ही मोहल्ले के लोग बच्चों के शोर शराबे से परेशान हो जाते थे, खेलों के मैदान भी हमेशा बच्चों से हरा भरा रहता था, चाहे मौसम जो भी हो लेकिन यह बच्चें अपने खेल को रुकने नहीं देते थे, लेकिन अब मौसम तो वहीं है बस मोहल्ले में बच्चों के खेलने की आवाज नहीं आती है, बच्चों से भरा पूरा रहने वाला मैदान भी अब सुना पड़ा है, गली मोहल्ले भी बच्चों के झुंड को देखने के लिए तरस गए हैं और अब कोई गली में क्रिकेट खेलकर खिड़कियों के कांच को नहीं तोड़ता | अब यह सारे दृश्य अलौकिक बन चुके है | इस आधुनिक युग ने सभी खेलों को सीमित कर दिया है, अब बच्चों की दुनिया मोबाइल में सिमट कर रह गई है | आधुनिक युग के मॉडर्न माता-पिता ने रोते हुए बच्चों के हाथों में मोबाइल फोन थमाना शुरू कर दिया है और ऐसा करके एक माता पिता गौरवान्वित भी महसूस करते है |
एक समय ऐसा था जब बच्चा रोता था, तो माँ उसे लोरी सुना कर चुप कराया करती थी, लेकिन अब माँ की लोरी ने भी मोबाइल का स्थान ले लिया है |
एक माँ अब यह भूल गई है कि, एक बच्चे को मोबाइल फोन की नहीं लोरी की जरूरत है, क्योंकि विशेषज्ञों और चिकित्सकों का विकास की दृष्टिकोण से मानना है कि, 4 वर्ष तक बच्चों में तेज रफ्तार से मानसिक विकास होता है उसके बाद भी यह विकास जारी रहता है लेकिन 4 साल को काफी अहम माना गया है | चिकित्सकों का यह भी कहना है कि,16 साल के बच्चों को भी व्हाट्सएप से दूरी बनाए रखना चाहिए और 13 वर्ष तक बच्चों को जितना हो सके गूगल या स्नैप चैट का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए |
कई अध्ययन से मिले परिणामों के बाद ही चिकित्सकों ने मोबाइल फोन को लेकर सतर्क किया है | देखा जाए तो मोबाइल फोन में वो सारी सुविधाएं होती हैं जो आसानी से आउटपुट उपलब्ध कराती है, जिससे बच्चों में धैर्य की क्षमता भी कम हो जाती है और ऐसे बच्चे अक्सर गुस्सैल, जिद्दी किस्म के होते हैं | जैसे जैसे बच्चें मोबाइल के संपर्क में आते है उनकी दुनिया सीमित होने लगती है, वे आसपास के लोगों से दूरी बनाने लगता है, कई मामलों में तो यह भी देखा गया है कि, वह अपने अभिभावक को से भी दूरी बना लेते हैं और उनसे भी बातें छुपाने लगते हैं, इसके बाद वे गलत संगत में पड़कर अपराधिक घटनाओं को अंजाम देने लगते हैं और कुछ तो मानसिक रोगी भी हो जाते है |
इतना ही नहीं मोबाइल फोन के कारण अब बच्चे खेल खुद से भी दूर हो चुके हैं, क्योंकि मोबाइल गेम की लत के कारण बच्चे घंटों मोबाइल से ही चिपके रहते हैं और यदि अभिभावक भी उन्हें ऐसा करने से मना करें तो पलट कर जवाब देना और बदतमीजी से पेश आते है | यह कहना गलत न होगा ‘जिस तरह से एक छोटा सा रिमोड टीवी को अपने नियंत्रण में रखता है उसी प्रकार एक मोबाइल भी इन दिनों बच्चों को नियंत्रित करने लगा है’ और वर्तमान स्तिथि को देखते हुए ही विशेषज्ञों और चिकित्सकों ने ऐसे अभिभावकों को सावधान किया है, जो अक्सर बच्चों के हाथों में मोबाइल देकर अपने कामों में व्यस्त हो जाते हैं | आप भी सावधान रहे आपके आसपास भी इस तरह के मामले दिखे तो ऐसे अभिभावकों को सतर्क करवाएं |
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