आयुष प्रणाली पद्धति के अंतर्गत आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी पैथी, योग, तिब्बती चिकित्सा, सोया रिगपा इत्यादि आते हैं. इनमें से तिब्बती चिकित्सा पद्धति के बारे में बहुत कम लोगों को पता है. परंतु तिब्बती दवाइयां काफी शक्तिशाली होती हैं. यह सब तरह से हानि कर रहित और पहाड़ी वनस्पतियों तथा चाय से तैयार की जाती है. इसका कम प्रचार होने के कारण लोग इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते. हालांकि दार्जिलिंग जिले में तिब्बती चिकित्सा पद्धति से इलाज किया जा रहा है. यह गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा है.
इस चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने और लोगों में प्रचार करने के लिए राज्य सरकार के साथ-साथ विभिन्न संगठन भी तत्पर दिखाई दे रहे हैं. सालूगाड़ा में बहुत जल्द तिब्बती मेडिकल कॉलेज खुलने जा रहा है. इसके तहत तिब्बती चिकित्सा का सोया रिगपा महाविद्यालय स्थापित होगा. चेंगपरी तिब्बती चिकित्सा संस्थान के निदेशक डॉक्टर टिनले पीटरोगोवा के अनुसार सालूगाड़ा में 2 एकड़ जमीन में यह महाविद्यालय बनाया जाएगा. आपको बता दे कि पश्चिम बंगाल सरकार और आयुष विभाग तिब्बती चिकित्सा को बढ़ावा दे रहा है.
वर्तमान समय में आयुष उपचार के प्रति लोगों में जागरूकता बढी है. यूं तो तिब्बती चिकित्सा पहाड़ के लोगों के लिए कोई नया नहीं है. पहाड़ी इलाकों में यह चिकित्सा सर्वाधिक लोकप्रिय है. तिब्बती चिकित्सा के जरिए गठिया के दर्द और त्वचा की समस्याओं समेत विभिन्न व्याधियों का सफलतापूर्वक इलाज किया जाता है. जलपाईगुड़ी में आयुष मेला चल रहा है, जहां तिब्बती पद्धति के इस स्वरूप का स्टॉल लगाया गया है .आयुष विभाग आयुष चिकित्सा के अंतर्गत इस चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा दे रहा है. आयुष मेले में सोया रिगपा का स्टॉल आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
उत्तर बंगाल में एकमात्र सोया रिगपा मेडिकल कॉलेज दार्जिलिंग में स्थित है. संपूर्ण भारत में सोया रिगपा के सात मेडिकल कॉलेज स्थित है. ऐसे में समझा जा सकता है कि सोया रिगपा का ज्यादा प्रचार प्रसार नहीं हो सका है, जिससे आम लोगों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. सूत्रों ने बताया कि दार्जिलिंग के तकदाह में स्थित सोया रिगपा मेडिकल कॉलेज को सिलीगुड़ी के सालूगाड़ा में स्थानांतरित करने की तैयारी चल रही है. इससे सिलीगुड़ी, पहाड़ और आसपास के लोगों को काफी फायदा होगा. हालांकि इसमें थोड़ी समस्या आ सकती है.
ऐसी जानकारी मिल रही है कि इस मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों को निशुल्क आवास, भोजन और शिक्षा प्रदान की जाएगी. पर इसके लिए फंड की समस्या आ सकती है. हालांकि प्रबंधन पक्ष ने इसका उपाय भी ढूंढ लिया है. डॉक्टर टिनले पेट्रोगावा ने बताया कि यह सब एक ट्रस्ट के माध्यम से ही हो सकेगा. हालांकि राज्य सरकार ने मंजूरी दे दी है. इसलिए वह फंड भी उपलब्ध कराएगी. परंतु इसमें सरकार की कोई बड़ी भूमिका नहीं होगी. निजी तौर पर ही इसे संचालित करने की योजना है. पहाड़ी इलाकों में तिब्बती दवा की काफी मांग है. इसके अलावा सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, दार्जिलिंग, कालिमपोंग आदि इलाकों में यह दवा बहुमूल्य मानी जाती है.
इसलिए सोया रिगपा का लाभ उठाने के लिए पश्चिम बंगाल के समतल इलाकों में व्यापक प्रचार की आवश्यकता है. यहां अभी तक आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी ही ज्यादा लोकप्रिय है. लेकिन जब एक बार लोग सोया रिगपा चिकित्सा पद्धति की गुणवत्ता के बारे में जान सकेंगे तो इसकी लोकप्रियता अपने आप बढ़ जाएगी. अब सालूगाड़ा में यह मेडिकल कॉलेज खुलने से उम्मीद की जानी चाहिए कि सिलीगुड़ी और बंगाल के दूसरे शहरों में भी इसका विस्तार होगा. कम से कम सिलीगुड़ी में तिब्बती चिकित्सा महाविद्यालय खुलने से नेपाल, सिक्किम, बिहार, असम और उत्तर बंगाल के विभिन्न जिलों के रोगियों को काफी लाभ होने का अनुमान लगाया जा रहा है.
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