कुछ वर्ष पहले की ही बात है. सिलीगुड़ी के एक फ्लैट खरीददार और बिल्डर के बीच विवाद हुआ था. खरीददार बिल्डर से अपना पैसा वापस मांग रहा था. लेकिन बिल्डर खरीदार को ना तो घर दे रहा था और ना ही उसका पैसा वापस कर रहा था. खरीदार ईएमआई के चक्कर में बुरी तरह फंस गया था. यह मामला अदालत में भी गया. आज भी इस केस का फैसला नहीं हो सका है.
हर व्यक्ति का सपना होता है कि उसका अपना फ्लैट हो. व्यक्ति इधर-उधर से लोन लेकर और अपनी जमा पूंजी लगाकर घर पर निवेश करता है. जब से वह पैसा लगाता है, तभी से वह एक-एक दिन गिनने लगता है. अचानक उसे पता चलता है कि जिस बिल्डर को उसने पैसे दे रखा है, वह दिवालिया हो गया. कल्पना करिए कि ऐसे निवेशक पर क्या असर पड़ता होगा. पूंजी डूबी और घर भी नहीं मिले तो कई खरीदार तो आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं.
अगर आप सिलीगुड़ी में अपने लिए फ्लैट लेना चाहते हैं तो बिल्डर की तलाश करते हुए उसकी विश्वसनीयता और पृष्ठभूमि का जरूर पता लगा ले. अन्यथा हो सकता है कि आपकी खून पसीने की कमाई कोई और उड़ा ले जाए. बहुत से बिल्डर आजकल निवेशकों का पैसा हड़पने के लिए कई चालें चल रहे हैं. यहां तक कि वह खुद को दिवालिया भी घोषित कर देते हैं. इस सूरत में बिल्डर से पैसा वापस प्राप्त करना काफी कठिन काम हो जाता है. कई बार तो निवेशक को पैसा भी नहीं मिलता. क्योंकि हमारा कानून कुछ ऐसा है कि इसमें निवेशक को जल्द न्याय नहीं मिलता. बिल्डरों की मौज रहती है.
आजकल सिलीगुड़ी और सिलीगुड़ी के आसपास के इलाकों में विभिन्न बिल्डरों के द्वारा आवासीय निर्माण का कार्य खूब चल रहा है. शहर में तो जमीन है नहीं. इसलिए लोग शहर से बाहर फ्लैट बुक करने के लिए बिल्डर की शरण में जा रहे हैं. बिल्डर भी खरीदारों को पटाने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन देते हैं और उन्हें भरोसे में लेने के लिए कुछ ऐसी बात करते हैं कि जैसे खरीदार कोई सपना देख रहा है. बहुत से लोग बिल्डर के जाल में फंस जाते हैं और कभी-कभी अपनी पूंजी से भी हाथ धो बैठते हैं.
सिलीगुड़ी में पहले भी बिल्डरों के द्वारा घर खरीदारों को काफी परेशान किया गया था. कई लोगों की तो पूंजी ही चली गई और उन्हें घर भी नहीं मिला. हालांकि आज भी खरीदारों की ओर से बिल्डर पर मुकदमा चलाया जा रहा है. बरसों हो गए. लेकिन उसका फैसला नहीं आया. उन्हें पैसा वापस मिलेगा भी या नहीं, यह भी निश्चित नहीं है.कई खरीदारों ने तो अपना मन ही मार लिया है. उन्हें नहीं लगता कि उनकी पूंजी वापस मिलेगी.
प्रायः ऐसे मामले में देखा जाता है कि बिल्डर खरीदारों की पूंजी हड़प लेते हैं और खुद को दिवालिया घोषित कर लेते हैं. एक बार दिवालिया घोषित करने के बाद कानून भी बेबस बन जाता है. बिल्डरों के द्वारा कभी-कभी यह भी देखा जाता है कि वह खरीदार के पैसे ले लेते हैं और समय पर घर बनाकर भी नहीं देते हैं. प्रोजेक्ट अटक कर रह जाता है. इस स्थिति में भी खरीदार को काफी परेशान होना पड़ता है. जब खरीदार बिल्डर से पैसे वापस मांगने जाता है तो बिल्डर के द्वारा टाल मटोल और कभी-कभी मना कर दिया जाता है.
यहां सवाल यह है कि क्या बिल्डर के दिवालिया होने पर खरीदारों को उनके पैसे वापस नहीं मिलेंगे? किसी भी कंपनी के दिवालिया होने पर सरकार एक अधिकारी नियुक्त करती है. खरीदारों के द्वारा क्लेम किया जाता है.इसमें उनकी पूंजी और ब्याज भी शामिल होता है.जब कंपनी एनसीएलटी में जाती है तो सबसे पहले आई आर पी की नियुक्ति की जाती है. आईआरपी का काम होता है सारे क्लेम को देखकर यह अनुमान लगाना कि कंपनी की देनदारी कितनी है. इसके बाद यह फैसला किया जाता है कि कंपनी को जारी रखा जा सकता है या नहीं. लेकिन अगर यह लगता है कि मुश्किल कार्य है तो प्रोजेक्ट को इंसॉल्वेंसी में डाल दिया जाता है.
कई बार थर्ड कंपनी यानी डेवलपर कंपनी को टेकओवर करते हैं. वे प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए अपना प्रपोजल लाते है. इसमें वह अपनी तरफ से शर्तें भी रखते है. इसमें और भी कई कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करनी पड़ती है. कहने का मतलब यह है कि यह प्रक्रिया इतनी लंबी चलती है कि कई बार घर खरीददार खुद ही मामले से हाथ खींच लेते हैं. पैसा खर्च होता है अलग से. दिमागी परेशानी भी बढ़ती है.
इतना सब कुछ होने के बावजूद भी आपका पैसा वापस मिल जाए, तो आप काफी भाग्यशाली हैं. अन्यथा दिल्ली एनसीआर में हजारों लोग फ्लैट बुक कर पछता रहे हैं. उनका सपना ऐसे बिखर गया है कि उनके लिए घर का ख्वाब एक बुरी हकीकत बनकर रह गया है. इसलिए अगर आप घर खरीदना चाहते हैं तो बिल्डर की विश्वसनीयता और उसके बैकग्राउंड का जरूर पता लगाए. उसके बाद ही फ्लैट बुक करने के बारे में सोचें.