मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार की कैबिनेट ने बहुत से प्रस्तावों को मंजूरी दी है. इनमें आवास नीति के अलावा प्रशासन, स्वास्थ्यसेवा, शिक्षा, विकास इत्यादि शामिल है. राज्य कैबिनेट ने 11 सरकारी मेडिकल कॉलेज में नर्सिंग स्टाफ की भर्ती को भी मंजूरी दी है. इसके अलावा उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर तथा जलपाईगुड़ी व कुछ अन्य जिलों में राजवंशी और कामतापुरी भाषाओं में प्राथमिक शिक्षा शुरू करने की भी मंजूरी दे दी है. लेकिन मुख्यमंत्री और राज्य सरकार के जिस प्रस्ताव को लेकर चर्चा है और आने वाले समय में इस पर प्रदेश की राजनीति गरमा सकती है, वह है गैर आवासीय प्लॉट को हाउसिंग और रियल एस्टेट में कन्वर्ट करना…
सिलीगुड़ी के आसपास कई ऐसी सरकारी जमीनें हैं, जहां पहले उद्योग धंधे लगे थे. लेकिन वर्तमान में यह जगह किसी काम की नहीं रही. उद्योग धंधे बंद हो जाने के बाद इमारत या भवन जर्जर या खंडहर हो चुके हैं. यह जमीन किसी समय उद्योगों के लिए थी. उद्योग धंधे तो कब के बंद हो चुके. लेकिन फैक्ट्री का ढांचा जरूर है, जो अब खंडहर बनती जा रही है या फिर वहां उजाड़ स्थान है.
सिलीगुड़ी से लेकर उत्तर बंगाल तक, समतल और Dooars से लेकर पहाड़ तक, जो जमीन उद्योगों के लिए समर्पित थी, अब ऐसी पुरानी औद्योगिक जमीनों पर हाउसिंग और रियल एस्टेट का बोर्ड लगा देखने को मिल सकता है. ममता बनर्जी की सरकार ने एक प्रस्ताव पारित कर दिया है. सरकार की इस नीति के तहत खाली पड़ी पुरानी औद्योगिक जमीनों को रियल एस्टेट और हाउसिंग में बदला जाएगा.
एक लंबे समय के बाद राज्य सरकार का ध्यान इस ओर गया है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार ने फैसला किया है कि ऐसी सभी जमीनों को रियल एस्टेट और हाउसिंग में बदल दिया जाएगा. हालांकि इसका क्या असर होगा, यह तो पता नहीं है. परंतु सरकार के इस फैसले से सिलीगुड़ी के निकट पहाड़ और चाय बागान इलाकों में हलचल जरूर बढ़ जाएगी.
अभी इस संदर्भ में शहरी विकास और नगर पालिका विभाग के द्वारा कोई गाइडलाइन जारी नहीं किया गया है. उम्मीद की जा रही है कि इस महीने के या अक्टूबर महीने में सरकार निर्देशिका जारी कर सकती है. उसके बाद ही सरकार की नीति पर राजनीतिक गहमा गहमी तेज होगी. हालांकि सरकार की ओर से दावा किया जा रहा है कि यह कदम राज्य में कम उपयोग की जाने वाली जमीन को मुक्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम है.
सूत्रों ने बताया कि दशकों पहले राज्य में खाली पड़ी जमीन में से कई प्लॉट औद्योगिक इकाइयों को कर्मचारियों के लिए आवास के लिए दिए गए थे. तब उस समय सरकार औद्योगिक इकाइयों को जमीन लीज पर देती थी. जो कम से कम 99 साल या उससे ज्यादा समय के लिए होती थी. वर्तमान में ऐसी जमीनों का उपयोग नहीं हो रहा है. या इस जमीन का एक बड़ा हिस्सा अनुपयोगी रह गया है. इसलिए सरकार चाहती है कि ऐसी जमीन का उपयोग हो सके.इसलिए रियल एस्टेट और हाउसिंग के लिए यह समर्पित होगी.
सूत्रों ने बताया कि राज्य सरकार इसके लिए एक फीस निर्धारित करेगी.गाइडलाइंस में विस्तृत जानकारी दी जाएगी. लेकिन संकेत मिल रहे हैं कि फीस के आधार पर ही प्लॉट को बदला जाएगा और उसके बाद सारी प्रक्रिया पूरी की जाएगी. उम्मीद जताई जा रही है कि दिसंबर तक सभी प्रक्रियाएं पूरी कर ली जाएंगी. जहां तक सरकार के इस कदम के राजनीतिक प्रभाव की बात है, लेकिन उससे पहले यह देखना होगा कि भाजपा और दूसरे दल सरकार के इस कदम को किस रूप में लेते हैं और यह भी कि पहाड़ की राजनीति पर इसका क्या असर पड़ने वाला, यह भी देखना होगा.