पश्चिम बंगाल में होने वाले पंचायत चुनाव में हर जिले में केंद्रीय बलों की 1-1 कंपनी तैनात हो सकती है. इससे विपक्षी पार्टियों तथा शांति प्रिय लोगों की चिंता बढ़ गई है. क्योंकि पर्याप्त सुरक्षा सैनिकों की उपस्थिति ना होने से मतदान के दिन हिंसा की पुनरावृति हो सकती है. सूत्र बता रहे हैं कि चुनाव में केंद्रीय बल तैनात तो होंगे लेकिन नाम मात्र ही. क्योंकि राज्य चुनाव आयोग ने प्रत्येक जिले के लिए एक कंपनी केंद्रीय बल का भेजने का अनुरोध किया है.
एक कंपनी में 90 जवान होते हैं. इनमें से 75 जवान ग्राउंड ड्यूटी पर जाएंगे. ऐसा सूत्रों ने बताया.इस स्थिति में निष्पक्ष चुनाव की बात विपक्षी पार्टियों के गले नहीं उतर रही है. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि इतनी कम संख्या में अर्धसैनिक बलों की उपस्थिति से निर्भीक तथा निष्पक्ष मतदान कैसे हो सकता है. राज्य के हर जिले के हर बूथ पर केंद्रीय बलों की तैनाती नहीं हो सकती है. अतः इसके लिए राज्य की पुलिस को भी बूथ पर उतरना होगा. विपक्षी पार्टियों के उम्मीदवारों को राज्य पुलिस पर भरोसा नहीं है.
विपक्षी पार्टियों के नेता और दूसरे संगठन यह उम्मीद कर रहे थे कि राज्य निर्वाचन आयोग हर जिले के लिए दो कंपनी केंद्रीय बलों की केंद्र सरकार से मांग कर सकता है. हालांकि अभी इस संबंध में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं मिली है. परंतु सूत्रों का दावा है कि राज्य निर्वाचन आयोग ने 1-1 कंपनी भेजने का अनुरोध किया है. निर्वाचन केंद्रों पर पुलिस की कमी की भरपाई के लिए महिला कर्मियों को भी उतारा जाएगा.
राज्य में एक ही दिन मतदान होने जा रहा है. ऐसे में पुलिस और सुरक्षा कर्मियों को मतदान केंद्रों पर तैनात करना जरूरी है. राज्य में पुलिस बल की कमी को देखते हुए महिलाओं को मतदान केंद्रों पर चुनावी ड्यूटी लगाने का कार्य सौंपा जा रहा है. पिछली घटनाओं को देखते हुए महिला सुरक्षा कर्मियों की सुरक्षा की चिंता भी बढ़ रही है.
मालूम हो कि कोलकाता हाईकोर्ट ने 15 जून को एक ताजा आदेश में कहा था कि राज्य के सभी जिलों में केंद्रीय बलों की तैनाती की जाए. अदालत ने गृह मंत्रालय को 48 घंटे के भीतर केंद्रीय बल के लिए आवेदन देने का भी आदेश दिया था.उसके बाद आयोग और राज्य हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट गए.मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद आयोग और राज्य सरकार की दोनों याचिकाओं को कोर्ट ने खारिज कर दिया और कोलकाता हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था.