सिलीगुड़ी और उत्तर बंगाल समेत भारत में बिक रही बहुतायत चाय पत्तियों मे मिलावट और खतरनाक रसायनों का प्रयोग बढ़ने से उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर पड़ रहे दुष्प्रभाव को देखते हुए एफ एस एस ए आई ने बाटलिफ कारखानों पर कड़ा अंकुश लगाया है. केंद्रीय उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय ने स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कई रसायनों की एक सूची प्रकाशित की है और चाय उद्योग में उनके उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है.
आपको बता दें कि फैक्ट्री में चाय पत्ती निर्माण के दौरान कई हानिकारक केमिकल अथवा कोई ऐसी दूसरी चीज मिला दी जाती है जिससे सेहत को नुकसान पहुंचता है. हाल ही में टी बोर्ड इंडिया ने मिलावटी चाय पत्ती को लेकर चाय कारखानों और उपभोक्ताओं को सतर्क किया है. रसायनों से रंगी हुई चाय पत्ती बाजार में आम हो गई है.चाय की पत्तियों को तैयार करने में कभी-कभी सिंथेटिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है. ऐसी भी चर्चा है कि चाय की पत्तियों को रंग और चमक देने के लिए बिस्मार्क ब्राउन, पोटेशियम ब्लू, हल्दी, इंडिगो आदि का इस्तेमाल किया जा रहा है. कुल मिलाकर मिलावटी चाय पत्ती का मुद्दा बहुत गंभीर है और स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी खतरनाक है.
टी बोर्ड ने भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण के नियमों का हवाला देते हुए कहा है कि किसी भी उत्पाद को बाहरी रंग और हानिकारक पदार्थों से मुक्त होना चाहिए. कैसे पहचान करें कि आपकी चाय पत्ती मिलावट से रहित है? इसके लिए सीधा नियम यह है कि चाय पत्ती को सूंघ कर उसकी गुणवत्ता की पहचान की जा सकती है. हाथ से तोड़ी हुई पत्तियां अच्छी होती है. क्योंकि इससे वह टूटती नहीं है और उनका आकार बना रहता है. चाय बनाने के बाद यह जरूर जांच कर लें कि चाय का रंग चमकीला, लाल और सुनहरा हो. अगर चाय का रंग गहरा भूरा हो जाए तो समझ ले कि चाय पत्ती सही नहीं है.
बाजार में मिलावटी चाय पत्ती का मामला सामने आने के बाद खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने कड़ा कदम उठाया है. चाय पत्ती की पहचान के लिए फसाई का निर्देश कुछ इस प्रकार से है: आप स्वयं ही अपने घर पर इसकी जांच कर सकते हैं. सबसे पहले एक फिल्टर पेपर ले. उस पर चाय पत्ती फैलाएं. फिल्टर पेपर को गीला करने के लिए थोड़ा पानी डालें. उसके बाद पेपर को नल के पानी के नीचे रखकर धो लें. फिल्टर पेपर पर लगे धब्बों को रोशनी में उल्टा रख कर देखें. बिना मिलावट वाली चाय की पत्तियां फिल्टर पेपर पर कोई दाग नहीं छोड़ती है.जबकि मिलावटी चाय की पत्तियां पेपर पर काले भूरे रंग का दाग छोड़ देती है.
सिलीगुड़ी और उत्तर बंगाल में फसाई के दिशा निर्देश का उत्तर बंगाल के चाय कारखाने विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि वे चाय पत्तियां छोटे किसानों से खरीदते हैं. चाय पत्तियों में क्या रसायन मिलाया जाता है, उन्हें क्या पता होता है. ऐसे में अगर इन चाय पत्तियों को खरीद कर वे कारखाने में ले आते हैं तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? फसाई के दिशा निर्देश के बाद छोटे चाय कारखानों ने लघु चाय किसानो से चाय की कच्ची पत्तियां खरीदना बंद कर दिया है. छोटे चाय उत्पादक किसानों ने भी चेतावनी दी है कि अगर पिछले नियम को बहाल नहीं किया जाता है, तो वे चाय बागान बंद कर देंगे.
आपको बता दें कि जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग, उत्तर दिनाजपुर, कालिमपोंग, कूचबिहार आदि जिलों में लगभग 50000 छोटे चाय किसान तथा 200 से ज्यादा चाय पत्ती कारखाने हैं. इन कारखानों में काम करने वाले हजारों श्रमिकों की रोजी-रोटी चलती है. अगर चाय के कारखाने बंद हो जाए तो हजारों श्रमिकों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट पैदा हो जाएगा. यही कारण है कि जलपाईगुड़ी जिला लघु चाय उत्पादक संघ, उत्तर बंगाल लघु चाय बागान संगठन, आईटीपीए के लघु और न्यू गार्डन फोरम, उत्तर बंगाल लघु और सीमांत चाय उत्पादक संघ, उत्तर दिनाजपुर लघु चाय उत्पादक कल्याण संघ आदि ने मिलकर संयुक्त रूप से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक ज्ञापन भेज कर उचित कदम उठाने की मांग की है.
बाटलिफ के संगठन नॉर्थ बंगाल टी प्रोड्यूसर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय धनौती ने कहा है कि हम फसाई के आदेश का स्वागत करते हैं. हम किसानों को रसायनों के प्रति जागरूक करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. लेकिन हमारे पास कारखाने में आने से पहले कच्ची पत्तियों की जांच करने के लिए कोई तकनीक नहीं है. अगर बाद में कोई समस्या उत्पन्न होती है, तो इससे फैक्ट्री मालिक लाइसेंस रद्द किया जा सकता है. अथवा चाय पत्ती को जब्त किया जा सकता है.ऐसी स्थिति से बचने के लिए केंद्र, राज्य और चाय बोर्ड सभी को मिलकर समस्या का समाधान करना चाहिए.
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