एनजेपी थाने की पुलिस ने नारायणा स्कूल बस के चालक गुरपाल सिंह को गिरफ्तार कर जलपाईगुड़ी कोर्ट में भेजा है. गुरपाल सिंह पर आरोप है कि उसने नशे में स्कूल बस चलाते हुए फुलबाडी ट्राफिक पॉइंट के पास खड़े एक वाहन को जोरदार टक्कर मारी थी. इस हादसे में स्कूल बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी. जबकि दो अन्य वाहन क्षतिग्रस्त हो गए. हालांकि बस में सवार किसी भी बच्चे को चोट नहीं आई. यह घटना सोमवार की है. इस घटना ने सिलीगुड़ी और आसपास में रहने वाले उन माता-पिता व अभिभावकों को एक बार पुनः दहलाकर रख दिया है, जो यह सोचते हैं कि स्कूल बस में उनके बच्चे सुरक्षित रहते हैं.
सूत्रों से जो जानकारी मिल रही है, उसके अनुसार नारायणा स्कूल बस के चालक गुरपाल सिंह ने अपने दोस्तों के साथ दोपहर में शराब पी थी. इसके बाद वह स्कूल बस की गाड़ी लेकर जा रहा था. आश्चर्य की बात है कि गुरपाल सिंह पर स्कूल प्रबंधन ने ध्यान ही नहीं दिया कि उसने शराब भी पी रखी है. नारायण स्कूल प्रबंधन पर हादसे के बाद बच्चों के माता-पिता और स्थानीय लोगों का गुस्सा इसलिए भी भड़का कि जो चालक गाड़ी चला रहा था, एक तो वह खुद नशे में था. दूसरे में उसकी उम्र 70 पार कर चुकी थी. सवाल है कि स्कूल प्रबंधन एक 70 साल के बुजुर्ग व्यक्ति को स्कूल बस चलाने के लिए कैसे रख सकता है! यह तो सरासर नियम और कानून के खिलाफ है.
आपको याद होगा कि कुछ समय पहले ही सिलीगुड़ी के अस्पताल मोड पर भी एक ऐसी ही निजी स्कूल बस दुर्घटनाग्रस्त हुई थी. इस दुर्घटना में एक महिला की मौत हो गई थी. उससे पहले भी सिलीगुड़ी में फुलबाड़ी के नजदीक एक निजी स्कूल बस दुर्घटनाग्रस्त हुई थी. इसमें अनेक बच्चे घायल हुए थे. इस तरह से बार-बार स्कूल बसों के दुर्घटनाग्रस्त होने से स्कूल प्रबंधन और पुलिस की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं. सिलीगुड़ी के अभिभावकों ने फुलबाड़ी स्कूल बस हादसे के लिए स्कूल प्रबंधन और पुलिस को जिम्मेदार ठहराया है.
यह स्पष्ट हो चुका है कि कल के हादसे में स्कूल बस का चालक गुरपाल सिंह नशे में गाड़ी चला रहा था. सवाल यह है कि स्कूल बस चालक कोई एक दिन में ही शराब पीने नहीं लगा होगा. ऐसे में स्कूल प्रबंधन ने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया? क्या स्कूल प्रबंधन ने बच्चों को लाने, ले जाने वाले स्कूल बस चालक की पहले जांच की थी? स्कूल बसों के संचालन के लिए कई दिशा निर्देश और नियम बनाए गए हैं. मुख्य नियमों में से एक नियम यह भी है कि स्कूल बस का चालक शराब पीकर गाड़ी नहीं चलाएगा. वाहन तेज गति से नहीं चलाएगा. लाल बत्ती का उल्लंघन करने पर चालक को साल में दो बार चालान होने पर स्कूल प्रबंधन उसे नियुक्त नहीं कर सकता. इसके अलावा खतरनाक तरीके से वाहन चलाने के कारण साल में एक बार भी चालान होने पर चालक को बस चलाने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
ऐसे और भी कई नियम और निर्देश बस चालकों को स्कूल प्रबंधन की ओर से दिए जाते हैं. कितने निजी स्कूल हैं, जो इन नियमों का पालन चालक करते हैं या नहीं, देखने की कोशिश करते हैं. नारायणा स्कूल प्रबंधन ने एक 70 साल के व्यक्ति को स्कूल बस चलाने के लिए क्यों रखा? सवाल यह भी है कि सिलीगुडी पुलिस निजी स्कूल बसों के चालकों की क्या जांच भी करती है?
सिलीगुड़ी और आसपास के इलाकों में अनेक छोटे बड़े निजी स्कूल हैं. इन स्कूलों में छात्रों को लाने ले जाने के लिए स्कूल प्रबंधन की ओर से वाहनों का प्रबंध किया जाता है. वर्तमान में एक अनुमान के अनुसार सिलीगुड़ी में लगभग 500 छोटे बड़े वाहन स्कूली बच्चों को लाने ले जाने का काम करते हैं. माता-पिता या अभिभावक स्कूल बसों को अधिक सुरक्षित मानते हैं. उन्हें लगता है कि उनके बच्चे स्कूल बसों में सुरक्षित होते हैं. यही कारण है कि बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर वे स्कूल बस की अलग से महंगी फीस देते हैं. इस घटना ने अब अभिभावकों को फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है.
सच्चाई यह है कि सिलीगुड़ी और आसपास में चल रहे अनेक नामी गिरामी स्कूलों में भी स्कूल प्रबंधन की लापरवाही साफ नजर आती है. उन्हें बच्चों की सुरक्षा से ज्यादा स्कूल का खजाना भरने की चिंता रहती है. वे कभी इस पर ध्यान नहीं देते कि स्कूल के दिशा निर्देश, नियमों एवं कानून के पालन की चिंता की जाए! आज भी अधिकांश स्कूल वाहनों में कोर्ट के दिशा निर्देशों का पालन नहीं किया जाता है. जब अभिभावक निजी स्कूलों में बच्चों का दाखिला कराने जाते हैं तो प्रबंधन की ओर से बच्चों की सुरक्षा का भरोसा दिया जाता है
क्या बच्चों की ऐसी सुरक्षा होती है? बिना जांच पड़ताल और छानबीन के बस चालकों के हाथों में बच्चों को सौंप दिया जाता है. जबकि नियमानुसार होना चाहिए कि बस चालकों को नौकरी पर रखने के क्रम में उसका ट्रैक रिकॉर्ड देखा जाना चाहिए. इसके अलावा चालकों की समय-समय पर जांच की जाती है. बहर हाल सिलीगुड़ी के एक चर्चित निजी स्कूल की हकीकत सबके सामने आ चुकी है. पुलिस की कार्य शैली पर भी सवाल उठ रहे हैं. बच्चों के माता-पिता और अभिभावकों को जरूर इस पर पुनर्विचार करना चाहिए और स्कूलों पर दबाव बढ़ाना चाहिए.
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