November 15, 2024
Sevoke Road, Siliguri
जुर्म

ममता बनर्जी का 10 दिन में फांसी देने का कानून कितना सफल हो पाएगा?

आज सिलीगुड़ी और पूरे बंगाल में अपराजिता महिला बाल विधेयक 2024 की खूब चर्चा हो रही है.यह संदेश दिया जा रहा है कि कानून बनने के बाद पश्चिम बंगाल की महिलाएं अधिक सुरक्षित हो सकेंगी. लेकिन इसमें सच्चाई कितनी है? आइए इसकी पडताल करते हैं.

महिलाओं और नाबालिग बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने के लिए समय-समय पर कानून में बदलाव किया गया है. 2012 में निर्भया कांड के बाद कानून में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए. इसके बाद दुष्कर्म के मामलों में फांसी की सजा का प्रावधान किया गया. अब पश्चिम बंगाल सरकार के नए विधेयक में रेप और मर्डर के मामलों की सुनवाई जल्द से जल्द करने और दुष्कर्मी को 10 दिन के भीतर फांसी की सजा सुनाने का प्रावधान है. हालांकि विधेयक में इसका जिक्र नहीं है. यह विधेयक पास भी हो चुका है.

आंकड़ो से पता चलता है कि हर साल जिन मामलों में दोषियों को फांसी होती है, उनमें से ज्यादातर रेप और मर्डर के अपराधी होते हैं. निचली अदालतें अपराधियों को फांसी की सजा तो सुना देती है लेकिन जब तक उस पर हाईकोर्ट की मोहर नहीं लग जाती, तब तक अपराधी को फांसी नहीं दी जा सकती. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 22/2 के तहत सेशन कोर्ट अगर फांसी की सजा सुनाती है तो हाई कोर्ट में जाना जरूरी है. हाई कोर्ट की मोहर लगने के बाद ही दोषी की फांसी की सजा मुकर्रर होती है.

2023 में देश के उच्च न्यायालयों में फांसी की सजा से जुड़े 80 मामले लाए गए थे. इनमें से सिर्फ एक मामले में ही हाई कोर्ट ने फांसी की सजा को बरकरार रखा था. 36 दोषियों की फांसी की सजा को अदालत ने कम कर दिया था.जबकि 36 दोषियों को बाइजत बरी कर दिया था. हाईकोर्ट ने हत्या के दोषी बेलेरी थिपया की फांसी की सजा को ही बरकरार रखा था.

अब सुप्रीम कोर्ट की भी बात कर लेते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा के 11 कैदियों के मामलों पर सुनवाई पूरी की. इनमें से तीन दोषियों की सजा को अदालत ने कम कर दिया. पांच मामलों में 6 दोषियों को अदालत ने बरी कर दिया. जबकि दो दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने फिर से हाई कोर्ट के पास विचार करने के लिए भेजा था.

अगर पिछले 20 साल के रिकॉर्ड को देखें तो रेप और मर्डर के पांच दोषियों को ही फांसी हुई है. 14 अगस्त 2004 को धनंजय चटर्जी को फांसी पर चढ़ाया गया था. उसने 14 साल की बच्ची से दुष्कर्म और उसके बाद हत्या कर दी थी. 20 मार्च 2020 को निर्भया के चार दोषियों को फांसी दी गई थी. निर्भया कांड के 6 दोषी थे. इनमें से एक नाबालिक था. वह 3 साल की सजा काटकर बरी हो गया था. एक दोषी ने आत्महत्या कर ली थी. जबकि चार दोषी फांसी पर चढ़ गए थे. उन्हें तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया गया था.

इन आंकड़ों से पता चलता है कि अदालतों के द्वारा दोषियों को फांसी की सजा तो सुना दी जाती है, परंतु उसे अमल में नहीं लाया जाता. इसमें कोई शक नहीं है कि निचली अदालतें स्थानीय जन भावना के आधार पर फांसी की सजा सुनाती है. लेकिन जब यह मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जाता है तो निचली अदालत के फांसी की सजा को पलट दिया जाता है.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार ने जन भावना को ध्यान में रखते हुए यह विधेयक सामने लाया है, जिसमें रेप और मर्डर मामले में दोषी व्यक्ति को फांसी देने का प्रावधान है. पर सवाल यह है कि फांसी की सजा पर मोहर हाई कोर्ट ही लगाता है. अब तक के अनुभवों और आंकडों से पता चलता है कि निचली अदालतों के द्वारा दी गई फांसी की सजा को हाईकोर्ट ने पलट कर रख दिया. ऐसा भी देखा गया है कि हाई कोर्ट द्वारा दोषी को फांसी की सजा मुकर्रर करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसे पलट कर रख दिया.

ऐसे में ममता बनर्जी की सरकार ने विधेयक तो सामने ला दिया है, कानून भी उस पर बन जाएगा. पर क्या इस कानून का लाभ महिला सुरक्षा के मामले में मिल भी सकेगा? इस पर संदेह ही है. बहरहाल ममता बनर्जी की सरकार ने महिला सुरक्षा को लेकर अपना कमिटमेंट जाहिर किया है, यह अच्छी बात है.

(अस्वीकरण : सभी फ़ोटो सिर्फ खबर में दिए जा रहे तथ्यों को सांकेतिक रूप से दर्शाने के लिए दिए गए है । इन फोटोज का इस खबर से कोई संबंध नहीं है। सभी फोटोज इंटरनेट से लिये गए है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *