दार्जिलिंग पहाड़ के नेताओं का इस समय दिल्ली आना जाना सामान्य सी बात हो गई है. विनय तमांग के कांग्रेस में शामिल होने के बाद पहाड़ में और कौन-कौन से नेता, किस-किस राजनीतिक दल की शरण में जाएंगे, इस पर अभी सस्पेंस है. गुपचुप रूप से जगह बनाने की तैयारी चल रही है. जल्द ही ट्रेलर सामने आने वाला है. उसके बाद पूरी फिल्म भी क्लियर हो जाएगी. पहाड के छोटे बड़े नेता गाय की पूंछ पकड़कर वैतरणी पार करना चाहते हैं…
अगर पूरे बंगाल में किसी एक सीट की बात हो रही है तो वह है दार्जिलिंग लोकसभा सीट,जहां लगभग 15 सालों से बीजेपी का कब्जा है. तृणमूल कांग्रेस बीजेपी से यह सीट छीनने के लिए सभी तरह की रणनीति अपना रही है. जैसे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का पारिवारिक गोरखा रिश्ता कनेक्शन के अलावा जीटीए को दिल खोल कर खजाना बांटना इत्यादि शामिल है. दूसरी तरफ कांग्रेस ने विनय तमांग को तो पहले ही पार्टी में शामिल कर लिया है. अब उसकी नजर अजय एडवर्ड जैसे नेताओं पर टिकी है.
मन घीसिंग की पार्टी तो भाजपा के संपर्क में बराबर रही है. भाजपा प्रेम के चलते मन घीसिंग ने हाल ही में पार्टी के एक नेता को बाहर का रास्ता दिखा दिया, जो दिल्ली में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के साथ बैठक में विनय तमांग के साथ शामिल हुआ था. अब मन घीसिंग को लेकर राजू विष्ट अमित शाह के दरबार में पहुंचे हैं. कहने के लिए तो मन घीसिंग, राजू बिष्ट और अमित शाह की यह औपचारिक मुलाकात है. परंतु इसके मायने राजनीतिक गलियारो में निकाले जा रहे हैं.
मन घीसिंग ने कहा है कि भाजपा के एजेंडे में 11 जनजातियों का स्थाई राजनीतिक समाधान रहा है. भाजपा ने अभी तक अपना वादा पूरा नहीं किया है.इसलिए भाजपा को स्मरण दिलाने के लिए दिल्ली गए थे. मन घीसिंग यह भी कहते हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पूरा भरोसा है. वह राजू बिष्ट की भी काफी तारीफ करते हैं.उनके 5 साल के कार्यकाल को भी अच्छा बताते हैं. जानकार मानते हैं कि मन घीसिंग अपनी राजनीतिक भूमि तलाश करने के लिए अमित शाह के दरबार में गए थे.
इन दिनों पहाड़ में क्षेत्रीय दलों के नेता किसी न किसी राष्ट्रीय अथवा प्रमुख राजनीतिक दल से संपर्क बनाने की फिराक में है. पिछले कुछ दिनों से घटनाएं तेजी से बदल रही हैं. हर नेता किसी बड़ी पार्टी के सहारे ही अपनी पैठ जमाना चाहता है. दार्जिलिंग लोकसभा सीट के लिए भाजपा, तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस आदि राजनीतिक दल किसको टिकट देते है, यह तो बाद की बात रही, लेकिन उससे पहले पहाड़ के क्षेत्रीय दलों के नेता आपस में नहीं बटकर किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़कर ही अपनी आकांक्षा पूरी करना चाहते हैं.
आने वाले समय में पहाड़ के और छोटे-छोटे दलों तथा संगठनों के नेता इधर से उधर होंगे. फिलहाल वे ताक झांक कर रहे हैं और अपने लिए मुनासिब अवसर का इंतजार कर रहे हैं. जैसे ही विभिन्न दलों की ओर से दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार घोषित किए जाएंगे, उस समय पहाड़ के क्षेत्रीय दलों के नेताओं का इधर से उधर चले जाने का राजनीतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे हैं.
अब देखना है कि पहाड़ के और कौन से नेता दिल्ली जाते हैं और किस राजनीतिक दल के नेता से मिलते हैं. लेकिन इतना तो तय है कि जब तक उनकी दाल गलेगी नहीं, तब तक वह किसी भी दल में नहीं जाएंगे. कुछ नेता तो बयान बहादुर हैं. उनकी कोशिश यह रहती है कि किसी बड़े राजनीतिक दल से जितना संभव हो, अपनी जेब भर लिया जाए. बहर हाल जल्द ही पहाड़ से कुछ नया समाचार हाथ लग सकता है.