आमतौर पर गुनाह करने के बाद अपराधी को अपने किए पर अफसोस होता है. अगर गुनाह करने से पहले व्यक्ति आत्म चिंतन करने लगे तो वह गुनाह कर ही नहीं सकता.लेकिन अपराधी तो वह होते हैं जो अपराध करने से पहले आत्म चिंतन नहीं करते. लेकिन जब वह अपनों से दूर और अजनबियों के बीच पुलिस अथवा जेल में जाते हैं तब उन्हें अपने किए पर प्रायश्चित होता है. माटीगाड़ा के चर्चित स्कूली बालिका हत्याकांड में गिरफ्तार हत्यारोपी मोहम्मद अब्बास ने सिलीगुड़ी सब डिविजनल कोर्ट में जज के सामने अपने बॉडी लैंग्वेज तथा बयान से संकेत दिया कि उसने गुनाह किया है. इसलिए वह सजा का भी हकदार है. लेकिन वह अपने घर वालों से मिलना चाहता है…
आज पहली बार मोहम्मद अब्बास ने कोर्ट और जज का सामना किया और उनकी ओर देखा जो उसको ऐसे घूर रहे थे जैसे वह कोई विचित्र मानव हो. अदालत के अंदर और अदालत के बाहर सुरक्षा कड़ी थी. ठीक उसी तरह से जैसे किसी सेलिब्रिटी की सुरक्षा व्यवस्था पुलिस करती है.अब तक मोहम्मद अब्बास ने किसी से कुछ नहीं कहा. लेकिन आज अदालत में अपने मां बाप को याद करने से खुद को रोक नहीं सका. मां बाप ने तो उसे अच्छा रास्ता दिखाया था लेकिन वह उनके बताए रास्ते पर चला ही कहां! शायद अपने मां-बाप से मिलकर मोहम्मद अब्बास एक और प्रायश्चित करना चाहता है कि मां-बाप सही होते हैं और जो मां-बाप का कहना नहीं मानता वह बेटा नालायक होता है. शायद यही कुछ उसके मन में है.
मोहम्मद अब्बास का केस कोई भी वकील लड़ना नहीं चाहता है. सिलीगुड़ी बार एसोसिएशन ने पहले ही मना कर दिया. लेकिन बगैर वकील के अपराधी को अदालत में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता. क्योंकि इंसाफ बराबर का होना चाहिए. संविधान और कानून यही कहता है. अगर अपराधी सक्षम नहीं है तो अदालत उसके लिए वकील की व्यवस्था करती है. यह एक संवैधानिक प्रक्रिया है जिसका पालन कानून को करना होता है. अदालत ने वही किया जो उसे करना ही था. मोहम्मद अब्बास को जमानत तो मिलनी नहीं थी और कानून के अनुसार उसे पुलिस हिरासत में भी नहीं दिया जा सकता था. क्योंकि पुलिस हिरासत में मोहम्मद अब्बास 14 दिन बिता चुका है. किसी भी आरोपी को 14 दिन से अधिक पुलिस हिरासत में नहीं रखा जा सकता. लिहाजा अदालत ने मोहम्मद अब्बास को 14 दिनों के लिए न्यायिक किरासत में जेल भेज दिया.
19 सितंबर को इस हत्याकांड के मुकदमे की अगली सुनवाई होगी. इस बीच पुलिस को चार्जशीट तैयार करके अदालत में प्रस्तुत करना होगा, ताकि न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाई जा सके और अदालत आरोपी के खिलाफ सबूत और साक्ष्य पर विचार करते हुए सजा पर तज्वीज कर सके. माटीगाड़ा पुलिस ने बालिका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट तथा साक्ष्य एवं सबूत के आधार पर आरोपी के खिलाफ पोक्सो 6, भारतीय दंड विधान की धारा 302 और 376 के तहत मामला दर्ज किया है. इन दफाओं के द्वारा पता चलता है कि पुलिस ने भी निष्पक्ष होकर अपनी ड्यूटी पूरी की है. मोहम्मद अब्बास ने संगीन जुर्म किया है. पुलिस ने उसके खिलाफ हत्या और बलात्कार का मामला दर्ज कर उसे आजीवन कारावास तथा फांसी तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त किया है.
आज जैसे ही मोहम्मद अब्बास को सिलीगुड़ी अदालत में पुलिस ने प्रस्तुत किया तो उसका बाडी लैंग्वेज देखकर किसी निष्कर्ष पर तो नहीं पहुंचा जा सकता. लेकिन जिस तरह से सिलीगुड़ी बार एसोसिएशन ने उसके पक्ष में वकील देने से हाथ खड़ा कर दिया, उसे समझ में आ चुका है कि अब उसके गुनाहों को माफ नहीं किया जा सकता. उसे यह एहसास हो चुका है कि अब सारी जिंदगी सलाखों में ही बीतेगी या फिर उसकी जिंदगी की डोर अब कटने को तैयार है. कदाचित मोहम्मद अब्बास ने सोचा नहीं होगा कि आज उसे यह दिन देखने होंगे. किसी विद्वान व्यक्ति ने कहा है कि नशा-शराब का रास्ता गुनाहों में खुलता है. गुनाह का रास्ता जेल ले जाता है. जेल के बाद जिंदगी का सफर खत्म हो जाता है. मोहम्मद अब्बास पर यह पूरी तरह फिट बैठती है.
आपको बताते चलें कि मोहम्मद अब्बास ने दार्जिलिंग मोड़ के पास एक विद्यालय में पढ़ने वाली बालिका के साथ दोस्ती कर ली थी. वह ठीक समय पर स्कूल के आसपास साइकिल से पहुंच जाता और जैसे ही स्कूल की छुट्टी होती, मोहम्मद अब्बास बालिका को अपनी साइकिल पर बैठाकर उसके घर छोड़ने चला जाता था. दोनों माटीगाड़ा के अलग-अलग इलाके में रहते थे. घटना के दिन मोहम्मद अब्बास ने वही किया. लेकिन उस दिन उसके इरादे नेक नहीं थे. वह बालिका को अपनी साइकिल पर बैठाकर एक सुनसान जगह पर ले गया, जहां वह उसके साथ दुष्कर्म करने की कोशिश करते हुए उसे मार डाला और घर में जाकर छिप गया. माटीगाड़ा पुलिस तथा स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने जहां से आरोपी को गिरफ्तार किया था.