कालिमपोंग के एक व्यापारी को किसी ने वीडियो कॉल करके कहा, मैं थाना प्रभारी विकास बोल रहा हूं. आपके नाम से एक पार्सल आया है. लेकिन उसमें आपत्तिजनक चीज पाई गई है. आप खतरे में हैं. पार्सल को उच्च स्तरीय जांच के लिए हैदराबाद भेजा जा रहा है. इससे आपकी मुश्किल और बढ़ सकती है. व्यापारी घबरा गया. वीडियो कॉल में स्पष्ट रूप से पुलिस स्टेशन का नजारा दिख रहा था. वह बोला, सर लेकिन मैं क्या कर सकता हूं. मैं पार्सल भेजने वाले को व्यक्ति को जानता तक नहीं हूं.
पुलिस अधिकारी ने कहा, लेकिन इसमें आप फंस सकते हैं. मामला अंतरराष्ट्रीय है. इसलिए पुलिस और जांच एजेंसियां आपसे पूछताछ कर सकती हैं. अगर आप इन सबसे बचना चाहते हैं तो हमारे आदमी आपको फोन करके बताएंगे. अन्यथा मैं आपकी फाइल बनाकर भेज दूंगा. इससे व्यापारी और घबरा गया. दूसरी ओर से तथाकथित पुलिस अधिकारी ने व्यापारी को इस हालत में ला दिया कि वह इस बारे में किसी से बात भी नहीं कर सकता था. वह अपने ही घर में कैद होकर रह गया. सिक्किम की राजधानी गंगटोक में भी एक व्यक्ति के साथ कुछ दिन पहले ऐसा ही हादसा हुआ है. डेढ़ लाख रुपए डिजिटल भुगतान के बाद वह व्यक्ति लुटेरों के चंगुल से मुक्त हुआ है. हालांकि इसकी रिपोर्ट किसी भी थाने में दर्ज नहीं कराई गई है.
अगर आपके साथ भी कुछ इसी तरह की घटनाएं घट रही हैं तो सावधान हो जाएं. क्योंकि यह संगठित साइबर अपराधियों द्वारा लूट का एक अनोखा तरीका है, जिसे डिजिटल अरेस्ट नाम दिया गया है. इसके अंतर्गत साइबर अपराधी खुद को पुलिस, सीबीआई, ईडी, नारकोटिक्स डिपार्टमेंट, बैंक अथवा अन्य कानूनी एजेंसियों के अधिकारी बताकर शिकार को फंसा लेते हैं. अगर आप इनके बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं रखते हैं तो आपके फ॔सने के पूरे चांस रहते हैं. यह आपको मौका भी नहीं देते कि आप यह बात अपने दोस्त और रिश्तेदारों को बता सकें. जब आप लुट जाते हैं तभी आपके लूटे जाने की जानकारी आपको और संगी साथियों को होती है. सूत्रों ने बताया कि कालिमपोंग और गंगटोक में भी इस तरह की छोटी वारदातें हो चुकी है.
विशेषज्ञ बताते हैं कि वीडियो कॉल में बैकग्राउंड को किसी पुलिस स्टेशन की तरह बना लिया जाता है. यह व्यक्ति पर प्रभाव और विश्वास जमाने के लिए किया जाता है. शिकार को कहा जाता है कि आपके ऊपर मुकदमा दर्ज किया जा रहा है. शिकार को उसके ही घर में वीडियो कॉलिंग के जरिए बंधक बना लिया जाता है. साइबर ठगो द्वारा व्यक्ति को 24 घंटे उनके संपर्क में रहने के लिए सर्विलेंस पर फोन अथवा वेबसाइट के जरिए नजर रखे जाने की बात कही जाती है. आप इस दौरान किसी से सहयोग भी नहीं ले सकते. क्योंकि वह आपको वीडियो कॉल से हटने नहीं देते हैं. व्यक्ति यही सोचता है कि बदनामी और जेल जाने से बचने के लिए यही जरूरी है कि उनकी बात मान ली जाए. केस को दफा दफा करने के लिए साइबर अपराधी पीड़ित व्यक्ति के साथ सौदा करते हैं. रकम मिलने के बाद ही पीड़ित व्यक्ति मुक्त होता है.
डिजिटल अरेस्ट में साइबर अपराधियों की एक पूरी टीम काम करती है. किसी मालदार आसामी को फंसाने के बाद टीम का दूसरा व्यक्ति ब्लैकमेल करता है. फोन और वीडियो कॉल से आपका संपर्क तब तक बना रहता है, जब तक कि आप उनके हिसाब से प्रक्रिया को पूरा नहीं कर देते. प्रक्रिया को पूरा करने का मतलब यह है कि आपकी जेब पर डाका डाला गया है. देश भर में इस तरह की कई शिकायतें नेशनल साइबर क्राईम रिर्पोटिंग पोर्टल को प्राप्त हुई हैं. इसके बाद गृह मंत्रालय और जांच एजेंसियां रोकथाम की दिशा में सक्रिय हो गई हैं. इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर ने डिजिटल अरेस्ट धोखाधड़ी से जुड़ी 1000 स्काइप आईडी को माइक्रोसॉफ्ट के सहयोग से ब्लॉक कर दिया है.
विशेषज्ञों ने बताया कि साइबर अपराधियों द्वारा अनोखी लूट की घटना में सर्वप्रथम पीड़ित व्यक्ति को स्काइप के माध्यम से निगरानी में रखा जाता है और ठगी करने के बाद ही उसे मुक्त किया जाता है. भारतीय दूरसंचार विभाग ने भी आम जनता को साइबर अपराधी द्वारा ठगी के अनोखे तरीके से बचने की हिदायत दी है. बताया जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिंडिकेट द्वारा इसे चलाया जा रहा है. इन घटनाओं से निपटने के लिए भारत सरकार विभिन्न जांच एजेंसियों की मदद ले रही है. इसके अलावा राज्यों की पुलिस को भी ऐसे मामलों की जांच के लिए जरूरी तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं. लेकिन ऐसे मामले तभी रुकेंगे जब तक कि लोग जागरुक नहीं होते हैं.
अगर आपके पास कुछ इसी तरह के वीडियो कॉल सामने आते हैं, तो डरे नहीं और साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 पर कॉल करें.
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