हाम्रो पार्टी के संस्थापक अजय एडवर्ड के बारे में एक समय यह कहा जाता था कि वह दिल्ली के दूसरे अरविंद केजरीवाल है.जिस तूफानी रफ्तार से नवंबर 2021 में अजय एडवर्ड ने हाम्रो पार्टी के साथ पहाड़ की राजनीति में कदम रखा और पहाड़ ने उन्हें हाथों-हाथ लिया, उसी समय यह लगने लगा था कि अजय एडवर्ड राजनीति में अरविंद केजरीवाल साबित होंगे. जब दार्जिलिंग नगरपालिका का चुनाव हुआ, तब हाम्रो पार्टी को सबसे अधिक सीटें दिलाकर उन्होंने अपनी योग्यता और प्रतिभा भी सिद्ध कर दी थी.
लेकिन आज वक्त के थपेड़ों ने हाम्रो पार्टी और हाम्रो पार्टी के नेता अजय एडवर्ड की राजनीतिक ताकत को कहीं ना कहीं कमजोर भी किया है. पहाड़ की राजनीति में भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा का दबदबा बरकरार है. हालांकि अनित थापा की लोकप्रियता में कुछ गिरावट जरूर आई है. पहाड़ में दूसरे छोटे दलों में भी बिखराव दिख रहा है. सबसे ज्यादा नुकसान हाम्रो पार्टी को हुआ है. कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं और दूसरे दल में भी शामिल हो चुके हैं. अजय एडवर्ड अच्छी तरह समझते हैं कि उनकी पार्टी कमजोर ही नहीं हुई है बल्कि उसका वजूद भी खतरे में है. ऐसे में उन्हें कुछ नया रास्ता तलाश करने की जरूरत भी थी.
बहुत सोच समझ कर और पूरी रणनीति के साथ अजय एडवर्ड एक बार फिर से एक नई पार्टी के द्वारा पहाड़ की राजनीति में अपनी बादशाहत सिद्ध करने की कोशिश में जुट गए हैं. जानकार मानते हैं कि 2026 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अजय एडवर्ड अपना राजनीतिक हित साधना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने पूरी तैयारी शुरू कर दी है. बीच के वर्षों में उन्होंने राजनीति में अपनी गलतियों से बहुत कुछ सीखा और खुद को मजबूत भी किया है. जनता का विश्वास जीतने के लिए उन्होंने अपने खुद के पैसों से बाढ़ पीड़ितों की मदद की. बलुआ बास में पुल बनवाया और विकास के अन्य कार्य किये, जिसका उन्हें लाभ भी मिला है.
पहाड़ में क्षेत्रीय संगठनों की राजनीति गोरखालैंड पर आधारित होती है. गोरखालैंड की बात कहने वाली पार्टियों को पहाड़ का सेंटीमेंट और समर्थन मिलता है. इस बात को लगभग सभी राजनीतिक दल स्वीकार करते हैं. अजय एडवर्ड पहले भी सुभाष घीसिंग के पक्ष में बागडोगरा हवाई अड्डे के नामकरण के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं और इसके जरिए पहाड़ी जनमानस को अपनी ओर आकर्षित भी कर चुके हैं. बीच की अवधि में उन्होंने खुद को मजबूत बनाने की कोशिश भी की है. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार 22 दिसंबर को दार्जिलिंग में जिस नई पार्टी का एलान किया जाना है, वह पार्टी पहाड़ की आकांक्षा और इच्छा की धुरी बनकर सामने आ सकती है.
राज्य सरकार के मंत्री फिरहाद हकीम पहाड़ में कालिमपोंग, मिरिक और कर्सियांग पालिकाओं के चुनाव शीघ्र कराए जाने की बात कर चुके हैं. उससे पहले दार्जिलिंग में अजय एडवर्ड के नेतृत्व में 22 दिसंबर को एक राजनीतिक अखाड़ा होने जा रहा है. जिसके सामने कई चुनौतियां भी होगी. कयास लगाया जा रहा है कि अजय एडवर्ड एक तरफ अपनी पार्टी हाम्रो पार्टी को नई पार्टी में विलय करेंगे, तो दूसरी तरफ पहाड़ के क्षेत्रीय दलों के अनेक नेताओं को नई पार्टी में स्वागत करेंगे. ऐसी चर्चा है कि भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा, गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट, गोरखा जन मुक्ति मोर्चा, टीएमसी, बीजेपी, कांग्रेस आदि क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों से कई नेता अजय एडवर्ड के नेतृत्व में एकजुट हो सकते हैं.
अब सबकी निगाहें 22 दिसंबर पर टिकी है. इस राजनीतिक समावेश को सफल बनाने के लिए अजय एडवर्ड पूरी तैयारी में जुट गए हैं. दूसरे दलों में सेंध लगाने की भी कोशिश चल रही है. अजय एडवर्ड की रणनीति और राजनीति को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि जनाब बदले बदले नजर आ रहे हैं. अब देखना होगा कि पहाड़ का जनमानस बदले बदले जनाब को किस रूप में देखता है. जल्द ही यह भी पता चल जाएगा कि अजय एडवर्ड पहाड़ की राजनीति में नई पार्टी की बादशाहत कायम कर पाते हैं या नहीं. विधानसभा चुनाव से पहले नगर पालिकाओं के चुनाव होंगे. उसी समय पता चल जाएगा कि अजय एडवर्ड राजनीति के कितने धुरंधर खिलाड़ी हैं और उन्होंने चुनाव जीतने के लिए खुद में क्या बदलाव किया है.
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