केंद्र सरकार ने नो डिटेंशन पॉलिसी खत्म कर दी है. इससे कमजोर बच्चे घबराए हुए हैं. हालांकि अभिभावकों की मिली जुली प्रतिक्रिया सामने आ रही है. पहले यह मानसिकता थी कि बच्चे पढें या नहीं, उन्हें पास कर दिया जाता था यानी अगली कक्षा के लिए प्रमोट कर दिया जाता था. परंतु अब ऐसा नहीं होगा. पांचवी और आठवीं कक्षा में फेल हुए तो फेल. हालांकि फेल बच्चों को एक मौका दिया जाएगा. 2 महीने के दौरान फेल बच्चों के लिए परीक्षा होगी. अगर इसमें भी वे पास नहीं करते हैं तो उनको अगली कक्षा में नहीं भेजा जाएगा.
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय का यह फैसला कितना सटीक है, यह तो अध्ययन के बाद पता चलेगा. परंतु अधिकांश माता पिता यही चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ाई में मेहनत करें और पढ़ें. उन्होंने कहा कि बच्चों को स्कूल भेजते हुए माता-पिता की यही उम्मीद रहती है कि उनके बच्चे पढ़ाई करें और परीक्षा अच्छे से उत्तीर्ण करें. मौजूदा सिस्टम यह है कि बच्चे पढ़े या ना पढे, उन्हें विद्यालय की ओर से अगली कक्षा के लिए प्रमोट कर दिया जाता है. इससे बच्चों में मेहनत करने की प्रवृत्ति खत्म हो जाती है. हालांकि इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि आठवीं कक्षा तक किसी भी बच्चे को स्कूल से नहीं निकाल जाए.
इसका तात्पर्य है कि बच्चे पढ़ाई करें और अपनी क्षमता का विकास करें. शिक्षा मंत्रालय में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव संजय कुमार के जारी बयान और मंत्रालय के फैसले को लेकर सिलीगुड़ी के कई माता-पिता से उनकी राय जानने की कोशिश की गई. उन्होंने बच्चों के भविष्य के लिए इसे अच्छा बताया और कहा कि इससे बच्चों में पढ़ाई के प्रति मेहनत करने की प्रवृत्ति बढ़ेगी. कुछ पैरंट्स ने बताया कि बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर काफी पैसे खर्च होते हैं.माता-पिता को अपने बच्चों से अपेक्षा रहती है कि उनके बच्चे पढ़ाई में अवाल आए. सरकार को यह कदम पहले ही उठा लेना चाहिए था.
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के स्कूल शिक्षा विभाग ने इस संबंध में एक अधिसूचना सूचना जारी कर दी है. इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 38 की उप धारा 2 के खंड (च) (क)द्वारा प्रदत शक्तियों का प्रयोग करते हुए निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियम 2010 का और संशोधन करने के लिए नियम बनाती है. इन नियमों का संक्षिप्त नाम निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियम 2024 है.
संशोधित नियम के अनुसार राज्य प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष के अंत में कक्षा 5 और 8 में नियमित परीक्षाएं आयोजित कर सकते हैं. अगर कोई छात्र फेल होता है तो उसे अतिरिक्त निर्देश दिया जाएगा और दो महीने बाद परीक्षा में फिर से बैठने का मौका दिया जाएगा. लेकिन इसके बावजूद छात्र परीक्षा में सफल नहीं होते हैं, तो उन्हें प्रमोट नहीं किया जाएगा. छात्रों को डिटेन करने का केंद्र सरकार का यह फैसला सरकार के लगभग 3000 स्कूलों में लागू होगा, जिसका प्रभाव हजारों छात्रों पर पड़ना तय है.
केंद्र शासित प्रदेशों में केंद्र सरकार का यह नियम तत्काल प्रभाव से लागू होगा. बंगाल सरकार केंद्र सरकार के इस फैसले अथवा नियम को लागू करेगी या नहीं, यह राज्य सरकार पर निर्भर करता है. सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ एजूकेशन की एक मीटिंग में गीता भूकल कमेटी की रिपोर्ट को पेश किया गया था. 2015 में यह मीटिंग हुई थी. स्मृति ईरानी कैप की मीटिंग की अध्यक्षता कर रही थी. उन्होंने साफ कर दिया था कि हम छात्रों को डिटेन नहीं करेंगे.
अधिकतर राज्य चाहते थे कि नो डिटेंशन पॉलिसी वापस हो. नो डिटेंशन पॉलिसी खत्म करने का विरोध करने वाले राज्यों में केरल, दिल्ली, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल भी शामिल थे. पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ने इसका पुरजोर विरोध किया था. उन्होंने कहा था कि अगर हम नो डिटेंशन करेंगे तब इसका यह मायने निकाला जाएगा कि आठवीं तक के छात्रों को फेल नहीं किया जाएगा.
सिलीगुड़ी के कुछ अभिभावकों ने बताया कि आठवीं के बच्चों को फेल करने की पॉलिसी ठीक है. इससे छात्रों को पता चल जाएगा कि वह कितने सक्षम हैं. साथ ही शिक्षकों की भी जिम्मेदारी बढ़ेगी. क्योंकि उनके पढाने के बावजूद बच्चे आठवीं में क्यों फेल हो रहे हैं, यह उनसे अभिभावक पूछ सकते हैं. शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार यह अधिसूचना केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और सैनिक स्कूलों समेत केंद्र सरकार द्वारा संचालित 3000 से अधिक स्कूलों पर लागू होगी.
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