पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर बंगाल में अपना परचम लहराया था. उत्तर बंगाल की आठ लोकसभा सीटों में से भाजपा ने सात लोकसभा सीटों पर विजय हासिल की थी. लेकिन क्या इस बार भी ऐसा ही होने जा रहा है? इस प्रश्न का सही-सही उत्तर दे पाना आसान नहीं है. संभवतः 13 मार्च को भारतीय चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव की घोषणा करने जा रहा है. उससे पहले ही बंगाल में विभिन्न दलों की ओर से चुनाव प्रचार और उम्मीदवार उतारने का सिलसिला तेज हो गया है.
भाजपा ने बंगाल में अपने अधिकांश उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है. उत्तर बंगाल की कुछ प्रमुख सीटों के लिए भाजपा द्वारा घोषित प्रार्थियों की सूची में अलीपुरद्वार के मौजूदा सांसद जान बारला, जो कि एक केंद्रीय मंत्री भी हैं, का टिकट कट गया है. उनकी जगह मनोज टिगा को भाजपा का उम्मीदवार बनाया गया है. इससे जान बारला नाराज बताए जा रहे हैं. जब भाजपा के उम्मीदवार के रूप में मनोज टिगा उनका आशीर्वाद लेने पहुंचे, तो जान बारला ने उन्हें फटकार दिया और कहा कि नाम वापस लेने तक वह उनका समर्थन नहीं कर सकते हैं. भाजपा के द्वारा उम्मीदवारों की सूची घोषित करने और सूची में जान बारला का पत्ता कटने के बाद से ही जान बारला का ब्रेन वाश टीएमसी करने में जुट गई है.
तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रकाश चिक बराईक जॉन बारला को अपनी ओर खींचने में जुट गए हैं. उन्होंने कहा कि जॉन बारला के साथ भाजपा ने अन्याय किया है. उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि एक वर्तमान केंद्रीय मंत्री का टिकट काटकर भाजपा ने अच्छा संकेत नहीं दिया है. सूत्र बता रहे हैं कि तृणमूल कांग्रेस के कुछ बड़े नेता जॉन बारला के संपर्क में है. लेकिन जॉन बारला ने अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वह भाजपा से अलग हो रहे हैं. लेकिन टिकट कटने का उन्हें दुख जरूर है. इसकी झलक मनोज टीगा के साथ उनकी बातचीत का वायरल वीडियो है.
देखा जाए तो अलीपुर द्वार संसदीय सीट RSP के पास रही है. 2009 के बाद इस सीट पर भाजपा की ताकत बढ़ने लगी. 2009 के चुनाव में आरएसपी के मनोहर तिर्की ने टीएमसी के पवन कुमार लकड़ा को हराया था. 2019 के चुनाव में भाजपा ने इस सीट को जीतने के लिए जॉन बारला को मैदान में उतारा और जॉन बारला ने जीत हासिल की. उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया गया. अब अपना टिकट कटने से जॉन बारला ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लिया है. अगर जॉन बरला इधर से उधर होते हैं तो अलीपुरद्वार के साथ-साथ जलपाईगुड़ी सीट पर भी असर पड़ सकता है. इसके अलावा उत्तर बंगाल की अन्य सीटों पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा.
भारतीय जनता पार्टी की ओर से अधिकांश उम्मीदवारों की घोषणा हो चुकी है. जबकि तृणमूल कांग्रेस ने अभी तक अपने उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारे हैं.शायद वह इस इंतजार में है कि भाजपा के कुछ नेता टिकट न मिलने से बगावती रुख अपना सके और तृणमूल कांग्रेस उन्हें अपना टिकट दे सके. क्या पता कि जॉन बारला अगर नहीं माने तो तृणमूल कांग्रेस में शामिल होकर अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर सकें. अगर ऐसा हुआ तो उत्तर बंगाल में भाजपा का खेल बिगड़ सकता है. अब अनंत महाराज की बात कर लेते हैं, जो केंद्र में भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं. सूत्र बता रहे हैं कि अनंत महाराज भाजपा से काफी नाराज है और उन्होंने अपना बागी तेवर अपना लिया है.
अनंत महाराज कई बार पार्टी में अपनी उपेक्षा का आरोप लगा चुके हैं. एक बार उन्होंने कहा था कि भाजपा ने उन्हें डस्टबिन बना दिया है.अनंत महाराज भाजपा में इसलिए आए थे कि उन्हें लग रहा था कि भाजपा उत्तर बंगाल में अलग राज्य की उनकी मांग का समर्थन करते हुए इसकी घोषणा कर देगी. अब अनंत महाराज कह रहे हैं कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बता दिया है कि उत्तर बंगाल केंद्र शासित प्रदेश नहीं बनने जा रहा है. अगर अनंत महाराज को भी भाजपा ने मनाने में देरी की तो इसका असर कूचबिहार की लोकसभा सीट पर भी पड़ सकता है, जहां से भाजपा उम्मीदवार निशित प्रमाणिक मैदान में हैं. अनंत महाराज ग्रेटर कूचबिहार पीपल्स एसोसिएशन के नेता रहे हैं. उनके समर्थकों की संख्या पूरे उत्तर बंगाल में है. कहा यह भी जा रहा है कि निशित प्रमाणिक की जीत में उनके समर्थकों का बहुत बड़ा हाथ रहा है.
इस तरह से देखा जाए तो उत्तर बंगाल में भाजपा के इन बडे नेताओं का बगावती रुख ऐसा ही जारी रहा तो पार्टी को लोकसभा चुनाव में बड़ा नुकसान हो सकता है. हालांकि पार्टी इससे अनजान या बेखबर नहीं है. सूत्रों ने बताया कि भाजपा की रणनीति ऐसी होगी कि किसी को भी नाराज नहीं किया जाए. इसलिए इस बात की संभावना भी है कि भाजपा अंतिम समय में अपनी रणनीति में बदलाव ला सकती है. जैसा कि आसनसोल में पवन सिंह के द्वारा चुनाव लड़ने से इनकार करने पर भाजपा ने अपनी रणनीति में बदलाव का फैसला किया है. बहरहाल यह देखना होगा कि भाजपा अपने ही लोगों से निबटने में क्या रणनीति तैयार करती है!
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