सिलीगुड़ी: देश के सपेरे बेरोजगारी की मार को झेल रहें हैं एक समय ऐसा था जब एक सपेरा अपने पिटारे में तरह- तरह के साँपों को रखता था और बीन बजा कर उन साँपों को नाचता था, लेकिन अब वह सारी बातें यादें बन गई है | अब बात करते हैं कुछ पुरानी, देश की आजादी के 76 वर्ष बीत चुकें हैं और आजादी के इन 76 वर्षों में देश ने बहुत उतार-चढ़ाव को देखा | अब समय के साथ-साथ देश ने भी आधुनिकता का चोला पहन लिया है अब देश दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है, जहां शिक्षा को लेकर देश में काफी बढ़ोतरी हुई है तो टेक्नोलॉजी ने भी नए इतिहास के झंडे गाड़ दिए हैं, लेकिन इस टेक्नोलॉजी की क्रांति में सपेरे बेरोजगार हो चुके हैं | यह वही सपेरे हैं जो आजादी के पहले और आजादी के कुछ वर्षों तक सांप के खेल को दिखाकर अपनी रोजी-रोटी चल रहे थे, आजादी के बाद का एक दौर ऐसा भी था जब विदेशी हमारे देश में आते थे, तो वे सांप के खेल को देखकर चौंक जाते थे और इसका काफी आनंद भी उठाते थे, विदेश में भारत की छवि कुछ इस तरह की बन गई थी कि, मानो भारतीय सिर्फ सांप ही नाचते हो, लेकिन अब उस बात के बरसों बीत चुके हैं | अब भारत में सांप खेल दिखाना कानूनी जुर्म है |
सरकार द्वारा सांप पालन में प्रतिबंध लगाने के पश्चात सपेरे बेरोजगार हो गए हैं | आज हमारे प्रतिनिधि की मुलाकात एक ऐसे सपेरे से हुई जो कामाख्या मंदिर से वापस लौट रहे थे | जब उन्होंने सपेरे से सवाल जवाब किए तो सपेरे ने ,बेफिक्री से मुस्कुराते हुए जवाब दिए, जिन्हें सुनकर यह पता चला कि, सपेरों का अस्तित्व हमारे देश में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, अब सपेरों के पिटारे में सांप तो नहीं बचे, लेकिन हाथों में बीन जरूर है, उसी को बजाकर वे लोगों का मनोरंजन करते हैं और कुछ कमा भी लेते है | यह सपेरा मूल रूप से हरियाणा का निवासी था, जो कामाख्या होते हुए सिलीगुड़ी पहुंचा था और यहां से फिर अपने गंतव्य की ओर बढ़ जाएगा | सपेरा ने बताया कि, सरकार ने जो सांप पालन पर प्रतिबंध लगाया है वह कुछ सोचकर ही किया होगा और हम सरकार के साथ ही हैं, वे दो, चार वर्षों में एक बार कामाख्या दर्शन करने आते हैं तभी वह बीन बजा कर लोगों का मनोरंजन करते हैं | उनके बीन की धुन सुनकर वहां उपस्थित लोग मंत्र मुग्ध हो गए, उनकी बीन की धुन में भी देश प्रेम की झलक महसूस हो रही थी और अजीब सी कशिश थी बीन की धुन में जिसे सुने के लिए लोग इकट्ठा हो गए थे |
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